पाठ 9
ईसा ने क्षमा करना सिखाया
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कठोर पीड़ा सहते हुए क्रूस पर टंगे रहते समय भी ईसा ने हमें एक अनमोल आदर्ष दिया। उन्हें इतनी क्रूरता से जिन लोगों ने सताया था उनके लिए ईसा पिता के पास मध्यस्थ बने; क्रूस पर ईसा ने यह प्रार्थना की, ‘‘पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं’’ (लूकस 23: 34)। उन्होंने ईसा को कोडे लगाये, काँटों का मुकुट पहनाया, क्रूस पर ठोक दिया, फिर वे प्रभु की हँंसी उडाते रहे। उन्हीं द्रोहियों को ईसा ने क्षमा किया, उन्हीं के लिए प्रार्थना की। इस प्रकार षत्रुओं को भी प्रेम करने की महान आदर्ष ईसा हमें दे गये।
नई षिक्षा
ईसा के समय तक यही नियम था: ‘‘आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत’’। परन्तु ईसा ने इसको बदला। ईसा ने सिखाया: ‘‘यदि कोई तुम्हारे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, तो दूसरा भी उसके सामने कर दो और यदि कोई तुम्हें आधा कोस बेगार में ले जाये, तो उसके साथ कोस भर चले जाओ’’ (मत्ति 5: 39, 41)। ईसा ने हमें सिखाया कि हमें अपने षत्रुओं से प्रेम रखना चाहिए और जो हमें सताते हैं, उनके लिए प्रार्थता करनी चाहिए। वे हमसे दृढ़ता से कहते हैं कि इस प्रकार हम अपने स्वर्गिक पिता की सन्तान बन जाते हैं, जो सबों पर, भले और बुरे -दोनों पर सूर्य उगाता है तथा धर्मी और अधर्मी -दोनों पर पानी बरसाता है।
ईसा ने पूछा, ‘‘यदि तुम उन्हीं से प्रेम करते हो, जो तुमसे प्रेम करते हैं, तो पुरस्कार का दावा कैसे कर सकते
हो ?क्या, नाकेदार भी ऐसा नहीं करते ?और यदि तुम अपने भाइयों से ही नमस्कार करते हो, तो क्या बडा काम करते हो?क्या, गैर-यहूदी भी ऐसा नहीं करते?’’(मत्ति 5: 46 - 47)। ईसा यह चाहते हैं कि लोग अकसर जैसे व्यवहार करते हैं, उससे भी बहतर होना चाहिए अपने षिश्यों का व्यवहार। ईसा ने कहा, ‘‘मैं तुम लोगों से कहता हूँ - यदि तुम्हारी धार्मिकता षास्त्रियों और फरीसियों की धार्मिकता से गहरी नहीं हुई, तो तुम स्वर्ग-राज्य में प्रवेष नहीं करोगे’’ (मत्ति 5: 20)। ‘‘तुम पूर्ण बनो, जैसे तुम्हारा स्वर्गिक पिता पूर्ण है’’ (मत्ति 5: 48) - यही षिक्षा ईसा हमें देते हैं।
असीम क्षमा
ईसा ने सिखाया कि क्षमा की सीमा न होनी चाहिए। एक दिन सब षिश्यों के प्रतिनिधि के रूप में पेत्रुस ने ईसा से पूछा, ‘‘प्रभु, यदि मेरा भाई मेरे विरुद्ध अपराध करते जाये, तो मैं कितनी बार उसे माफ करुँ ?सात बार तक ?’’ ईसा ने उत्तर दिया,‘‘मैं तुमसे नहीं कहता - सात बार तक, बल्कि सत्तर गुना सात बार तक’’। (मत्ति 18: 21-22)। इससे प्रभु यह सिखाते हैं कि हमें बेहद क्षमा करनी चाहिये। यदि कोई एक ही दिन में कई बार आ कर माफ़ी माँगे, तो भी हमें हर बार क्षमा करनी है - प्रभु की षिक्षा यह है।
