पाठ-2
कलीसिया: उनका समूह जिन्हें मुक्ति प्राप्त है
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ईष्वर ने मूसा और हारून को भेजा ताकि वे मिस्र की गुलामी में रह रही इस्राएली सन्तानों को मुक्ति दिलायें। वे फिराऊन के पास जाकर बोले: ‘‘इस्राएलियों का ईष्वर प्रभु यह कहता है: मेरे लोगों को जाने दो, जिससे वे निर्जन प्रदेष जाकर मेरा एक पर्व मना सकें’’ (निर्गमन 5: 1)। लेकिन फिराऊन न हटाने के लिए फिराऊन मूसा और हारून को बुलाता, जनता को छोड़ने पर सहमत होता और उनसे निवेदन करता कि वे प्रार्थना करके विपत्ति हटाएँ। परंतु विपत्ति हट जाने पर फिराऊन का मन बदल जाता। उसने जनता को जाने नहीं दिया। इसलिये ईष्वर ने मिस्रियों के सभी पहलौठों को मार डालने का निष्चय किया।ईष्वर के आज्ञानुसार इस्राएलियों ने पास्का मेमने का वध किया और उसका खून घर के दरवाजे के चैखट पर पोत दिया। उसी रात ईष्वर के दूत ने मिस्र देष भर परिभ्रमण किया। उसने मिस्र के मनुश्यों तथा पषुओं के सभी हटाने के लिए फिराऊन मूसा और हारून को बुलाता, जनता को छोड़ने पर सहमत होता और उनसे निवेदन करता कि वे प्रार्थना करके विपत्ति हटाएँ। परंतु विपत्ति हट जाने पर फिराऊन का मन बदल जाता। उसने जनता को जाने नहीं दिया। इसलिये ईष्वर ने मिस्रियों के सभी पहलौठों को मार डालने का निष्चय किया।ईष्वर के आज्ञानुसार इस्राएलियों ने पास्का मेमने का वध किया और उसका खून घर के दरवाजे के चैखट पर पोत दिया। उसी रात ईष्वर के दूत ने मिस्र देष भर परिभ्रमण किया। उसने मिस्र के मनुश्यों तथा पषुओं के सभी पहलौठों को मार डाला। फिराऊन के महल से लेकर सभी घरों में हाहाकार मच गया। लेकिन इस्राएलियों के घरों को ईष्वर ने बचाया। उसी रात फिराऊन ने मूसा और हारून को बुलाकर उनसे कहा: ‘उठो, इस्राएलियों को लेकर तुम दोनों मेरी प्रजा के यहाँ से चले जाओ। जाओ, तुमने जैसे कहा था, वैसे ही प्रभु की पूजा करो’ (निर्गमन 12: 31 )। इस्राएली जनता उसी रात मिस्र से निकली।इस्राएली जनता इस प्रकार फिराऊन की गुलामी से विमुक्त हुई। गुलामी से स्वतंत्रता की ओर विमोचन एवं मुक्ति का अनुभव था वह। इस्राएल के अनुभव में मुक्ति का मतलब विमोचन है। परन्तु ईष्वर जो सम्पूर्ण मुक्ति चाहता है, वह है पाप की गुलामी से मानव का विमोचन; स्वतंत्रता एवं प्रेम में ईष्वर के साथ जीवन बिताने का अनुभव।मिस्र की गुलामी से इस्राएल का विमोचन आगामी मुक्ति का पूर्वानुभव था। ने मानव कुल को पाप से मोचित किया।संसार का पाप हरने वाले मेमने - मसीह - का प्रतीक था पुराने विधान का पास्का मेमना। जब पास्का मेमने का खून इस्राएली भवनों के चैखटों पर पोता गया, तब फिराऊन की गुलामी से मुक्ति पाने का संकेत बन गया वह। ईष्वर का मेमना मसीह अपने रक्त से मानव कुल को मुक्ति प्रदान करने हेतु तय किए हुए थे। पिता के इकलौते के रक्त
नियमों का पालन: मुक्ति पाने की षर्त
