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                           पुनरुत्थान के बाद ईसा ने अपने षिश्यों को दर्षन देकर कहा, ‘‘जिस प्रकार पिता ने मुझे भेजा, उसी प्रकार मैं तुम्हें भेजता हूँ’’ (योहन 20: 21)। ‘‘तुम लोग जाकर सब राश्ट्रों को षिश्य बनाओ और उन्हें पिता, पुत्र और पवित्रात्मा के नाम पर बपतिस्मा दो। मैंने तुम्हें जो-जो आदेष दिए हैं तुम लोग उनका पालन करना उन्हें सिखलाओ’’ (मत्ती 28: 19-20)। संसार में ईसा का साक्ष्य देने का दौत्य उन्होंने कलीसिया को सौंपा। इसलिए कलीसिया सहज ही प्रेशित है (प्रेरिताई कार्य-2)।

     
     

    मसीह - ईष्वर द्वारा भेजा हुआ प्रथम प्रेरित

                                  मसीह ईष्वर द्वारा भेजा हुआ प्रथम प्रेरित हैं। ईष्वर ने अपने प्रिय पुत्र को संसार में इसलिए भेजा कि उनके द्वारा संसार मुक्ति पाये (योहन 3: 17)। पाप के द्वारा जो ईष्वरीय जीवन मानव कुल को नश्ट हुआ था, ईसा ने वह फिर से दिया; मानव को ईष्वर की सन्तान बनाया। उन्होंने कहा, ‘‘समय पूरा हो चुका है। ईष्वर का राज्य निकट आ गया है। पष्चाताप करो और सुसमाचार में विष्वास करो’’ (मारकुस 1: 15) - यह कहते हुए उन्होंने अपना प्रेरिताई कार्य षुरू किया। अपने जीवन, मृत्यु एवं पुनरुत्थान द्वारा मानव-मुक्ति हासिल करते हुए उन्होंने पिता की इच्छा निभाई। संसार के अन्त तक के मानव कुल को इस मुक्ति का अनुभव बाँटने के लिए उन्होंने अपने अनुयायियों को, प्रेरितों को, चुनकर प्रषिक्षण दिया। पवित्रात्मा को देकर उन्हें षक्त बनाया। कलीसियायी समूह की नींव डाली

    कलीसिया का प्रेरिताई दौत्य

                                  ईसा संसार के एकमात्र मुक्तिदाता हैं- यह सत्य सब राश्ट्रों को सुनाने एवं सबको इस मुक्ति की ओर ले आने के लिए कलीसिया नियुक्त है। जिन्होंने मसीह को नहीं जाना है उन्हें मसीह के विशय में सुनाने का दायित्व सभी विष्वासियों का है। साथ ही साथ कलीसिया की सन्तानों को यह भी चाहिए कि वे अपने को प्राप्त विष्वास में बढ़ें तथा दूसरों को विष्वास में बढ़ायें। कलीसिया यह दौत्य तीन प्रकार से निभाती है; 1) जिन्होंने मसीह को कभी नहीं जाना है, न उनके विशय में सुना है, उनके बीच सुसमाचार का प्रचार; 2) जो मसीह में विष्वास करते हुए मुक्ति की ओर आए हुए हैं उन्हें विष्वास के रहस्यों में सुदृढ़ बनाने के लिए सुसमाचार का प्रबोधन; 3) मसीह को जानने उनमें विष्वास करने और ज्ञानस्नान ग्रहण करने के बाद भी जिन मसीहियों का विष्वास - जीवन कमजोर पड़ गया उनके बीच पुनः सुसमाचार का प्रचार।

     
     

    प्रेरितों के कार्यकलाप

                    मसीह ने प्रेरितों को इसलिए बुलाया, चुना, प्रषिक्षण दिया और नियुक्त किया कि वे प्रेरिताई कार्य करें। लेकिन पेन्तेकोस्त के दिन पवित्रात्मा को ग्रहण करने के बाद ही वे सच्चे प्रेरित बने। जो तब तक डरपोक थे वे पवित्रात्मा से परिपूर्ण हो जाने पर हिम्मत के साथ सुसमाचार की घोशणा करने लगे। उन्होंने अपने को प्राप्त पुनरुत्थान के अनुभव के प्रभाव में एवं पुराने विधान की भविश्यवाणियों के आधार पर ईसा के विशय में उपदेष दिए। उन्होंने यह साक्ष्य दिया कि नाजरी ईसा प्रभु, मसीह, संसार के मुक्तिदाता एवं ईष्वर के पुत्र हैं। पीड़ाओं, दबाव, मारपीट और कारावास के अनुभव होते हुए भी साक्ष्य देने में वे हिम्मत के साथ बढ़ते रहे। प्रेरितों के परिश्रम के फलस्वरूप कलीसिया बढ़कर सुदृढ़ बन गयी। विष्वासियों की संख्या बढ़ी और कलीसिया चारों ओर फैल गयी।