अपराधों का मोचन
‘‘हे हमारे पिता, जो स्वर्ग में है......’’, इस प्रार्थना में हम यह विनती करते हैं - ‘हमारे अपराध तथा पाप हमें क्षमा कर जैसे हमने भी अपने अपराधियों को क्षमा किया है। हमारे बहुतेरे पापों की माफी ईष्वर से हम चाहते हैं, माँगते हैं; तो हमें चाहिये कि पहले हम उन लोगों को क्षमा करें जिन्होंने हमारे विरुद्ध अपराध किये हैं। इस बात को समझाने के लिए ईसा ने एक सुन्दर दृश्टान्त प्रस्तुत किया:
एक राजा के एक नौकर था जो उनको लाखों रुपये का कर्जदार निकला। वह निर्धारित समय पर रुपये अदा नहीं कर सका। तो राजा ने आदेष दिया कि उसका सारा जायदाद बेचकर रुपये वसूल किये जायें। राजा के चरणों पर गिर कर नौकर बोला, ‘‘प्रभुवर मुझे क्षमा कीजिये, थोडा समय दीजिए, मैं सब कुछ चुका दूँगा’’। राजा को तरस आया और उन्होंने उसका कर्ज माफ कर दिया। लेकिन उस नौकर ने क्या किया! बाहर आने पर वह अपने एक सह-सेवक से मिला जो उसका लगभग सौ रुपये का कर्जदार था। उसने उसका गला घोंट कर कहा, ‘‘अपना पूरा कर्ज चुका दो।’’ उस सह-सेवक ने भी हाथ जोड कर निवेदन किया, ‘‘मुझे थोडा समय दीजिए, मैं सब कुछ चुका दूँगा।’’ परन्तु उसने बिलकुल नहीं माना; आगे, उसने अपने सह-सेवक को तब तक बन्दीगृह में डलवा दिया जब तक वह पूरा कर्ज न चुका दे।
राजा को अन्य सेवकों से सारी बातें मालूम पड गयीं। उन्होंने उस सेवक को बुलाकर कहा,‘‘दुश्ट सेवक, तुम्हारे अनुनय-विनय पर मैंने तुम्हारा वह सारा कर्ज माफ़ कर दिया था; तो जिस प्रकार मैंने तुम पर दया की थी, क्या उसी प्रकार तुम्हें भी अपने सह-सेवक पर दया नहीं करनी चाहिए थी?’’ राजा बहुत क्रुद्ध हुआ और उसे बन्दी-गृह में डलवा दिया जब तक वह पूरा कर्ज न चुका दे। यह दृश्टान्त सुनाने के बाद ईसा ने खुले रूप में बतायाः ‘‘यदि तुममें हर एक अपने भाई को पूरे हृदय से क्षमा नहीं करेगा, तो मेरा स्वर्गिक पिता भी तुम्हारे साथ ऐसा ही करेगा’’ (मत्ति 18: 35)।
ईसा का आदर्ष
ईसा ने न केवल क्षमा करना सिखाया परन्तु स्वयं ही क्षमा करते हुए हमें आदर्ष दिखाया। षास्त्री और फरीसी लगातार ईसा की आलोचना करते और उनपर दोश लगाते थे। लेकिन प्रभु उनके साथ सहिश्णुतापूर्ण व्यवहार करते थे; उन्होंने दयापूर्वक सबको पाप-क्षामा प्रदान की। यूदस चुम्बन दे कर प्रभु के साथ विष्वासघात करने आया; ईसा ने उसे ‘‘मित्र’’ पुकारा। पेत्रुस ने तीन बार ईसा का तिरस्कार किया; प्रभु ने उसे कलीसिया का षीर्श बनाया; जिन्होंने निश्ठूर रूप से उन्हें क्रूस पर चढ़ाया उन लोगों को ईसा ने पूर्ण रूप से क्षमा किया और उनके लिये प्रार्थना की ।
ईसा के साथ दो डाकू उनके बाएँ और दाएँ क्रूस पर चढ़ाये गये थे; बाएँ बाला ईसा की हँसी उडाता था; तब दाएँवाले ने उसे डाँटा और ईसा से विनती की, ‘‘ईसा जब आप अपने राज्य में आयेंगे, तो मुझे याद कीजियेगा’’ (लूकस 23: 42)। ईसा ने उसके सब पापों को क्षमा कर यह वादा किया: ‘‘तुम आज ही परलोक में मेरे साथ होगे’’।