मिस्र की गुलामी से मुक्त की हुई इस्राएली जनता के साथ विधान स्थापित करते हुए ईष्वर ने उसे अपनी निजी प्रजा बनायी (निर्गमन 19: 4 - 6)। ईष्वर ने उन्हें आज्ञाएँ दीं ताकि वे मुक्त की हुई जनता, ईष्वर की अपनी जनता, बने रहें। मूसा द्वारा इस्राएली जनता को ईष्वर ने जो आज्ञाएँ दी थीं, वे उसके लिए मुक्ति में बनी रहने के मार्ग थे। ‘‘यदि तुम मेरी बात मानोगे और मेरे विधान के अनुसार चलोगे, तो तुम सब राश्ट्रों में से मेरी अपनी प्रजा बन जाओगे (निर्गमन 19: 5)। ईष्वर की अपनी जनता होना, ईष्वर के साथ जुड़े रहना, यह मुक्ति का अनुभव है। यह अनुभव एवं एकता पाप के कारण इस्राएल को नश्ट हुए थे।यहूदी यह विष्वास करते थे कि नियम के पालन से मुक्ति प्राप्त होगी। इस विष्वास ने उन्हें नियमों के केवल अनुश्ठानों पर जोर देने की प्रेरणा दी। लेकिन नियम का तात्पर्य समझ कर उसका पालन करने में वे विफल रहे। ईष्वर ने इस जनता को ऐसे एक विधान के जरिये, जिसे तोड़ा नहीं जा सकता, मुक्ति की ओर ले आना चाहा। ईष्वर ने चाहा कि इस विधान के नियम पत्थर की पाटियों पर नहीं, बल्कि हृदय की पाटियों पर लिखे जाएँ। ईष्वर के पुत्र ईसा द्वारा यह पूरा किया गया।ईसा संसार के मुक्तिदाता
मानव कुल से ईष्वर ने जो मुक्ति की प्रतिज्ञा की थी, वह ईसा में पूरी हुई। हमंे पाप से मोचित करने के लिए उन्होंने जन्म लिया। बालक का नाम ‘ईसा’ रखने का अनुरोध करते हुए देवदूत ने यूसुफ से कहा: ‘‘वे अपने लोगों को उनके पापों से मुक्त करेंगे(’मत्ती 1: 21)। ईसा के जन्म का सन्देष’ (मत्ती सुनाते हुए देवदूतों ने गडेरियों से यही कहा था कि दाऊद के नगर में आपके लिए एक मुक्तिदाता का जन्म हुआ है। मन्दिर मंे ईसा को समर्पित करते समय धर्मी सिमेयोन ने घोशित किया: ‘‘मेरी आँखों ने उस मुक्ति को देखा है, जिसे तूने सब राश्ट्रों के लिए प्रस्तुत किया’’ (लूकस 2: 30-31)। ईसा ने अपने दुःखभोग, क्रूसमरण एवं पुनरुत्थान द्वारा मानव की मुक्ति प्राप्त करते हुए इन भविश्यवाणियों को अपने स्वयं में पूरा किया।ईसा एकमात्र मुक्तिदाता
प्रेरितों के मुखिया पेत्रुस ने अपनी सुसमाचार -घोशणा में बताया: ‘‘किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा मुक्ति नहीं मिल सकती है; क्योंकि समस्त संसार में ईसा नाम के सिवा मनुश्यों को कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया है, जिसके द्वारा हमें मुक्ति मिल सकती है’’ (प्रेरित चरित 4: 12)। ईसा ही एकमात्र मुक्तिदाता है। उन्होंने सबों के उद्धार के लिए अपने को अर्पित किया (1 तिमथी 2: 6)। स्वयं की बलि के जरिये उन्होंने संसार का उद्धार किया। जो इस सच्चाई को मानकर स्वीकार करते हैं उनका समूह है कलीसिया। पवित्र बलिदान में पवित्रात्मा की आमंत्रण प्रार्थना के अन्त में हम इस प्रकार प्रार्थना करते हैं। ‘‘ईसा मसीह के अनमोल रक्त से पवित्र की हुई कलीसिया में हम तेरी स्तुति करते हैं’’। आरंभ से ही कलीसिया में यह विचार सजीव था कि हम ऐसे लोगों का समूह हैं जिन्हें मुक्ति प्राप्त हुई हैं। मुक्ति का आधारवचन के अनुसार जीएँ