    प्रेरित संत थोमस का प्रेरिताई कार्य

                              ईसा के निर्देषानुसार प्रेरितगण सुसमाचार के प्रचार के लिए दूर-दूर देष तक निकले। सुसमाचार की ज्योति लेकर भारत में जो आये वे प्रेरित सन्त थोमस  ो। सन् 52 ईसवी में वे कोडुंगल्लूर बन्दरगाह में उतरे। सिरियायी भाशा बोलने वाले एक प्रबल यहूदी समूह दक्षिण भारत  के कईं स्थानों पर रहता था। सबसे पहले उनके बीच उन्होंने सुसमाचार का प्रचार किया। उसके बाद सन्त थोमस ने पालयूर, कोट्टक्काव, कोक्कामंगलम, कोल्लम, निरणम, चायल (निलक्कल) आदि स्थानों पर सुसमाचार का प्रचार किया और कलीसियायी समूहों की स्थापना की।
                              कलीसिया की अगुआई के लिए अधिकारियों को नियुक्त करने के बाद सन्त थोमस पांडि राज्य और उधर से माइलापुर गये। माइलापुर के पास चिन्नामला में हत्या की धमकी मिलने पर उन्होंने निकटवर्ती पेरियामला में षरण ली। वहाँ सन् 72 ईसवी में विरोधियों ने भाला मारकर उनकी हत्या की। जहाँ उनका पार्थिव षरीर दफनाया गया था वहाँ आज का सान्तोम कैथीड्रल स्थित है। उनके तबर्रुक को 3-री सदी में एदेस्सा, वहाँ से 1141 में कियोस टापू और 1257 में इटली के ओरथोना ले जाया गया। उनके तबर्रुक का एक भाग कार्डिनल यूजिन टिसरन्ट ने 1953 में केरल में लाकर कोडंुगल्लूर के अशीकोट में प्रतिश्ठापित किया।

    पष्चिमी मिषनरियों का प्रेरिताई कार्य

                              1498 मई 21- को वास्कोडिगामा के नेतृत्व में एक पुर्तगाली जलसेना समूह केरल के कोशिकोड पहुँचा। भारत के साथ व्यापार सम्बन्ध बनाना था उनका लक्ष्य। उनके साथ आये हुए मिषनरी याजक मार थोमा मसीहियों के गिरजाघरों में धार्मिक अनुश्ठान किया करते थे। षुरू-षुरू में उनके बीच मित्रता रही, लेकिन आगे चलकर वह षिथिल हो गयी। उनके साथ आये हुए मिषनरी याजक मार थोमा मसीहियों के गिरजाघरों में धार्मिक अनुश्ठान किया करते थे। षुरू-षुरू में उनके बीच मित्रता रही, लेकिन आगे चलकर वह षिथिल हो गयी। पष्चिमी कलीसिया से आये मिषनरियों में प्रेरिताई उत्साह से                               परिपूर्ण एक येसु समाजी याजक थे सन्त फ्रान्सीस ज़ेवियर। भारत और अन्य पूर्वी देषों के लिए सन्त पापा के प्रतिनिधि बन कर वे 1542 मई 6 तारीख को भारत में आये; वे मार थोमा मसीहियों के साथ लिहाज रखते थे। उन्होंने भारत के पष्चिमी समुद्र तट के इलाकों में उत्साह के साथ सुसमाचार की घोशणा की; बहुत लोगों को ज्ञानस्नान दिया। 1552 दिसम्बर 8 को चीन के तटवर्ती सांचियन टापू में सन्त फ्रान्सीस ज़ेवियर का देहान्त हुआ। उनका तबर्रुक गोआ के बोम जीसस महामन्दिर में सुरक्षित रखा हुआ है।

