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                     तुम लोग षहर में तब तक बने रहो, जब तक ऊपर की षक्ति से सम्पन्न न हो जाओ- षिश्यों ने ईसा के इस आदेष का पालन किया। पेन्तेकोस्त के दिन तक वे प्रार्थना में लीन रहे। ‘‘पवित्रात्मा तुम लोगों पर उतरेगा और तुम्हें सामथ्र्य प्रदान करेगा और तुम लोग येरुसालेम, सारे यहूदिया और समारिया में तथा पृथ्वी के अन्तिम छोर तक मेरे साक्षी होगे’’ (प्रेरित चरित 1: 8)। ईसा के ये वचन पेन्तेकोस्त के दिन पूरे हुए। उस दिन माता मरियम और ईसा के षिश्य एक स्थान पर इकट्ठे थे। अचानक आँधी जैसी आवाज आकाष से सुनाई पड़ी और सारा घर, जहाँ वे बैठे हुए थे, गूँज उठा। उन्हें एक प्रकार की आग दिखाई पड़ी, जो जीभों में विभाजित होकर उनमें हर एक के ऊपर आकर ठहर गयी। वे सब पवित्रात्मा से परिपूर्ण हो गये। 
                      पवित्रात्मा द्वारा प्रदत्त वरदान के अनुसार वे भिन्न-भिन्न भाशाएँ बोलने लगे। पृथ्वी भर के सब राश्ट्रों से आये हुए धर्मी यहूदी उस समय येरुसालेम में रहते थे। बहुत से लोग वह आवाज सुनकर एकत्र हो गये। वे विस्मित थे, क्योंकि हर एक अपनी-अपनी भाशा में षिश्यों को बोलते सुन रहा था। लेकिन कुछ लोग उपहास करते हुए कहते थे, ’’ये तो नई अंगूरी पीकर मतवाले हैं।’’
    पेत्रुस ने ग्यारहों के साथ खड़े होकर लोगों को सम्बोधित करते हुए ऊँचे स्वर से कहा, ‘‘यहूदी भाइयो और येरुसालेम के सब निवासियो, आप मेरी बात ध्यान से सुनें और यह जान लें कि ये लोग मतवाले नहीं हैं, जैसा कि आप समझते हैं। यह वह बात है, जिसके विशय में नबी योएल ने कहा है, ‘‘प्रभु यह कहता है - ँगा’’ (प्रेरित चरित 2: 1-17)।
     
                             जिन्होंने पेत्रुस का भाशण सुना, उन्होंने ईसा में विष्वास करके ज्ञानस्नान ग्रहण किया। उसी दिन लगभग तीन हजार लोग उनमें सम्मिलित हुए। इस प्रकार येरुसालेम में कलीसिया का षुभारंभ हुआ। प्रभु प्रतिदिन उनके समुदाय में ऐसे लोगों को मिला देता था, जो मुक्ति प्राप्त करने वाले थे (प्रेरित चरित 2: 47)। पवित्रात्मा से परिपूरित हुए षिश्यों ने संसार के कोने-कोने में जाकर सुसमाचार की घोशणा की।

    आत्मा के प्रेरिताई कार्य- आदिम ख्रीस्तीय समूह में

                                 पवित्रात्मा के आगमन से आरम्भ हुआ कलीसियायी समूह पवित्रात्मा से संचालित होकर ही बढ़ता और कार्य करता था। संकट के और अत्याचार के समय उन्होंने प्रार्थना में षरण ली। तब वे पवित्रात्मा से परिपूर्ण हो गये और निर्भीकता के साथ ईष्वर का वचन सुनाते रहे। (प्रेरित चरित 4: 31)।
                          आदिम कलीसिया में पवित्रात्मा का हस्तक्षेप हम प्रेरित चरित में स्पश्ट रूप से देखते हैं। पवित्रात्मा स्वयं प्रेरितों का पथ प्रदर्षन करता, उनसे बोलता एवं निर्णय लेने में उनकी मदद करता है (प्रेरित चरित 8: 29)। उन्हें कहाँ जाना, क्या करना - यह निर्देष देता है (प्रेरित चरित 16: 6)। उनके साथ रहते हुए उन्हें साहसी, उत्साही एवं खुष बनाता है। ‘‘अन्ताखिया की कलीसिया के नबी और षिक्षक किसी दिन उपवास करते हुए प्रभु की उपासना कर ही रहे थे कि पवित्रात्मा ने कहा: मैंने बरनाबस तथा साऊल को एक विषेश कार्य के लिए निर्दिश्ट किया है। उन्हें मेरे लिए अलग कर दो’’ (प्रेरित चरित 13: 1-2)। इस प्रकार पवित्रात्मा द्वारा भेजे हुए वे लोग सिलूकिया गये (प्रेरित चरित 13: 4)।
    भेजे हुए वे लोग सिलूकिया गये (प्रेरित चरित 13: 4)।
                              प्रार्थना के समय पेत्रुस को प्राप्त एक दर्षन के जरिये ही गैर-यहूदियों को पहले पहल कलीसिया में प्रवेष दिया गया था। यह भी पवित्रात्मा का हस्तक्षेप था। पेत्रुस उस दर्षन के विशय में विचार कर ही रहा था कि आत्मा ने उससे कहा, ‘‘देखो, तीन आदमी तुमको ढूँढ रहे हैं। तुम जल्दी नीचे उतरो और 0: 19-20)। आत्मा से संचालित पेत्रुस ने गैर-यहूदी करणेलियुस के घर पहुँचकर वहाँ एकत्रित लोगों को वचन सुनाया। तब उन पर भी पवित्रात्मा उतरा और वे ज्ञानस्नान ग्रहण कर कलीसिया के सदस्य बन गये।