बलि समर्पण और क्षमा
पवित्र बलिदान अर्पित करने के लिए हमें सबों को क्षमा करके, मेल-मिलाप स्थापित करके, मन को पवित्र और निर्मल बनाना जरूरी है। क्षमा किये बिना, औरों से घृणा रखते हुए, बलिदान चढ़ाएँ, तो वह ईष्वर के सामने स्वीकार्य नहीं है। अपनी आत्मबलि के पहले क्रूस पर टंगे हुए ईसा ने अपने षत्रुओं को क्षमा किया। ईसा ने कहा है, ‘‘जब तुम वेदी पर अपनी भेंट चढ़ा रहे हो और तुम्हें वहाँ याद आये कि मेरे भाई को मुझसे कोई षिकायत है, तो अपनी भेंट वहाँ वेदी के सामने छोड़कर पहले अपने भाई से मेल करने जाओ और तब आकर अपनी भेंट चढ़ाओ’’ (मत्ति 5: 23 - 24)।
इसलिए हमें पवित्र बलिदान के आरंभ में ही अपने मन की जाँच कर के देखना चाहिए; यदि यह याद आती है कि हमें किसी के साथ कुछ तकलीफ है, तो वहीं मन ही मन उस व्यक्ति को क्षमा करना चाहिए। इस प्रकार निर्मल मन से हम पवित्र बलिदान आरंभ करें। पवित्र बलिदान में परस्पर षांति का अभिवादन और परम प्रसाद के पहले की मेल मिलाप की घोशणा-प्रार्थना-माला दूसरों को क्षमा करने का आह्वान देते हैं। आपस में षान्ति का अभिवादन करने का तात्पर्य यह है कि हम किसी के साथ द्वेश नहीं रखते हैं । घोशणा-प्रार्थना-माला में हम इस कृपा के लिए निवेदन करते हैं कि हम अपने अन्तःकरण को मनमुटाव और कलह से षुद्ध करके तथा आत्माओं को क्रोध और बैर से मुक्त करके बलिदान अर्पित कर सकें।
सन्त पौलुस हमें यह उपदेष देते हैंः ‘‘आप एक दूसरे को क्षमा करें, जैसे प्रभु ने आप लोगों को क्षमा कर दिया’’ (कलोसियों 3ः13)। ईसा की षिक्षा और आदर्ष के अनुसार हम क्षमाषील बन जाएँ।
हम प्रार्थना करें
हे प्रभु, क्रूस पर कठोर पीडाएँ सहते हुये भी
आपने अपने सताने वालों के लिए प्रार्थना की;
बुराई को भलाई से जीतने की षक्ति हमें प्रदान कीजिए।
हम गायें
गीत
सत् कर्मों के पथ होकर, सत्य की राहों से होकर
धैर्य, विनम्रता आदि से, विष्वास की ही सरणी से
प्यार के पग पग रख दिन-दिन,
लक्ष्य की ओर बढ़ाओ कदम।।
कविता
कृपापूर्ण है मार्ग अपना, हम सब जायें भाई-बहनों
बीच हमारे मार्गों पर, विष्वास लोगों के किरणों
सत्य, नीति, सहिश्णुता प्यारे, नित्य सानतन हम में हो
प्रभु की किरणें सामने हमारे, विषुद्धि की ओर ले जायें।।
ईष-वचन पढ़ें और वर्णन करें
मत्ति 18: 21 - 35
मार्गदर्षन के लिए एक पवित्र वचन
यदि तुम दूसरों के अपराध क्षमा करोगे,
‘‘तो तुम्हारा स्वर्गिक पिता भी तुम्हें क्षमा करेगा’’ (मत्ति 6: 14)।
हम करें
क्षमा करने के फलस्वरूप आपको आनन्द मिला - ऐसा एक अनुभव लिखिए।
मेरा निर्णय
यदि कोई मुझे दुःख देगा तो मैं बदला नहीं लूँगा/गी,
परन्तु उसे क्षमा करुँगा/गी।