पाठ-14
कलीसिया सार्वत्रिक है
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ईसा ने कहा, ‘‘स्वर्ग का राज्य राई के दाने के सदृष है, जिसे लेकर किसी मनुश्य ने अपने खेत में बोया। वह तो सब बीजों में छोटा है, परन्तु बढ़कर सब पौधों से बड़ा हो जाता है और ऐसा पेड़ बनता है कि आकाष के पंछी आकर उसकी डालियों में बसेरा करते हैं’’ (मत्ती 13: 31-32)। कलीसिया के विशय में भी यह दृश्टान्त सार्थक है।
सब देषों में व्याप्त कलीसिया
पेन्तेकोस्त के दिन, जब कलीसिया का आरंभ हुआ, प्रेरितों का भाशण सुनने वालों में पारथी, मेदी... आदि विभिन्न देषों और भाशाओं के लोग उपस्थित थे (प्रेरित चरित 2: 5 - 11)। इसलिए यह कह सकते हैं कि कलीसिया आरंभ से ही सार्वत्रिक है। कलीसिया की सार्वत्रिकता का आधार यह है कि वह संसार के सब देषों में व्याप्त होकर सबों के लिए मुक्ती का मार्ग बन जाती है। कलीसिया की सार्वत्रिकता को प्रकट करने के लिए षुरू से ही ‘काथलिक’ या ‘सार्वत्रिक’ पदों का प्रयोग होता था। यूनानी षब्द ‘काथोलिकोस’ से अंगे्रजी षब्द ‘काथलिक’ निकल आया है। कलीसिया के विशय में सार्वत्रिकता का अर्थ है; सबों को गले लगाना।
कलीसिया सब जनताओं के लिए
जब ईष्वर ने इब्राहीम को राश्ट्रों का पिता बनने के लिए बुलाया था तब सारा मानव समूह था ईष्वर की दृश्टि में। इब्राहीम की बुलाहट द्वारा ईष्वर ने इस्राएलियों को एक जनता बनाई। इन दोनों का लक्ष्य था सारी मानव जाति की मुक्ति। सभी जनताआंे का सुसमाचार होकर तथा सारी दुनिया का मुक्तिदाता बनकर ईसा ने जन्म लिया। ईसा ने अपने जीवन में जो कुछ कहा और किया, वह सब सभी जनताओं के लिए मुक्ति का संदेष है। ईसा ने प्रेरितों को इसलिए नियुक्त किया कि वे संसार के कोने-कोने में जाकर सभी राश्ट्रों को सुसमाचार सुनायें। उनके द्वारा कलीसिया की, जो ईष्वर के राज्य का दृष्य चिह्न है, स्थापना हुई तथा उसकी सार्वत्रिकता स्पश्ट कर दी गयी।कलीसिया सभी संस्कृतियों में
सारे संसार को मुक्ति की ओर लाने के लिए नियुक्त है कलीसिया। जाति, धर्म, वर्ग, वर्ण आदि में भेदभाव किए बिना सबों के बीच पहुँच जाने, सब को मुक्ति की ओर ले आने, सभी संस्कृतियों को मानने एवं उन्हें पवित्र करने के लिए कलीसिया बाध्य है। जब अपने पुररुत्थान के बाद ईसा तिबेरियस के समुद्र तट पर षिश्यों को दिखाई दिये और उनके आदेष पर षिश्यों ने जाल डाला, उसमें 153 बड़ी मछलियाँ फँसी; फिर भी जाल नहीं फटा - घटना कलीसिया की सार्वत्रिकता स्पश्ट करती है, जो सभी मनुश्यों का स्वागत करती है। ईष्वर चाहता है कि सभी मनुश्य मुक्ति प्राप्त करें और सत्य को जानें ( 1 तिमथी 2: 4)। इसलिए कलीसिया की सार्वत्रिकता का अर्थ यह है कि वह सब का स्वागत करती है।कलीसिया की सार्वत्रिकता के विशय में सन्त जाॅन डमषीन कहते हैं: ‘‘कलीसिया सार्वत्रिक है। क्योंकि वह विभिन्न रीति-रिवाजों और अलग-अलग भाशाओं की अनेक जनताओं को एकमात्र मुक्ति के विष्वास की ओर तथा ईष्वर के ज्ञान की ओर एकत्रित करके एक बना देती है’’। सन्त इरनेऊस सिखाते हैं कि रीति-रिवाजों की भिन्नता विष्वास की एकता को दृढ़ बनाती है। सन्त अगस्टिन का मत है कि रीति-रिवाजों की विविधता है कलीसिया की सुन्दरता का एक कारण।कलीसिया की सार्वत्रिकता तथा विभिन्न परम्पराएँ
