पाठ-1
ईष्वर की चुनी हुई जनता
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प्रभु ने अब्राम से कहा, ‘‘अपना देष, अपना कुटुम्ब और अपने पिता का घर छोड़ दो और उस देष जाओ, जिसे मैं तुम्हें दिखाऊँगा। मैं तुम्हारे द्वारा एक महान राश्ट्र उत्पन्न करूँगा’’ (उत्पत्ति 12: 1-2)। ‘‘मैं यह देष तुम्हारे वंषजों को प्रदान करूँगा‘‘ (उत्पत्ति: 12: 7)। ओर दृश्टि लगाओ और संभव हो, तो तारों की गिनती करो। तुम्हारी सन्तति इतनी ही बड़ी होगी’’ (उत्पत्ति 15: 5)। ‘‘मैं तुम्हारे लिए अपना विधान निर्धारित करूँगा और तुम्हारे वंषजों की संख्या बहुत अधिक बढ़ाऊँगा.... तुम बहुत से राश्ट्रों के पिता बन जाओगे।... तुम्हारे असंख्य वंषज होंगे। मैं तुम्हारे लोगों को राश्ट्रों के रूप में फलने फूलने दूँगा।... मैं तुम्हारे लिए और तुम्हारे बाद तुम्हारे वंषजों के लिए पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपना चिरस्थायी विधान निर्धारित करूँगा - मैं तुम्हारा और तुम्हारे बाद तुम्हारे वंषजों का ईष्वर होऊँगा’’ (उत्पत्ति 17ः 2-7)। पृथ्वी भर की सभी जनताओं को एक परिवार में एकत्र करने की ईष्वर की मुक्ति योजना का निर्णायक आरंभ था यह चुनाव एवं विधान।
इब्राहीम का बुलावा और ईष्वर की प्रतिज्ञा
ईष्वर ने चाहा कि पाप के कारण बिगड़ी और बिखरी हुई मानव सन्तानों को एकत्र करके उन्हें मुक्ति प्रदान करे तथा ईष-पुत्रों के पद पर उठाये। उसकी तैयारी के रूप में उसने इब्राहीम को बुलाया। उनसे एक नयी जनता उत्पन्न करने का निष्चय ईष्वर ने किया। विष्वास एवं आज्ञाकारिता द्वारा इब्राहीम ने ईष्वर को प्रत्युत्तर दिया। इब्राहीम के कोई सन्तान नहीं थी। सारा बूढ़ी हो चली थी। इसी स्थिति में ईष्वर ने इब्राहीम से प्रतिज्ञाएँ की थीं। प्रभु ने जो बातें कीं वे पूरी हो जायेंगी, इस विष्वास में इब्राहीम अपना देष छोड़कर निकल पड़े। ईष्वर की प्रतिज्ञा में विष्वास रखने वाले इब्राहीम की आज्ञाकारिता तथा उनका यह विष्वास कि जो मनुश्य के लिए असंभव है वह ईष्वर के लिए संभव है, इन दोनों ने उन्हें ईष्वर के सम्मुख स्वीकार्य बनाया। सन्तान प्रदान कर ईष्वर ने अपनी प्रतिज्ञा निभायी।याकूब की सन्तान: इस्राएल
ईष्वर ने इब्राहीम से जो प्रतिज्ञा की थी, वह उनके पुत्र इसहाक तथा याकूब से भी दुहरायी। याकुब जो बारह वंषों के पिता बने, उन्हें ईष्वर ने ‘इस्राएल’ नाम दिया (उत्पत्ति 32: 29)। इस प्रकार याकूब की सन्तान पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस्राएल जानी जाती थी। ईष्वर ने उन्हें अपनी चुनी हुई जनता बनायी; वे प्रतिज्ञा और अनुग्रह के वारिस भी हो गये। जब याकूब के पुत्र यूसुफ मिस्र के प्रषासक थे तब इस्राएल की सन्तानें मिस्र में रहने लगीं। वहाँ वे एक बड़ा जन-समूह बन गयीं।मूसा का बुलावा एवं इस्राएल का विमोचन
