पाठ-12
कलीसिया पवित्र है
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एक दिन नबी इसायाह मन्दिर में प्रार्थना कर रहे थे। तब उन्हें एक स्वर्गीय दर्षन मिला। उन्होंने प्रभु को एक सिंहासन पर बैठा हुआ देखा। उनके वस्त्र का पल्ला मन्दिर का पूरा फर्ष ढक रहा था। उनके ऊपर सेराफीम विराजमान थे, उनके छः छः पंख थेः दो चेहरा ढकने, दो पैर ढकने और दो उड़ने के लिए। और वे एक-दूसरे को पुकार-पुकार कर यह कहते थे, ‘‘पवित्र, पवित्र, पवित्र है विष्व मण्डल के प्रभु।’’... पुकारने वाले की आवाज़्ा से प्रवेष द्वार की नींव हिल उठी और मन्दिर धुँए से भर गया। (इसायाह 6: 1 - 4)। इस दर्षन द्वारा ईष्वर की पवित्रता हमें प्रकट की गयी।ईष्वर पवित्र है। इस्राएल जनता इस पवित्रता की ओर बुलायी गयी थी। इस्राएल ईष्वर की पवित्र जनता है। कलीसिया, जो नया इस्राएल है, की आधारभूत विषेशता यह है कि वह पवित्र है। प्रेरित सन्त पौलुस नई कलीसियाओं के प्रति अपने पत्रों में इसका उल्लेख करते हैं, ‘‘आप लोग ईसा मसीह द्वारा पवित्र किए गए हैं और... सन्त बनने के लिए बुलाये गये हैं’’ (1 कुरिंथि 1: 2)। प्रेरित सन्त यूदस के पत्र में भी हम इस प्रकार देखते हैं। (वाक्य - 3)।
सब कोई पवित्रता की ओर बुलाये गये हैं
यह ईष्वर की इच्छा है कि हम सन्त बनें। ‘‘पवित्र बनो, क्योंकि मैं प्रभु, तुम्हारा ईष्वर, पवित्र हूँ’’ (लेवी ग्रन्थ 19: 2)। पवित्र वचन से यह स्पश्ट होता है। प्रेरित सन्त पौलुस हमें सिखाते हैं, ‘‘ईष्वर ने हमें अषुद्धता के लिए नहीं, पवित्रता के लिए बुलाया’’ (1 थेसलनीकी 4: 7)। ईष्वर ने हमें इसलिए बनाया था कि हमें उसकी पवित्रता में भागीदार बनाये।’’ ईष्वर ने संसार की सृश्टि से पहले मसीह में हम को चुना, जिससे हम मसीह से संयुक्त होकर उसकी दृश्टि में पवित्र तथा निश्कलंक बनें’’ (एफेसियों 1: 4)। प्रेरित सन्त पेत्रुस भी यह आह्वान करते हैं, ‘‘आप को जिसने बुलाया, वह पवित्र है। आप भी उसके सदृष अपने समस्त आचरण में पवित्र बनें’’ (1 पेत्रुस 1: 15)।’’ इसलिए हमें पवित्र जीवन बिताना चाहिए।कलीसिया पवित्र है और उसका पवित्रीकरण होता रहना भी है।
कलीसिया पवित्र है, साथ ही साथ उसका पवित्रीकरण होता ही रहना चाहिए। पष्चाताप और मन परिवर्तन द्वारा वह निरंतर पवित्र की जाती रहती है (कलीसिया - 8)। परम पवित्र ईष्वर द्वारा चुने हुए, ईष्वर के लिए समर्पित लोगों का समूह है कलीसिया। जो पवित्र है वह कलीसिया में निवास करता है। पवित्रात्मा द्वारा कलीसिया संचालित है। अनेक सन्तों से धनी है कलीसिया। इसलिए कलीसिया पवित्र है। लेकिन कलीसिया की सन्तानें पापी एवं दुर्बल मनुश्य हैं। ‘‘सबों के साथ षान्ति बनाये रखें और पवित्रता की साधना करें। इसके बिना कोई ईष्वर के दर्षन नहीं कर पायेगा। आप सावधान रहें: कोई ईष्वर की कृपा से वंचित न हो। ऐसा कोई कड़वा या हानिकर पौधा पनपने न पाये, जो समस्त समुदाय को दूशित कर दे’’ (इब्रानियों 12: 14 - 15)। यह पवित्र वचन स्पश्ट करता है कि वह क्या है जो हमें अपवित्र बनाता है तथा पवित्रता बनाये रखने की जरूरत क्या है।पवित्रीकरण ईसा द्वारा
