पाठ-11
कलीसिया एकमात्र है
-
ईसा ने कहाः ‘‘मैं सच्ची दाखलता हूँ और मेरा पिता बागवान है। वह उस डाली को, जो मुझमें नहीं फलती, काट देता है और उस डाली को, जो फलती है, छाँटता है, जिससे वह और फल उत्पन्न करे। मैंने तुम लोगों को जो षिक्षा दी है, उसके कारण तुम षुद्ध हो गये हो। तुम मुझमें रहो और मैं तुममें रहूँगा... मैं दाखलता हूँ और तुम डालियाँ हो। जो मुझमें रहता है और मैं जिसमें रहता हूँ, वही बहुत फलता है’’ (योहन 15: 1-5)। ईसा चाहते हैं कि जैसे दाखलता से डालियाँ जुड़ी रहती हैं वैसे ईसा में विष्वास करने वाले सब ईसा से जुड़े रहें।पे्ररितों की नींव पर ईसाकलीसिया में एक बनी रहें। ईष्वर की बिखरी हुई सन्तानों को एकत्र करने हेतु ईसा ने जीवार्पण किया; उनकी इच्छा यह नहीं थी कि बिना आपसी सम्बन्ध के व्यक्तियों के रूप में मनुश्यों का पवित्रीकरण और उनकी मुक्ति करें। ईसा ने उन्हें एक जनता बनाना चाहा ताकि वे सत्य में ईसा को जानें और पवित्रता में ईसा की सेवा करें (कलीसिया 9)। ईसा ने अपनी ‘महापुरोहित की प्रार्थना’ में यह विनती की थी कि जिस तरह पिता और ईसा एक हैं उसी तरह षिश्य भी एक हो जाएँ (योजन 17: 21)। ईसा च्छा यह है कि इस एकता की ओर सभी जनताएँ आ जाएँ। इसी उद्देष्य से उन्होंने कलीसिया की स्थापना की । वे कहते हैं: ‘‘मेरी और भी भेड़ें हैं, जो इस भेड़षाला की नहीं हैं। मुझे उन्हें भी ले आना है। वे भी मेरी आवाज़्ा सुनेंगी। तब एक ही झुण्ड होगा और एक ही गडेरिया’’ (योहन 10: 16)।
कलीसिया - विष्वासियों का एकता भाव
प्रेरितों के सुसमाचार प्रचार के जरिये जिन्होंने विष्वास किया उनकी खास विषेशता थी एकता मनोभाव। वे दत्तचित्त होकर प्रेरितों की षिक्षा सुना करते थे, भ्रातृत्व के निर्वाह में ईमानदार थे और प्रभु-भोज तथा सामूहिक प्रार्थनाओं में नियमित रूप से षामिल हुआ करते थे। उनके पास जो कुछ था उसमें से हर एक की जरूरत के अनुसार सबों में बाँटते थे (प्रेरित चरित 2: 42, 45)। एकता भाव के लिए यूनानी भाशा में ‘कोयनोनिया’ षब्द का प्रयोग होता है।वष्वास में एकता
मूलतः विष्वास ही कलीसिया में एकता भाव बनाता है। ईसा द्वारा प्रकट किए गए त्रिएक ईष्वर - पिता, पुत्र, पवित्रात्मा में है हमारा विष्वास। पिता ने पुत्र को हमारी मुक्ति के लिए संसार में भेजा; पुत्र ने अपने में जो चरितार्थ की और पवित्रात्मा द्वारा पूरी की उस मुक्ति में है हमारा विष्वास। इस प्रकार कलीसिया की सभी संतानें एक ही विष्वास में भागीदार होती हैं। वे एक ही प्रभु, एक ही विष्वास और एक ही ज्ञानस्नान द्वारा एक ही आत्मा में संगठित हैं।संस्कारों में एकता
