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                            कलवारी की सलीब पर ईसा ने अपनी जीवन-बलि पूरी की। दो डाकुओं के बीच, सैनिकों का उपहास सुनते हुए अपमानित होकर टंगे रहे उस समय भी ईसा की आँखंे नीचे की ओर लगीं। ईसा की माता, उनकी बहन, क्लेपस की पत्नी और मरियम मगदलेना उनके क्रूस के पास खड़ी थीं। ईसा ने अपनी माता को और उनके पास अपने उस षिश्य को जिसे वे प्यार करते थे, देखा। उन्होंने अपनी माता से कहा, ‘‘भद्रे यह आपका पुत्र है’’। इसके बाद उन्होंने उस षिश्य से कहा, ‘‘यह तुम्हारी माता है’’ (योहन 19: 25 - 27)।
                             सलीब के पास खड़ी मरियम को षिश्य योहन तथा योहन को मरियम के सुपुर्द करते हुए ईसा ने हम में से हर एक को मरियम के तथा मरियम को हमारे सुपुर्द कर दिया। ईसा ने अपनी माँ को हमें दे दिया। एक मसीही के लिए माँ मरियम का मातृत्व आध्यात्मिक मातृत्व है। मुक्ति योजना में ईसा के साथ उपस्थित होकर मानसिक एवं षारीरिक दुःख सह कर ही वह हमारी माँ बनी।

     
     

    माँ जिसने वचन स्वीकार किया

                                   ईष पुत्र की माँ बनने का षुभ संदेष लेकर जब देवदूत दिखाई दिया तब स्वाभाविक षंका प्रकट करते हुए मरियम ने पूछाः ‘‘यह कैसे हो सकता है, मेरा तो पुरुश से संसर्ग नहीं है’’। देवदूत ने ईष्वर की योजना सुनायीः’’ सर्वोच्च ईष्वर की षक्ति की छाया आप पर पड़ेगी। इसलिए जो आपसे उत्पन्न होंगे, वे पवित्र होंगे और ईष्वर के पुत्र कहलाएँगे..ईष्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है’’ (लूकस 1: 37)। देवदूत की बात सुनकर मरियम बोली: ‘‘देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझमें पूरा हो जाये’’ (लूकस 1: 38)। मरियम, जो ईष्वर की इच्छा पूरी करने को तैयार हुई, ईष्वर के पुत्र की माँ बनी। ईसा अपनी माता का महत्व इसमें बताते हैं कि उसने ईष्वर का वचन सुना और उसका पालन किया (लूकस 11: 28)।
                              पुरुश से संसर्ग नहीं है’’। देवदूत ने ईष्वर की योजना सुनायीः’’ सर्वोच्च ईष्वर की षक्ति की छाया आप पर पड़ेगी। इसलिए जो आपसे उत्पन्न होंगे, वे पवित्र होंगे और ईष्वर के पुत्र कहलाएँगे..ईष्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है’’ (लूकस 1: 37)। देवदूत की बात सुनकर मरियम बोली: ‘‘देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझमें पूरा हो जाये’’ (लूकस 1: 38)। मरियम, जो ईष्वर की इच्छा पूरी करने को तैयार हुई, ईष्वर के पुत्र की माँ बनी। ईसा अपनी माता का महत्व इसमें बताते हैं कि उसने ईष्वर का वचन सुना और उसका पालन किया (लूकस 11: 28)।

     
     

    मरियम कलीसिया की माँ

                    ईसा की मृत्यु के बाद मरियम ईसा के षिश्यों को एकत्र कर उनके साथ प्रार्थना करती थी: ‘‘ये सब एक हृदय होकर, नारियों, ईसा की माता मरियम तथा उनके भाइयों के साथ प्रार्थना में लगे रहते थे’’ (प्रेरित चरित: 1 - 14)। ईषवचन का मनन करते हुए मरियम उनके साथ रही। इस प्रकार जिसने कलीसिया रूपी षरीर के षीर्श-मसीह को जन्म दिया, वही मरियम मसीह के षरीर - कलीसिया - को जन्म देने मंे भगीदार बनी। इसलिए वह न केवल षीर्श, मसीह की माँ है परन्तु उनके षरीर, कलीसिया, की भी माँ है।

     
     