पुराने विधान में यह माना जाता था कि पाप हरने वाले मेमने के रक्त से मन्दिर, बलिवेदी और जनता का पवित्रीकरण होता है। नये विधान में ईसा, जो पाप हरने का मेमना है, अपने रक्त से हमारा पवित्रीकरण करते हैं। जब हम पाप के कारण षैतान की दासता में थे, ईसा ने सलीब पर अपनी बलि द्वारा हमें पवित्र एवं ईष्वर की संतान बनायी। ईसा इसलिए बलि बन गये कि स्वर्गिक पिता की पूर्णता तक हम सन्तानों को भी पहुँचायें।पवित्रीकरण ईषवचन द्वारा
ईष्वर का वचन हमें पवित्र करता है। ईसा ने कहा: ‘‘मैंने तुम लोगों को जो षिक्षा दी है, उसके कारण तुम षुद्ध हो गये हो’’ (योहन 15: 3)। पूरा षरीर फोड़ों से भरे हुए कोढ़ी ने ईसा के पास जाकर कहा: ‘‘प्रभु, आप चाहें, तो मुझे षुद्ध कर सकते हैं’’। उसका विष्वास देख कर ईसा बोलेः ‘‘मैं यही चाहता हूँ: षुद्ध हो जाओ’’ (मत्ती 8: 3)। जिन्होंने ईसा का वचन सुना, वे आत्मा और षरीर में षुद्ध हो गये। संसार छोड़कर पिता के पास जाने के पहले ईसा ने हमारे लिए पिता से विनती की, ‘‘तू सत्य की सेवा में उन्हें समर्पित कर। तेरी षिक्षा ही सत्य है’’ (योहन 17: 17)।ईष्वर की वाणी अग्नि जैसी है (यिरमियाह 23: 29)। सोना अग्नि में षुद्ध किया जाता है। जितना अधिक अग्नि में पिघलता उतना अधिक सोने की महत्ता बढ़ती है। इसी प्रकार ईषवचन ग्रहण कर उसके अनुसार जीने पर हम भी षुद्ध हो जाते हैं। ‘‘पूरा धर्मग्रन्थ ईष्वर की प्रेरणा से लिखा गया है। वह षिक्षा देने के लिए, भ्रान्त धारणाओं का खण्डन करने के लिए, जीवन सुधार के लिए और सदाचरण का प्रषिक्षण देने के लिए उपयोगी है, जिससे ईष्वर-भक्त सुयोग्य और हर प्रकार के सत्कार्य के लिए उपयुक्त बन जाये’’ (2 तिमथी 3: 16 - 17)। ईषवचन प्रतिदिन ध्यान से पढ़कर, उसके अनुसार जीवन बिताने से कलीसिया की सन्तानें पवित्रता के मार्ग पर चलने के लिए सक्षम बन जाएँ।पवित्रीकरण संस्कारों द्वारा
हमें पवित्र करने के साधन हैं संस्कार। कलीसिया में ईसा द्वारा स्थापित जीवन के झरने हैं वे। विभिन्न संस्कारों द्वारा मानव के जीवन के सब चरणों को ईष्वर पवित्र करता है। विषेश कर पवित्र बलिदान द्वारा, जो प्रतिदिन अर्पित किया जाता है, वह हमारी आत्माओं और हमारे षरीरो को पवित्र बनाता है। जब नबी इसायाह अपनी अयोग्यता बताते हुए विलाप कर रहे थे तब ईष्वर ने बलिवेदी से अंगार लेकर उन्हें पवित्र किया; कलीसिया के आचार्य यह सिखाते हैं कि उसी प्रकार परम प्रसाद - बलिवेदी का अंगार - हमें पवित्र करता है। ‘‘जो परम प्रसाद ग्रहण करते हैं वे पवित्रात्मा और अग्नि से भर जाते हैं। उसके जरिये वे पवित्र किये जाते हैं’’ (सन्त एफ्रेम) ।जिस पर हम पवित्र बलिदान अर्पित करते हैं वह पवित्रीकरण की बलिवेदी है। पवित्र बलिदान में जब याजक कहते हैं: ‘पवित्र वस्तु पवित्र लोगों के लिए है’, तब समूह बोलता है: ‘एकमात्र पिता पवित्र है, एकमात्र पुत्र पवित्र है, एकमात्र आत्मा पवित्र है’। यह जवाबी प्रार्थना सूचित करती है कि परम प्रसाद ग्रहण करने के लिए हम अयोग्य हैं तथा परम प्रसाद ग्रहण करने से हम त्रियेक ईष्वर की पवित्रता में भागीदार बनते हैं।जब हम पाप के कारण ईष्वर की पवित्रता से दूर हो जाते हैं, तब पष्चाताप करके मेलमिलाप संस्कार ग्रहण करना चाहिए। इस के द्वारा ईष्वरीय जीवन तथा बुराई से दूर रहने की कृपा हमें फिर से मिल जाते हैं।पवित्रीकरण - प्रार्थना, उपवास और परहेज द्वारा