     

    पवित्रात्मा के दान, वरदान एवं फल 

     

                          पवित्रात्मा द्वारा मसीह में बनाया हुआ ईष्वर का मन्दिर है कलीसिया। कलीसिया की प्रगति के लिए तरह-तरह के दान, वरदान एवं फल देते हुए पवित्रात्मा कलीसिया का निर्माण करता है। हर एक को भिन्न-भिन्न दान दिया गया है। ‘‘किसी को आत्मा द्वारा प्रज्ञा के षब्द मिलते हैं, किसी को उसी आत्मा द्वारा ज्ञान के षब्द मिलते हैं और किसी को उसी आत्मा द्वारा विष्वास मिलता है। वही आत्मा किसी को रोगियों को चंगा करने का, किसी को चमत्कार दिखाने का, किसी को भविश्यवाणी करने का, किसी को आत्माओं की परख करने का, किसी को भाशाएँ बोलने का और किसी को भाशाओं की व्याख्या करने का वरदान देता है। एक ही और वही आत्मा यह सब करता है; वह अपनी इच्छा के अनुसार प्रत्येक को अलग-अलग वरदान देता है’’ (कुरिन्थि 12: 7-11)।
                               प्रेरित सन्त पौलुस कहते हैं कि पवित्रात्मा विष्वासियों को क्या-क्या फल देता है। वे हैं: प्रेम, आनन्द, षान्ति, सहनषीलता, मिलनसारी, दयालुता, ईमानदारी, सौम्यता एवं संयम। कलीसिया के निर्माण करने तथा उसे बढ़ाने के लिए पवित्रात्मा ये सब देता है।

     

    पवित्रात्मा - संकट एवं अत्याचार के समय कलीसिाया की अगुआई करता है

                       कलीसिया के संकटों एवं उत्पीड़नों के समय में पवित्रात्मा उसे षक्ति प्रदान करता रहा। सात धर्मसेवकों में से एक, स्तेफनुस, को ईसा में विष्वास घोशित करने के कारण यहूदी धर्म के नेताओं ने गिरफ्तार किया। पवित्रात्मा से पूर्ण होकर उन्होंने उनको भी सुसमाचार सुनाया। उन नेताओं ने क्रुद्ध होकर स्तेफनुस को पत्थरों से मार डालने का निर्णय किया। जब लोग पत्थर मारने के लिए स्तेफनुस पर टूट पड़े तब भी षान्त भाव से प्रार्थना करते हुए षहादत का स्वागत करने की षक्ति पवित्रात्मा ने ही उन्हें दी थी (प्रेरित चरित 7: 54-60)। पवित्रात्मा ने ही कलीसिया को सताने वाले उस साऊल का मन परिवर्तन कराके (पे्ररित चरित - 9) उन्हें सुसमाचार का उत्साही प्रचारक बनाया। पौलुस बन गये साऊल को मसीह के प्रति षहीद होने की षक्ति भी पवित्रात्मा ने ही दी थी।

     

    पवित्रात्मा का मन्दिर

                      दूसरी वैटिकन महासभा यह सिखाती है कि पवित्रात्मा एक मन्दिर में जैसे कलीसिया और विष्वासियों के हृदयों में निवास करता है (कलीसिया 4)। इस प्रबोधन का आधार प्रेरित सन्त पौलुस के वचन हैं। वे पूछते हैं: ‘‘क्या, आप यह नहीं जानते कि आप ईष्वर के मन्दिर हंै और ईष्वर का आत्मा आप में निवास करता है। यदि कोई ईष्वर का मन्दिर नश्ट करेगा, तो ईष्वर उसे नश्ट करेगा; क्योंकि ईष्वर का मन्दिर पवित्र है और वह मन्दिर आप लोग हैं’’ 
    (1 कुरिंथि 3: 16-17)। हम ईष्वर के मंदिर इसलिए हो जाते हैं, क्योंकि ईष्वर का आत्मा हम में निवास करता है। हम देखते हैं कि पुनरुत्थान के बाद ईसा अपने षिश्यों पर फूँकते हुए उन्हें पवित्रात्मा प्रदान करते हैं (योहन 20: 22-23)।

     