    मरियम कलीसिया का प्रतिरूप और आदर्ष

                      स्वर्ग को लक्ष्य बनाकर विष्वास की तीर्थयात्रा करने वाला समूह है कलीसिया। मरियम का जीवन भी विष्वास की एक तीर्थयात्रा थी। ‘‘मैं प्रभु की दासी हूँ’’ बोलकर उसने ईष्वर की इच्छा के सामने ‘आमेन’ कह दिया; उस क्षण से लेकर वह ईसा के साथ तीर्थयात्रा कर रही थी। गलतफहमियों, दुःख-तकलीफों, अपमान एवं पीड़ाओं के साथ-साथ आनन्द और प्रसन्नता से भरी हुई यात्रा। सबों में वह ईष्वर के प्रेम एवं परिपालन में विष्वास रखते हुए आगे बढ़ी। मरियम ने दृढ़ विष्वास किया कि ईष्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। ‘‘धन्य हैं आप, जिन्होंने यह विष्वास किया कि प्रभु ने आप से जो कहा, वह पूरा हो जाएगा’’ - यह कहकर पीढ़ियाँ उसका सम्मान करती हैं (क्रूस 1: 45)। वह ईसा के साथ तीर्थयात्रा कर रही थी। गलतफहमियों, दुःख-तकलीफों, अपमान एवं पीड़ाओं के साथ-साथ आनन्द और प्रसन्नता से भरी हुई यात्रा। सबों में वह ईष्वर के प्रेम एवं परिपालन में विष्वास रखते हुए आगे बढ़ी। मरियम ने दृढ़ विष्वास किया कि ईष्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। ‘‘धन्य हैं आप, जिन्होंने यह विष्वास किया कि प्रभु ने आप से जो कहा, वह पूरा हो जाएगा’’ - यह कहकर पीढ़ियाँ उसका सम्मान करती हैं (क्रूस 1: 45)।
                          ईसा की वफादार वधु है कलीसिया; कुँवारी मरियम कलीसिया का प्रतिरूप है। विष्वास, प्रेम एवं पूर्ण वफादारी में मरियम कलीसिया के लिए आदर्ष है। मरियम ने अपने आप को ईष्वर के लिए पूर्ण रूप से समर्पित कर, वफादारी से जीवन बिताया; वचन के प्रति कलीसिया की वफादारी एवं समर्पण का प्रतिरूप है वह जीवन। मरियम आत्मा और षरीर के साथ स्वर्ग में उठा ली गयी है; युगान्त में महिमान्वित होने वाली कलीसिया का प्रतीक भी है वह।

     
     

     मरियम की मध्यस्थता एवं संरक्षण

                                  काना के विवाह भोज में अंगूरी समाप्त हो जाने पर माँ मरियम ने उनके लिए ईसा से मदद माँगी। पुत्र ने उत्तर दिया कि अभी तक मेरा समय नहीं आया है; फिर भी माँ ने सेवकों से कहा, ‘‘वे तुम लोगों से जो कुछ कहें, वही करना’’। इसके द्वारा माँ अपने जीवन का विजय-रहस्य हम सन्तानों को बताती है। माँ ने वचन को अपने हृदय में संचित रखा, उस पर मनन करते हुए उसके अनुसार जीवन बिताया और वह धन्य बन गयी। ‘‘ईसा तुम से जो कुछ कहें वही करना’’-माँ हम सन्तानों से यही माँगती है जिससे हम भी माँ के जैसे धन्य बन जाएँ।

     

     