ज्ञानस्नान द्वारा हम ईसा में एक षरीर बन गये हैं; हमारा पालन-पोशण पवित्र बलिदान और अन्य संस्कार करते हैं। जैसे प्रेरित सन्त पौलुस कहते हैं; वह आषिश का प्याला, जिस पर हम आषिश की प्रार्थना पढ़ते हैं, हमें मसीह के रक्त के सहभागी बनाता तथा वह रोटी, जिसे हम तोड़ते हैं, हमें मसीह के षरीर के सहभागी बनाती है। इसलिए अनेक होने पर भी हम मसीह में एक षरीर बन जाते हैं क्योंकि हम सब एक ही रोटी के सहभागी हैं (1 कुरिंथि 10: 16-17)। एक ही आध्यात्मिक पेय पीकर, एक ही आध्यात्मिक भोजन ग्रहण कर, एक ही जीवन में सहभागी होकर एक बने विष्वासियों का समूह है कलीसिया। इस प्रकार एक ही ज्ञानस्नान तथा एक ही रोटी कलीसिया की सन्तानों की एकता का कारण बनती है (1 कुरिंथि 10: 3-4)।प्रेरितक एकता
मसीह ने अपनी कलीसिया की स्थापना उन प्रेरितों द्वारा की, जिन्हें उन्होंने विषेश रूप से चुनकर, आत्मा में अभिशिक्त करके भेजा। मसीह ने ऐसा किया कि प्रेरितों तथा उनके उत्तराधिकारियों द्वारा कलीसिया की अगुआई, उसका पवित्रीकरण एवं षिक्षण हों। प्रेरितों तथा उनके उत्तराधिकारी धर्माध्यक्षों के साथ की एकता कलीसिया की एकता के लिए जरूरी है। इसे प्रेरितक एकता कह सकते हैं। जो इस प्रकार एक बने हुए हैं उनके लिए एक ही विष्वास और एक ही अगुआई है; संस्कार भी अभिन्न हैं। इनके जरिये विष्वासीगण पवित्रात्मा में सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं।कलीसिया: स्वयं षासित कलीसियाओं की एकता
कलीसिया मसीह का षरीर है। कलीसिया में विष्वासीगण एक ही परमाधिकार के अधीन अलग-अलग स्वयं षासित कलीसिया के सदस्य होते हैं। इन कलीसियाओं का आपसी सम्बन्ध एवं एकता प्रषंसनीय है। विविधता कलीसिया की एकता को नहीं तोड़ती बल्कि उसे दृढ़ बनाती है।पूजन पद्धति, धर्मविज्ञान, आध्यात्मिकता और धर्मविधान के आधार पर काथलिक कलीसिया में 22 विभिन्न स्वयं षासित कलीसियाएँ हैं। विभिन्न ऐतिहासिक परिस्थितियों एवं अपनी निजी संस्कृति में इनका रूपधारण हुआ। इन सभी कलीसियाओं के अपनी-अपनी निजी कलीसियायी जीवन षैली है (पूर्वी कलीसियायी धर्मविधान की नियमावली ब्ब्म्व्.28 रू 1)। इन सभी कलीसियाओं की पदवी समान है।पूजन विधि की छः अलग-अलग प्राचीन परम्पराएँ जारी रखने वाली हैं ये कलीसियाएँ। उनमें अर्मेनियन, अलक्सांड्रियन, बाईसन्टाइन, अन्ट्योख्यिन और असीरियन पूर्वी हैं तथा रोमन (लातीनी) पष्चिमी है।सीरो मलबार कलीसिया
भारत में मार थोमा मसीही वे लोग हैं जो प्रेरित सन्त थोमस से सुसमाचार की ज्योति स्वीकार कर पहली सदी में ही मसीही विष्वास में आ गये। मार थोमा मसीहियों की इस विष्वास परम्परा को सीरो मलबार कलीसिया षुरू से लेकर जारी रखती है। सीरो मलबार कलीसिया ने पूर्वी सिरियायी पूजन पद्धति को, देष की संस्कृति को ध्यान में रखते हुए, अपनाया है। सीरो मलबार कलीसिया और कलदाया कलीसिया रोमी साम्राज्य के बाहर ही ये कलीसियाएँ विकसित हुईं; फिर भी पेत्रुस के सिंहासन के साथ वे सम्बन्ध एवं एकता रखती थीं। काथलिक कलीसिया में सीरो मलबार कलीसिया का अपना निजी व्यक्तित्व एवं अपनी परम्परा है; विष्वास, संस्कारों एवं प्रषासनिक कार्यों में सार्वत्रिक कलीसिया के साथ एकता में वह जुड़ी हुई है।