    आत्मा द्वारा संचालित होने के लिए

                             आत्मा द्वारा संचालित होने के लिए हमें आत्मा की प्रेरणाओं के अनुसार जीवन बिताना चाहिए। ईष्वर की आज्ञाओं, कलीसिया के नियमों तथा अधिकारियों के निर्देषों के जरिये पवित्रात्मा की पे्ररणाएँ हमें प्राप्त होती हैं। आज्ञाकारी मनोभाव से हमें इन प्रेरणाओं को मानना है। पवित्र वचन हमें सिखाता है कि हममें निवास करने वाले पवित्रात्मा की प्रेरणा का दमन करके हम आत्मा को दुःख न दें  (1 थेसलनीकी 5: 19)। भलाई करने की तथा बुराई से दूर रहने की हर एक प्रेरणा पवित्रात्मा ही हम में जगाता है। जो लोग ईष्वर के आत्मा से संचालित हैं वे सब ईष्वर के पुत्र हैं।  हमें दासता का आत्मा नहीं, बल्कि गोद लिए गए पुत्रों का आत्मा प्राप्त है जिससे प्रेरित होकर हम पुकार कर कहते हैं, ‘‘अब्बा, हे पिता’’ (रोमियों 8: 14-15)।

     

    संस्कारों द्वारा आत्मा प्रदान किया जाता है

                        हर एक संस्कार में हम पवित्रात्मा को ग्रहण करते हैं। ज्ञानस्नान ग्रहण करते ही ईष्वर का आत्मा हममें बरसाया जाता है तथा हम ईष्वर के पुत्र-पुत्रियाँ बन जाते हैं। तैलाभिशेक संस्कार में हम विषेश रूप से पवित्रात्मा से अभिशिक्त हो जाते हैं। हम सुसमाचार के अनुसार जीने और सुसमाचार का प्रचार करने में सक्षम बन जाते हैं। पवित्र बलिदान में भी पवित्रात्मा खास तौर पर हम में बरसाया जाता है। पाप के कारण खोया हुआ आत्मीय जीवन मेल मिलाप संस्कार द्वारा हमें फिर से प्राप्त होता है। रोगी लेपन के जरिये आत्मा हमें रोग-षान्ति, पापमोचन एवं सहनषक्ति देता है। पुरोहिताभिशेक के संस्कार में मसीह के राजकीय, पैगम्बरी एवं याजकीय दौत्यों में भागीदार होकर ईष्वर की जनता की सेवा करने का विषेश वरदान बरसाया जाता है। पारिवारिक जीवन के कत्र्तव्यों को निभाने का वरदान विवाह के संस्कार में पवित्रात्मा देता ह  पवित्र बलिदान में भी पवित्रात्मा खास तौर पर हम में बरसाया जाता है। पाप के कारण खोया हुआ आत्मीय जीवन मेल मिलाप संस्कार द्वारा हमें फिर से प्राप्त होता है। रोगी लेपन के जरिये आत्मा हमें रोग-षान्ति, पापमोचन एवं सहनषक्ति देता है। पुरोहिताभिशेक के संस्कार में मसीह के राजकीय, पैगम्बरी एवं याजकीय दौत्यों में भागीदार होकर ईष्वर की जनता की सेवा करने का विषेश वरदान बरसाया जाता है। पारिवारिक जीवन के कत्र्तव्यों को निभाने का वरदान विवाह के संस्कार में पवित्रात्मा देता है।
                                   पवित्रात्मा द्वारा जन्म लेकर उस आत्मा से सदा संचालित लोगों का समूह है कलीसिया। पवित्र वचन सुनते, षिक्षा मानते एवं संस्कारों को ग्रहण करते हुए जीवन बिताने से हम आत्मा द्वारा संचालित बन जायेंग

    ईष वचन पढ़ें और मनन करें

     रोमियों 8: 9-17

    कंठस्थ करें

    ‘‘आप लोगों को दासों का मनोभाव नहीं मिला, जिससे प्रेरित होकर आप फिर डरने लगें। आप लोगों को गोद लिये गये पुत्रों का मनोभाव मिला’’। (रोमियों 8: 15)

    हम प्रार्थना करें

    हे मसीह, आपने सत्य के आत्मा की प्रतिज्ञा की जिससे वह हमें सत्य की राह पर चलाए। आत्मा की प्रेरणा के अनुसार जीने का अनुग्रह हमें दीजिए।

    मेरा निर्णय

    पवित्रात्मा की प्रेरणाओं के अनुसार मैं जीवन बिताऊँगा/गी।

    कलीसिया के अनुसार विचार करें

    एक मन्दिर में जैसे पवित्रात्मा कलीसिया में एवं विष्वासियों के हृदयों में निवास करता है। उनके द्वारा वह प्रार्थना करता है और उस तथ्य का साक्ष्य देता है कि वे ईष्वर के दत्तक पुत्र हैं। कलीसिया को सत्य की पूर्णता तक वही ले चलता है। (कलीसिया-4)।

    अपनी कलीसिया को जानें

    प्रेरित सन्त थोमस द्वारा संस्थापित अपनी कलीसिया की आधिकारिक परम्परा एवं विष्वास जीवन की षैली का पालन मार थोमा नाजरी विष्वस्ततापूर्वक करते आये थे। मार थोमा नाजरियों के विष्वास जीवन की षैली को ‘मार थोमा मार्ग’ कहलाता था। वे दृढ़ विष्वास करते थे कि अन्य किसी भी कलीसिया के जैसे आधिकारिकता