• ईसा ने स्वयं को अपने षिश्यों के सामने अलग-अलग रीति से प्रकट किया। फिर भी उनके दुःखभोग एवं मष्त्यु को षिश्य नहीं समझ सके। कलवारी पर ईसा की मृत्यु के बाद वे उदास एवं दुःखी हो गये। वे यह समझ नहीं पा रहे थे कि आगे क्या करना है। उन्होंने अपनी सारी उम्मीदें खो दी थीं। वे यहूदियों के भय से एक कमरे में द्वार बन्द किये बैठे थे। ईसा पुनरुत्थान के बाद उसी रात को षिश्यों के पास आए; उनके बीच खड़े होकर उनसे कहा, ‘‘तुम्हें षान्ति मिले’’ ! यह कहते हुए ईसा ने अपने हाथ और अपनी बग़ल उन्हें दिखायी। प्रभु को देख कर षिश्य आनन्दित हो उठे। ईसा ने उनसे फिर कहा, ‘‘तुम्हें षान्ति मिले’’ (योहन 20: 19 - 22)। इस प्रकार ईसा ने अपने षिश्यों के मन से संदेह एवं दुःख दूर कर, उन्हें आनन्द प्रदान किया। षिश्यों ने पुनरुत्थित प्रभु के प्यार एवं महत्व का अनुभव किया।

     

    पे्ररित थोमस की विष्वास-घोशणा

     

                    जब ईसा ने प्रेरितों को दर्षन दिये तब थोमस उनके साथ नहीं थे। इसलिए बाकी षिश्यों ने थोमस से कहा, ‘‘हमने प्रभु को देखा है।’’ परन्तु थोमस ने कहा, ‘‘जब तक मैं उनके हाथों में कीलों का निषान न देख लूँ, कीलों की जगह पर अपनी उँगली न रख दूँ और उनकी बगल में अपना हाथ न डाल दूँ तब तक मैं विष्वास नहीं करूँंगा’’ (योहन 20: 25)। थोमस की इस प्रतिक्रिया के आधार दो थे: पलहा, बाकी षिश्यों को पुनरुत्थान का अनुभव मिलने पर भी थोमस को नहीं मिलने की वेदना; दूसरा, पुनरुत्थान का अनुभव पाने की तीव्र इच्छा। थोमस एक ऐसे प्रेरित थे जो अपनी जान गँवा देने पर भी गुरु को नहीं त्यागना चाहते थे। जब ईसा लाज़रुस को जिलाने जा रहे थे तब षिश्यों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया; इस पर थोमस ने हिम्मत के साथ कहा, ‘’हम भी चलें और इनके साथ मर जायें‘’ (योहन 11: 16)।

                    आठ दिन बाद उनके षिश्य फिर घर के भीतर थे और थोमस उनके साथ थे। द्वार बन्द होने पर भी ईसा उनके बीच आकर खडे हो गये और बोले: ‘‘तुम्हें षान्ति मिले।’‘ तब उन्होंने थोमस से कहा: ‘‘अपनी उँगली यहाँ रखो। देखो - ये मेरे हाथ हैं। अपना हाथ बढ़ाकर मेरी बग़ल में डालो और अविष्वासी नहीं बल्कि विष्वासी बनो’’ (योहन 20: 26 - 27)। पुनरुत्थान का अनुभव पाकर षिश्यत्व की पूर्णता की ओर बढ़ने के लिए ईसा थोमस को आमंत्रित कर रहे थे।

     

    मेरे प्रभु ! मेरे ईष्वर !

     

                    ईसा के इन वचनों को सुनते ही प्रेरित थोमस ने कहा: ‘‘मेरे प्रभु ! मेरे ईष्वर’’ ईसा ने उनसे कहा: ‘‘तुम इसलिए विष्वास करते हो कि तुमने मुझे देखा है ? धन्य हैं वे, जो बिना देखे ही विष्वास करते हैं’’ (योहन 20: 28 - 29)। प्ररित थोमस ईसा को अपना ‘प्रभु एवं ईष्वर’ स्वीकार कर रहे थे। विष्वास की सबसे उत्कृश्ट घोशणा थी यह।

                    ईष्वरीय प्रकटीकरण का प्रत्युत्तर है विष्वास। ‘‘ईसा प्रभु है - यह हृदय से विष्वास करना और मुख से स्वीकार करना ही विष्वास की घोशणा है (रोमियों 10: 9)।