प्रार्थना, उपवास और परहेज से भी हमारा पवित्रीकरण होता है। प्रार्थना में हम ईष्वर से मिलते हैं; उसकी पवित्र इच्छा समझते हैं। ईष्वर के सामने हमारी कमजोरियांे एवं कमियों को स्वीकार करते हुए षक्ति पाने में प्रार्थना हमारी मदद करती है। पाप में नहीं गिरने के लिए और यदि गिर जायें तो जल्दी से जल्दी पष्चाताप करके भले जीवन में लौटने के लिए प्रार्थना मदद करती है।उपवास और परहेज द्वारा हम अपने एवं दूसरों के पापों के लिए प्रायष्चित करते हैं। पाप के अवसरों से बच निकलने की आत्मषक्ति उपवास द्वारा प्राप्त होती है।पवित्रीकरण अलग-अलग बुलाहट के द्वारा
हर एक व्यक्ति जब अपनी बुलाहट के कत्र्तव्यों को ईमानदारी से निभाकर प्रेम की पूर्णता तक पहुँचता है, तब वह पवित्रता प्राप्त करता है। बुलाहट तीन प्रकार की है: वैवाहिक जीवन, सन्यास जीवन एवं पुरोहिताई का जीवन। बुलाहट कोई भी हो, जब हर एक अपनी बुलाहट के अनुसार प्रेम की पूर्णता की ओर बढ़ता है तथा दूसरों को पवित्रता में बढ़ाने का प्रयास करता है, तब उसकी पवित्रता प्रकाषित होती है (कलीसिया 39)। सौंपे हुए कामकाजों को भी बुलाहट समझ सकते हैं। इस प्रकार ईष्वर के सृश्टिकार्य, मुक्ति कार्य एवं पवित्रीकरण कार्य में भागीदार बनने का कत्र्तव्य हर एक को मिलता है। जब ईष्वर द्वारा दी हुई बुलाहट तथा सौंपे हुए कामकाजों के साथ हम प्रेमपूर्ण सहयोग देते हैं तब वे हमारे लिए पवित्रीकरण के मार्ग बनते हैं।इस प्रकार जब हम ईषवचन, संस्कार, उपसंस्कार, प्रार्थना और उपवास द्वारा पोशित होकर अपनी-अपनी बुलाहट के अनुसार बढ़ते हैं तब ईष्वर की सन्तानों के योग्य पवित्र जीवन बिता सकेंगे।ईषवचन पढ़ें और
मनन करेंयोहन 17: 15-26कंठस्थ करें
‘‘आपको जिसने बुलाया, वह पवित्र है। आप भी उसके सदृष अपने समस्त आचरण में पवित्र बनें।’’ (1 पेत्रुस 1: 15)।हम प्रार्थना करें
हे ईसा, आपने हमें सन्त बनने के लिए बुलाया; हमें पवित्र जीवन में बढ़ते रहने का अनुग्रह प्रदान कीजिए।मेरा निर्णय
मैं पवित्रता की ओर बुलाया/यी गया/यी हूँ; मैं एक सन्त बनने का प्रयासकलीसिया के अनुसार विचार करें
यह बात स्पश्ट है कि किसी भी बुलाहट और परिस्थिति में मसीही जीवन एवं प्रेम की पूर्णता पाने के लिए सभी मसीही विष्वासी बुलाये गये हैं। सांसारिक तल पर भी बदत्तर मानवीय जीवन बिताने में यह पवित्रता प्रोत्साहन देती है। विष्वासियों को चाहिए कि वे इस पूर्णता की प्राप्ति के लिए मसीह से दान के रूप में मिली क्षमताओं को उनकी मात्राओं के अनुसार विकसित करें।अपनी कलीसिया को जानें
महाधर्माध्यक्ष करियाट्टिल याउसेप के निधन के बाद याजक पारेमाक्कल थोमा भारत की कलीसिया के षासक बने। उनके षासनकाल में कलीसिया का व्यक्तित्व पुनः प्राप्त करने के लिए जोरदार प्रयास हुए। इसका आरंभ करते हुए 1787 फरवरी 1 तारीख को 84 पल्लियों के सदस्यों ने अंकमाली में एकत्र होकर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज तैयार की। उसका नाम है ‘‘अंकमाली पटियोला’’। मार अब्राहम के देहान्त से लेकर उस दिन तक मार थोमा नाजरियों ने जो कश्ट सहे उन सबका विवरण उसमें है।