    मरिया भक्ति के विभिन्न रूप

                             पहली सदी से लेकर कलीसिया में मरिया भक्ति प्रकट है। पूर्वी एवं पष्चिमी देषों में पवित्र कुँवारी मरियम के प्रति हो रहे पवित्र भक्ति-कार्यों में अधिकांष का आरंभ पूजन-पद्धति में है या वे उससे जुड़े हुए हैं (मरिया भक्ति 15)। जपमाला, तीर्थयात्रा, उपवास, पर्व - इन सबों के द्वारा कलीसिया मरिया भक्ति प्रकट करती है। माता मरियम के नाम से अनेक तीर्थ स्थान कलीसिया में हैं।
                       मरिया भक्ति में महत्तम है जपमाला। जपमाला के महत्व एवं बहुमूल्यता के विशय में सन्त पापा जाॅन पाॅल द्वितीय ‘‘पवित्र कुँवारी मरियम की जपमाला’’ नामक प्रेरितिक पत्र द्वारा हमें सिखाते हैं। सन्त पापा जपमाला को ‘सुसमाचार का एक संक्षिप्त रूप’ कहते हैं।
                      आराधना जीवन में मार थोमा मसीही मरिया भक्ति को सदा बढ़ावा देते थे। हर बुधवार मरिया भक्ति के लिए अलग रखा गया है। सीरो मलबार कलीसिया के आराधना जीवन में मरिया भक्ति प्रकट करने की प्रमुख वेदी है याम प्रार्थना। हमारी कलीसिया में बुधवारों की याम प्रार्थनाएँ, मातृ गीतों एवं प्रार्थनाओं की धनी हैं। ध्यान देने की बात है कि माता मरियम के पर्वों की तैयारी में मार थोमा मसीही उपवास भी रखते थे। माता मरियम के ‘स्वर्ग में उदग्रहण’ के पर्व की तैयारी में पंद्रह दिन का तथा जन्मोत्सव की तैयारी में आठ दिन का उपवास इसके उदाहरण हैं।
    मरिया भक्ति हम में ईसा के प्रति प्रेम बढ़ाती है। माता के प्रति भक्ति का जीवन बिताते हुए हम माता के साथ स्वर्गीय तीर्थयात्रा पूरी करें।

    ईष-वचन पढ़ें और मनन करें

    लूकस 1: 39 - 56  

    कंठस्थ करें

    ‘‘धन्य हैं आप, जिन्होंने यह विष्वास किया कि प्रभु ने आप से जो कहा, वह पूरा 

    हम प्रार्थना करें-

    हे प्रभु ईष्वर, अपनी अनुगृहीत माता पवित्र कुँवारी मरियम की प्रार्थनाओं द्वारा हमें आध्यात्मिक और षारीरिक सहायता एवं संरक्षण प्रदान कर। उसके साथ तू अपने स्वर्गीय भोज में हमें भी सहभागी बना दे। 
     

    मेरा निर्णय

    मैं रोज माता मरियम की षरण लूँगा/गी।

    कलीसिया के अनुसार विचार करें

    करुणामय ईष्वर ने, अपने पुत्र को छोड़, मरियम को सब स्वर्गदूतों तथा मनुश्यों से ऊपर उठाया; यह उचित है कि कलीसिया उसी मरियम को ईष्वर की पवित्र माँ तथा मसीह के जीवन के रहस्यों में भागीदार मानकर विषेश रूप से उसका सम्मान करती है ... यह श्रद्धा कलीसिया में सदा जारी रही और महत्वपूर्ण है। फिर भी जो मनुश्य बना उस वचन को, पिता को एवं पवित्रात्मा को जो आराधना हम अर्पित करते हैं उससे भिन्न है मरिया भक्ति और मरियम पर श्रद्धा। परन्तु मरियम पर श्रद्धा ईष्वर की आराधना के लिए सहायक है (कलीसिया 66)।

     अपनी कलीसिया को जानंे

          सीरो मलबार कलीसिया 1992 में श्रेश्ठ धर्माध्यक्षीय कलीसिया की पदवी पर उठायी गयी और कार्डिनल आन्टनी पडियरा श्रेश्ठ धर्माध्यक्ष नियुक्त किए गए। कलीसिया की मौलिकता जारी रखते हुए गतिविधियाँ व्यवस्थित करने के लिए 1993 में धर्माध्यक्षों की सभा की बैठक हुई। 1995 में काक्कनाट (केरल) के माउण्ड सेन्ट थाॅमस में कलीसिया के कार्यालय का उद्घाटन हुआ। 1995 में तृषूर एवं तलषेरी धर्माप्रान्तों तथा 2005 में  कोट्र्प्न्र्मप्रान्त की पदवी 
                      भारत के बाहर सीरो मलबार कलीसिया के सदस्यों के बीच हो रहे मेशपालीय कार्यों में औपचारिक कदम उठाते हुए अमेरिका में सीरो मलबार मसीहियों के लिए शिकागो केन्द्रित नये धर्मप्रान्त का षुभारंभ 2001 में हुआ। समर्पित जीवन की बुलाहट से धनी होकर सीरो मलबार कलीसिया भारत में एवं विदेषों में अपने सदस्यों की देखरेख तत्परता से करती है तथा प्रेरिताई कार्यों में भी लगी रहती है।