पूर्वी सिरियायी पूजन पद्धति का उपयोग करती हैं। रोमी साम्राज्य के बाहर ही ये कलीसियाएँ विकसित हुईं; फिर भी पेत्रुस के सिंहासन के साथ वे सम्बन्ध एवं एकता रखती थीं। काथलिक कलीसिया में सीरो मलबार कलीसिया का अपना निजी व्यक्तित्व एवं अपनी परम्परा है; विष्वास, संस्कारों एवं प्रषासनिक कार्यों में सार्वत्रिक कलीसिया के साथ एकता में वह जुड़ी हुई है।ईसा द्वारा स्थापित एकमात्र काथलिक कलीसिया का सदस्य होने में हम गर्व करें। कलीसिया की एकता और उसके बढ़ावे के लिए हम मिल जुलकर परिश्रम करें।ईष-वचन पढ़ें और मनन करें
योहन17: 20 - 26कंठस्थ करें
‘‘जिस तरह तू मुझमंे है और मैं तुझमें, उसी तरह वे भी हम में एक हो जायें, जिससे संसार यह विष्वास करे कि तूने मुझे भेजा।’’हम प्रार्थना करें
हे प्रभु, यह कृपा कीजिए कि जो आप में विष्वास करते हैं; वे सब पवित्र कलीसिया में एक हो जाएँ।मेरा निर्णय
कलीसियाओं की एकता के लिए मैं प्रार्थना एवं परिश्रम करूँगा/गी।कलीसिया के अनुसार विचार करें
मसीह की एकमात्र कलीसिया यह है - जिसे ‘एक ही पवित्र, सार्वत्रिक और प्रेरितक’ कहकर हम धर्मसार में स्वीकार करते हैं; जिसकी चरागाही पुनरुत्थान के बाद हमारे मुक्तिदाता ने पेत्रुस को सौंपी थी, जिसका प्रचार एवं अगुआई पेत्रुस एवं अन्य प्रेरितों को सौंपी थी तथा जिसका निर्माण प्रभु ने सदा के लिए किया था’ (कलीसिया-8)।अपनी कलीसिया को जानें
कुबड़ा-क्रूस-षपथ के साथ-साथ मार थोमा नाजरियों के बीच उत्पन्न निर्भाग्यपूर्ण फूट धीरे-धीरे उनकी कलीसिया के विभाजन तक पहुँची। एक दल अन्ट्योखियन कलीसिया के साथ सम्बन्ध स्थापित कर अलग हो गया। वे ‘नये पन्थ वाले’ कहलाने लगे। जब से यह फूट हुई तब से एकता के लिए ज़ोरदार प्रयास चलता रहा। जिन्होंने इसका नेतृत्व किया उनमें प्रमुख हैंधर्माचार्य करियाट्टिल याउसेप तथा याजक पारेम्माक्कल थोमा। उन्होंने इस मामले में सन्त पापा से मुलाकात कर के पुनर्मिलन (वापस एक होने ) के लिए निवेदन और अन्य कागजात प्रस्तुत किए। सन्त पापा ने धर्माचार्य करियाट्टिल याउसेप को 1783 फरवरी 17 तारीख को कोडुंगल्लूर धर्मप्रान्त के महाधर्माध्यक्ष नियुक्त किया। लेकिन लौटते समय गोवा में उनका देहांत हो गया। साथ ही साथ पुनर्मिलन के प्रति उनका सपना भी समाप्त हुआ। याजक पारेम्माक्कल थोमा द्वारा रचित ‘वत्र्तमानाप्पुस्तकम’ इस यात्रा का विवरण है। करियाट्टिल महाधर्माध्यक्ष का पार्थिव षरीर पहले गोवा में दफनाया गया, बाद में षरीर का अवषेश आलंगाड सन्त मेरी गिरजाघर में लाकर