संख्या-बल एवं धन सम्पत्ति में सम्पन्न हुए इस्राएलियों पर मिस्र के प्रषासक जलने लगे। वे धीरे-धीरे इस्राएलियों को तंग करने लगे; गुलामों के जैसे कठिन काम करने के लिए उन्हें बाध्य किया तथा उन्हें सताया। ईष्वर ने निष्चय किया कि गुलामी एवं अत्याचार के कारण निःसहाय हो चुकी इस जनता को विमोचित कर, इब्राहीम और उनकी सन्तानों से की हुई प्रतिज्ञा के अनुसार, उन्हें अपनी जनता बनाए। इसके लिये ईष्वर ने मूसा को बुलाया।ईष्वर ने मूसा से कहा, ‘‘मैं तुम्हारे पिताओं का ईष्वर हूँ: इब्राहीम, इसहाक तथा याकूब का ईष्वर। मैंने मिस्र में रहने वाली अपनी प्रजा की दयनीय दषा देखी और अत्याचारियों से मुक्ति के लिए उसकी पुकार सुनी है। मैं उसका दुःख अच्छी तरह जानता हूँ। मैं उसे मिस्रियों के हाथ से छुड़ाकर और इस देष से निकाल कर एक समृद्ध तथा विषाल देष ले जाऊँगा, जहाँ दूध तथा मधु की नदियाँ बहती हैं’’ (निर्गमन 3: 6-8)।ईष्वर की जनता का गठन
ईष्वर मूसा द्वारा याकूब की सन्तानों को विमोचित कर निर्जन प्रदेष से होकर ले चला। ईष्वर ने अपनी आराधना करने के लिए इस्राएली जनता को चुनकर उसके साथ सीनई पर्वत पर एक विधान स्थापित किया। वह इस प्रकार था: ‘‘तुम याकूब के घराने से यह कहोगे और इस्राएल के पुत्रों को यह बता दोगे - तुम लोगों ने स्वयं देखा है कि मैंने मिस्र के साथ क्या-क्या किया और मैं किस तरह तुम लोगों को गरुड़ों के पंखों पर बैठाकर यहाँ अपने पास ले आया। यदि तुम मेरी बात मानोगे और मेरे विधान के अनुसार चलोगे तो तुम सब राश्ट्रों में से मेरी अपनी प्रजा बन जाओगे; क्योंकि समस्त ृथ्वी मेरी है। तुम मेरे लिए याजकों का राजवंष तथा पवित्र राश्ट्र बन जाओगे’’ (निर्गमन 19: 3-6)।ये विमोचन तथा विधान इस्राएल को अपनी निजी जनता बनाने के लिए थे; मूसा से ईष्वर की कही हुई बातें यह स्पश्ट करती हैं। इस प्रकार ईष्वर द्वारा बुलाये गये, एकत्र किये गये, ईष्वर की अपनी जनता बन गये लोगों को पुराने विधान में ‘कहाल’ (इब्रानी भाशा) या ‘एक्लेसिया’ (यूनानी भाशा) कहते हैं। इन षब्दों का अर्थ है ‘एकत्रित किए हुए लोगों का समूह’। जब पवित्र ग्रंथ में इस्राएल जनता के प्रति इस का प्रयोग हुआ (विधि विवरण 4ः 10; 9: 10; 15: 10) तब इसे धार्मिक अर्थ प्राप्त हुआ। इस्राएल के इतिहास में ‘एक्लेसिया’ षब्द का प्रयोग तीन प्रकार से होता है।1. इस्राएल जनता ईष्वर द्वारा बुलाये और एकत्र किए गए लोगों का समूह है।2. एक खास लक्ष्य के लिए वे बुलाये और एकत्र किए गए थे। ईष्वर की आराधना करना और उसके विधान का पालन करना - यह है वह लक्ष्य।3. एक चुनाव के जरिये इस्राएल ईष्वर की अपनी जनता बन गया।नया विधान तथा ईष्वर की नयी जनता
ईष्वर के साथ जो जनता का सम्बन्ध था उसका ईमानदारी से पालन करने में इस्राएल जनता विफल रही। उन्होंने अविष्वस्त होकर अक्सर विजातीय देवताओं की आराधना की। फिर भी ईष्वर अपना विधान नहीं भूला। ईष्वर अपनी प्रतिज्ञाओं में निश्ठावान है, उसने कहा कि वह एक नया विधान स्थापित करेगा, जिसे नहीं तोड़ा जा सकता, और वह उनका ईष्वर होगा और वे उसकी अपनी प्रजा होंगे। ’’वह समय बीत जाने के बाद मैं इस्राएल के लिए एक नया विधान निर्धारित करूँगा। मैं अपना नियम उनके अभ्यन्तर में रख दूँगा, मैं उसे उनके हृदय पर अंकित करूँगा। मैं उनका ईष्वर होऊँगा और वे मेरी प्रजा होंगे’’ (यिरमियाह 31: 33)।