     

    मसीहानुभव

     

                    षिश्य वही है जो गुरु के साथ रहकर, गुरु को समझकर गुरु के प्यार का अनुभव करता है। ईसा भी षिश्यों को सदा अपने साथ रखते थे और पढ़ाते थे; चमत्कारों एंव चिह्नों में उन्हें भी भागीदार बनाया; स्वर्गराज्य के प्रति अपनी भावनाएँ उनको प्रकट कीं। इस प्रकार ईसा ने षिश्यों को अनुभव करने का अवसर दिया कि ‘‘ईसा स्वयं कौन हैं ?’’

                    ईसा की घोशणा वे ही कर सकते हंै जिन्होंने ईसा के साथ रहकर उनका अनुभव किया हांे। प्रेरित संत योहन इसी मसीहानुभव को षिश्यों के प्रवचन का आधार बताते हैं। ’’हमारा विशय वह षब्द है, जो आदि से विद्यमान था। हमने उसे सुना है, हमने उसे अपनी आँखोें से देखा है। हमने उसका अवलोकन किया और अपने हाथों से उसका स्पर्ष किया है‘‘ (1 योहन 1: 1)। यूदस इसकारियोती द्वारा खोये हुए षिश्यत्व के स्थान की पूर्ति में नए व्यक्ति को चुनने के लिए मसीहानुभव को ही प्रेरित पेत्रुस आधार बताते हैं। पेत्रुस ने कहा, ‘‘वह प्रेरित, योहन के बपतिस्मा से लेकर प्रभु के स्वर्गारोहण तक जो लोग बराबर हमारे साथ थे उनमें से एक होना चाहिए’’ (प्ररित चरित 1: 22)।

     

     

    षंाति का अभिवादन

     

                    जब कभी पुनरुत्थित ईसा अपने को प्रकट करते थे तब वे यही अभिवादन करते थे, ‘‘तुम्हें षांति मिले।’’ पवित्र

    बलिदान में याजक कईं बार समूह को यह अभिवादन देता है। जब याजक अभिवादन करता है, ‘आप लोगों को षांति’ तब समूह जबाव देता है, ‘और आपको भी’। यह अभिवादन सूचित करता है कि ईसा जो षांति है, हमारे साथ रहे।

                    हमारे पिता प्रेरित सन्त थोमस ने जो विष्वास की घोशणा की थी वह हमारी भी हो जाए। हम ईसा को अपना प्रभु और ईष्वर मानकर स्वीकार करें । हम ईसा के साथ और ईसा के लिए जीवन बिताएँ।

     

     

    हम प्रार्थना करें

     

    हे प्रभु मसीह, भारत को अनेक मिषनरियों को प्रदान कीजिए

    जो हमारे पिता प्रेरित  संत थोमस के आदर्ष के अनुसार

    आपके साथ मरने को तैयार हों।

     

    हम गायें

    गीत

     

    स्तुति होवे पिता, पुत्र की और पवित्रात्मा की

                    प्रेरित थोमस बोले प्रभु संग हम भी जाके मरें

                    भारत भू पर षूल से मारे लहू गवाह बने

                    प्रेमी पिता तव विनती निरन्तर हम पर छाई रहे।।

     

    कविता

     

    धीरता सह भारत भू में, तात ने दी है सुवार्ता

    अंत में छोड़ा रक्त के साथ, इस धरती का थामा भू

    तब प्रार्थनायें, तात प्रिय, हमारे लिए भी साया था।।

     

    ईष-वचन पढ़ें और वर्णन करें

     

    योहन 20: 19-29

     

     

    मार्गदर्षन के लिए एक पवित्र वचन

     

    ‘‘क्या, तुम इसलिए विष्वास करते हो कि तुमने मुझे देखा है ?

    धन्य हैं वे, जो बिना देखे ही विष्वास करते हैं’’ (योहन 20: 29)

     

    हम करें

     

    ्रेरित संत थोमस के बारे में हमारी परम्परा में प्रचलित एक कहानी लिखिए।

     

    मेरा निर्ण

     

    मैं बार-बार दोहराऊँगा/गी, ‘‘मेरे प्रभु ! मेरे ईष्वर’’!