    सीरो मलबार कलीसिया का प्रेरिताई उत्साह एवं वृद्धि

                     जिन्होंने सन्त थोमस से ज्ञानस्नान ग्रहण किया था उन मार थोमा मसीहियों में भी सन्त थोमस का धर्मोत्साह फैला। इस कलीसया के अनेक मिषनरी भारत के भिन्न-भिन्न स्थानों में प्रेरिताई कार्य कर रहे हैं। आज भी भारत के मिषनरियों में अधिकांष सीरो मलबार कलीसिया में से हंै। गैर मसीहियों के बीच काथलिक कलीसिया का विष्वास सुरक्षित रखे रहने में यह कलीसिया काफी सफल हुई है। सीरो मलबार कलीसिया की सजीवता एवं धर्मोत्साह को देखकर सन्त पापा योहन 23वें ने मध्य भारत का चाँदा धर्मप्रान्त 1962 में सीरो मलबार कलीसिया को सौंप दिया। उसके बाद परमधर्मपीठ द्वारा सतना, सागर, उज्जैन, बिजनोर, राजकोट, जगदलपुर, गोरखपुर आदि अनेक धर्मप्रान्त सीरो मलबार कलीसिया को सौंपे गये। नौकरी, धंधा आदि के लिए मुम्बई षहर और आसपास के स्थानों में प्रवासी हुए सीरो-मलबार मसीहियों के लिए 1988 में कल्याण धर्मप्रान्त की स्थापना हुई। केरल के धर्मप्रान्तों के मिषन प्रान्तों को मिलाकर दक्षिण में तक्कला धर्मप्रान्त (1996), उत्तर में बलत्तंगाड़ी धर्मप्रान्त (1999) एवं पूर्व में भद्रावति धर्मप्रान्त (2007) की भी स्थापना हुई है। चाँदा धर्मप्रान्त विभाजित होकर अदिलाबाद धर्मप्रान्त का जन्म हुआ है। भारत के बाहर अमेरिका में शिकागो धर्मप्रान्त भी सीरो मलबार कलीसिया का भाग है।

     

     

    हर एक मसीही एक प्रेरित

                                  ज्ञानस्नान ग्रहण करते ही हर एक व्यक्ति कलीसिया के प्रेरिताई दौत्य का भागीदार बनता है। सुसमाचार के अनुसार जीवन बिताते हुए मसीह के साक्षी बनना - यह है कलीसियायी समूह का आधारभूत प्रेरिताई-दौत्य। कलीसिया की सन्तानें इस दौत्य को विभिन्न प्रकार से निभाती हैं। जो पुरोहिताई के सेवा-कार्य के लिए नियुक्त हैं और अन्य समर्पित लोग भी अपने बुलावे के आधार पर प्रेरिताई दौत्य के लिए अलग किए गये हैं। संसार के किसी भी स्थान पर प्रभु का सुसमाचार लेकर पहुँच जाने के लिए वे अपने को स्वयं समर्पित कर चुके हैं। लोकधर्मी भी प्रेरिताई कार्य करने के लिए बाध्य हैं। समूह के हर स्तर के लोगों के साथ विषेशकर अन्य धर्मावलंबियों के साथ, मिल जुलकर जी रहे हैं लोकधर्मी। वे अपने जीवन के साक्ष्य, वचन एवं कर्म द्वारा प्रेरिताई कार्य निभाते हैं।

    ईष वचन पढ़ें और मनन करें

    मारकुस 16: 14-20

    कंठस्थ करें

    ‘संसार के कोने-कोने में जाकर सारी सृश्टि को सुसमाचार सुनाओ। (मारकुस 

    हम प्रार्थना करें

    हे मसीह, जैसे पिता ने आपको भेजा, वैसे ही पवित्रात्मा को भेजकर हमें कृपादानों से सम्पन्न बना दीजिए जिससे जीवन के हर स्तर में  
    मेरा निर्णय

    कलीसिया के प्रेरिताई कार्यों में प्रार्थना एवं आर्थिक 

    कलीसिया के अनुसार विचार करें
    कलीसिया द्वारा भेजे जाने वाले सुसमाचार - प्रचारक संसार भर में जाकर उन जनताओं और समूहों के बीच, जिन्होंने अब तक मसीह में विष्वास नहीं किया है, सुसमाचार की घोशणा करते एवं कलीसिया की स्थापना करते हैं; इस प्रकार के कार्यों को प्रायः ‘मिषन’ कहते हैं। (प्रेरिताई कार्य-6)

    अपनी कलीसिया को जानें

    उदयंपेरूर की धर्मसभा ने जो 1599 जून 20 तारीख को षुरू हुई, मार थोमा नाजरियों का भविश्य बदल दिया। मार थोमा नाजरियों का अंकमाली महाधर्मप्रान्त महा धर्माध्यक्षीय पदवी रखता था; लेकिन उदयंपेरूर धर्मसभा के बाद उसकी पदवी घटाकर उसे गोवा महाधर्मप्रान्त के अधीन का एक साधारण धर्मप्रान्त बनाया गया; आगे चलकर उसका अस्तित्व ही समाप्त कर दिया गया। उदयंपेरूर धर्मसभा के कारण धर्मसेवक पदवी की महत्ता एवं प्रतिश्ठा नश्ट हो गयीं तथा मार थोमा नाजरियों का पष्चिमीकरण भी हुआ। मार थोमा मसीहियों का प्रषासनिक ढाँचा बदलने का भी यह धर्मसभा निमित्त बनी।