समय की पूर्ति में ईष-पुत्र ईसा ने अपने जीवन, मृत्यु एवं पुनरुत्थान द्वारा इस विधान को सार्थक ठहराया। अन्तिम ब्यारी के समय रोटी और दाखरस को अपने षरीर और रक्त में बदल कर देते हुए उन्होंने प्रेम का नया विधान स्थापित किया। इस प्रकार ईष्वर ने अपने एकलौते की मृत्यु द्वारा मनुश्यों के अपराधों को माफ़ किया; उसने उनका पाप याद नहीं करते हुए (यिरमियाह 31: 34) सदा के लिए भुला दिया। मसीह द्वारा हम ईष्वर को स्वीकार्य हो जायें, इसलिए पापी 1)। अपनी मृत्यु द्वारा उन्होंने ईष्वर से मनुश्यों का मेल कराया तथा उन्हें ईष्वर के घराने के सदस्य बनाये (एफेसियों 2: 14)।कलीसिया: ईष्वर की चुनी हुई प्रजा
मानव-मुक्ति की पूर्ति के लिए विषेश रूप से चुने गये लोगों का समूह है कलीसिया। ईसा ने उस नींव पर, जो प्रेरित हैं, कलीसिया की स्थापना की। उसने संसार की सृश्टि से पहले मसीह में हमको चुना, जिससे हम मसीह से संयुक्त होकर उसकी दृश्टि में पवित्र तथा निश्कलंक बनें। उसने प्रेम से प्रेरित होकर आदि में ही निर्धारित किया कि हम ईसा मसीह द्वारा उसके दत्तक पुत्र बनेंगे (एफेसियों 1: 4-5)। प्रेरित सन्त पौलुस हमें उपदेष देते हैं ‘आप लोग ईष्वर की पवित्र एवं परम प्रिय चुनी हुई प्रजा हैं। इसलिये आप लोगों को अनुकम्पा, सहानुभूति, विनम्रता, कोमलता और सहनषीलता धारण करनी चाहिए’ (कलोसियों 3: 12)। प्रेरित सन्त पेत्रुस भी सिखाते हैं, ‘आप लोग चुने हुए वंष, राजकीय याजक वर्ग, पवित्र राश्ट्र तथा ईष्वर की निजी प्रजा हैं’ (1 पेत्रुस 2: 9)। इसलिए ईष्वर ने जिन्हें अपने इकलौते ईसा द्वारा चुना और एकत्रित किया उनका समूह है कलीसिया।ईषवचन पढ़ें और
एफेसियों 1ः 3-14 )कंठस्थ करें
‘‘उसने संसार की सृश्टि से पहले मसीह में हमको चुना, जिससे हम मसीह से संयुक्त होकर उसकीहम प्रार्थना करें
हे ईष्वर, आपने मसीह में सबको एकत्रित किया; हमें यह वर दीजिए कि हम कलीसिया के अनुसार विचार करें, कलीसिया को प्यार करें तथा उसके कार्यकलापों में अपनी क्षमता के अनुमेरा निर्णय
कलीसिया में सदस्य होने का अनुग्रह देने के प्रति मैं ईष्वर को रोजधन्यवाद दूँगा/गी।कलीसिया के अनुसार विचार करें
यहूदियों एवं गैर-यहूदियों में से लोगों को एकत्रित करके ईसा ने नये विधान की स्थापना की जिससे उन्हें केवल षारीरिक रूप से नहीं, बल्कि आत्मा में भी एक कर दें तथा वे इस प्रकार ईष्वर की नयी प्रजा बन जायें (कलीसिया -अपनी कलीसिया को जानें
जो लोग प्रेरित सन्त थोमस से विष्वास स्वीकार कर मसीही बने थे, वे मार थोमा नाजरी जाने जाते थे। ईसा नाजरी के अनुयायी - इस अर्थ में ‘नाजरी’ नाम प्रचलित हुआ। पुराने समय में जो मलबार तट कहलाता था, भारत के उस पष्चिमी समुद्रतट पर नाजरी रहते थे। इसलिये यह कलीसियायी समूह बाद में ‘मलबार कलीसिया’ भी कहलाने लगा। पूजन पद्धति सिरियायी ;ैलतपंबद्ध भाशा में होने के कारण सीरो ;ैलतवद्ध षब्द भी जोड़ा गया। आज यह कलीसिया ‘सीरो मलबार कलीसिया’ के नाम से जानी जाती है।