यह विष्वास करना कि ईसा हैं संसार के मुक्तिदाता तथा उनके वचनों के अनुसार 6: 63), मुक्ति का हमारा अनुभव और गहरा करता है। ईसा ने कहा हैः ‘‘जो मेरी षिक्षा सुनता और जिसने मुझे भेजा है, उसमें विष्वास करता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है’’ (योहन 5: 24 )। प्रेरित सन्त पौलुस भी यह सिखाते हैं कि सुसमाचार ईष्वर का सामथ्र्य है जो प्रत्येक विष्वासी के लिए मुक्ति का स्रोत है (रोमियों 1ः 16 )।वचन का पालन विधान के पालन की जरूर षर्त है। विधान का वचन इस प्रकार है, ‘यदि तुम मेरी बात मानोगे और मेरे विधान के अनुसार चलोगे, तो तुम सब राश्ट्रों में से मेरी अपनी प्रजा बन जाओगे’ (निर्गमन 19: 5)। ईसा ने कहा: ‘‘यदि कोई मुझे प्यार करेगा, तो वह मेरी षिक्षा पर चलेगा। मेरा पिता उसे प्यार करेगा और हम उसके पास आकर उसमें निवास करेंगे’’ (योहन 14: 23)। ये पवित्र वचन यह स्पश्ट करते हैं कि ईष्वर का अपना निजी होने के लिए, मुक्त किया हुआ समूह होने के लिए, ईष-वचन का पालन करते हुए जीवन बिताना जरूरी हसंस्कार: मुक्ति पाने के मार्ग
ईसा द्वारा प्रदत्त पापमोचन एवं मुक्ति का फल अपनाने और उनका अनुभव करने के मार्ग हैं संस्कार। पवित्रात्मा की कृपा से पापमोचन और ईष्वरीय जीवन देकर मुक्ति के अनुभव की ओर संस्कार हमें ले जाते हैं।मसीह ने जो मुक्ति प्रदान की है उसे कलीसिया ही जारी रखती है और प्रदान करती है। वह इसी मुक्ति की घोशणा करती है। पवित्र वचन एवं कलीसिया के संस्कारों द्वारा यह मुक्ति हमें मिलती है। दूसरे लोग भी मन परिवर्तन करके, ज्ञानस्नान स्वीकार कर इस मुक्ति की ओर आ जायें - इसके लिए एक प्रेरणा षक्ति है कलीसिया। इस प्रकार मसीह द्वारा मुक्त हुई कलीसिया उस मुक्ति का संकेत तथा माध्यम है जो सबको मुक्ति प्रदान करती और सबको मुक्ति की ओर बुलाती हईषवचन पढ़ें और मनन करें
योहन 14: 15-24
कंठस्थ करेंः
‘‘यदि तुम मेरी बात मानोगे और मेरे विधान के अनुसार चलोगे, तो तुम सब राश्ट्रों में से मेरी अपनी प्रजा बन जाओगे’’ (निर्गमन 19: 5)।हम प्रार्थना करें
हे ईष्वर, आपने कलीसिया में, जो मुक्ति का संस्कार है, मुझे भी सदस्य बनाया - मैं आपकी स्तुति करता/ती हूँ। नियमों के मार्ग पर चलकर स्वर्गीय महिमा में पहुँचने कामेरा निर्णय
रोज ईष-वचन पढ़ते तथा उसके अनुसार जीवन बिताते हुए मैं मुक्ति के मार्ग परकलीसिया के अनुसार विचार करें
जो लोग मसीह को अपनी मुक्ति का प्रभु, तथा एकता और षान्ति का मूल स्रोत मानते हैं, उन्हें एक समूह में एकत्र करके ईष्वर ने कलीसिया की स्थापना की। इसका लक्ष्य यह है कि कलीसिया सबके लिए मुक्तिदायक एकता का दृष्य संस्कार बने। (कलीसिया-9)अपनी कलीसिया को जानें
मार थोमा मसीही जिन्होंने प्रेरित सन्त थोमस से विष्वास स्वीकार किया था वे वही परम्परा मानने वाली एदेस्सा, फारस एवं सेलूसिया की कलीसियाआंे से सम्बन्ध रखते हुए बढ़ते थे। ईसवी 345 में फारस से क्नायी थोमा के नेतृत्व में जो देषान्तरण हुआ उससे इस बढ़ावे को ज़ोर मिली। मार थोमा मसीही, विष्वास में काथलिक (सार्वत्रिक), पूजन पद्धति में पूर्वी सिरियायी एवं संस्कृति मंे भारतीय थे।