सन्त पापा जाॅन पाॅल द्वितीय इस प्रकार सिखाते हैं: ‘‘कलीसिया में पूर्वी परम्परा है, लातीनी परम्परा भी है। कलीसिया की सार्वत्रिकता का सम्पूर्ण प्रकटीकरण केवल एक ही परम्परा द्वारा नहीं होता। पूर्वी तथा पष्चिमी कलीसियाओं के जीवन में सार्वत्रिक कलीसिया की ईष-प्रेरित और अविभाज्य पैतृक संपत्ति संपोशित है और बढ़ती है; उसका अनुभव पूर्ण रूप से सबको प्राप्त होना चाहिए’’ (पूर्व की ज्योति 1)। कलीसिया की सार्वत्रिकता तभी प्रकट होती है जब पूर्वी एवं पष्चिमी परम्पराएँ सुरक्षित की जाती हैं, उनका सम्मान किया जाता है और उन्हें जीवन में स्वीकार किया जाता है।सार्वत्रिक महासभाएँ
कलीसिया की एकता एवं सार्वत्रिकता प्रकट होने की सबसे महत्वपूर्ण वेदियाँ हैं सार्वत्रिक महासभाएँ। कलीसिया में 21 सार्वत्रिक महासभाएँ हो चुकी हैं। इन सबों के पहले प्रेरितों के जीवन काल में ही एक महासभा हुई थी येरुसालेम में। उसमें चर्चा का मुख्य विश्य यह था कि गैर यहूदियों को मसीही बनने के लिए खतना जरूरी है या नहीं। प्रेरितों के मुखिया सन्त पेत्रुस तथा उत्साही सन्त पौलुस द्वारा ईष्वर ने यह प्रकट किया कि खतना जरूरी नहीं है। इस प्रकार सार्वत्रिक महासभाएँ इसलिए होती हैं कि कलीसिया के विष्वास के रहस्यों की व्याख्या सही ढंग से करें, कलीसिया का नवीनीकरण करें एवं समय≤ पर कलीसिया में उत्पन्न समस्याओं का हल निकालें।सभी जनताओं के लिए मुक्ति का चिह्न है कलीसिया। ईष्वर चाहता है कि कलीसिया की सन्तानों के जीवन-साक्ष्य एवं सुसमाचार के प्रचार द्वारा सबके सब सच्ची कलीसिया में आ जाएँ।ईष वचन पढ़ें और मनन करें
प्रेरित चरित4: 32-5:11ंठस्थ करें
‘‘उनके नाम पर येरुसालेम से लेकर सभी राश्ट्रों को पाप क्षमा के लिए पष्चाताप का उपदेष दिया जाएगा। (लूकस 24: क47)हम प्रार्थना करें
हे मसीह सब के प्रभु, संसार की सब जनताओं को आप के सुसमाचार की ज्योति से आलोकित कीजिए।मेरा निर्णय
जैसे प्रेरितों ने सब जनताओं को सुसमाचार सुनाया वैसे ही मैं भी अपने जीवन की हर परिस्थिति में सुसमाचार का प्रचार करूँगा/गी।कलीसिया के अनुसार विचार करें
पृथ्वी की सब जनताओं में से लोग ईष्वर की जनता में षामिल किए जाते हैं। इस प्रकार ईष्वर की जनता सब जनताओं में व्याप्त है। वह सब जनताओं में से नागरिकों को स्वीकार करती है और उन्हें सांसारिक प्रकृति के बदले स्वर्गीय प्रकृति के राज्य के नागरिक बना देती है। संसार भर में बिखरे हुए विष्वासी गण पवित्रात्मा में परस्पर जुड़े हुए हैं। (कलीसिया-13)अपनी कलीसिया को जानें
1923 दिसम्बर 21 को सन्त पापा पीयुस ग्यारहवें ने एरनाकुलम को महाधर्मप्रान्त तथा तृषूर, चंगनाषेरी और कोट्टयम को सामन्त धर्मप्रान्त बनाये। मलबार के प्रवासी मसीहियों के लिए 1953 में तलषेरी धर्मप्रान्त की स्थापना हुई। 1955 मंे चंगनाषेरी धर्मप्रान्त की सीमाओं को कोल्लम, तिरुवनंतपुरम् और कोट्टार के लातीनी धर्मप्रान्तों के क्षेत्रों में मिलाकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक बढ़ाया; तृषूर धर्मप्रान्त की सीमाओं को कोयम्बत्तूर लातीनी धर्मप्रान्त के क्षेत्र भी मिला कर बढ़ाया; तलषेरी धर्मप्रान्त का क्षेत्र बढ़ाकर मैसूर और मंगलापुरम लातीनी धर्मप्रान्त के क्षेत्रों में फैलाया। उसी साल में कोट्टयम धर्मप्रान्त की सीमा सारी सीरो मलबार कलीसिया की सीमाओं तक बढ़ायी। 1956 में चंगनाषेरी महाधर्मप्रान्त बनाया गया।