पाठ 4
स्वर्गराज्य का सुसामाचार सुनाने वाले ईसा
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‘‘ईसा नाज़रेत आये जहाँ उनका पालन-पोशण हुआ था। विश्राम के दिन वह अपनी आदत के अनुसार सभागृह गये । वह पढ़ने के लिए उठ खडे हुए और उन्हें नबी इसायाह की पुस्तक दी गयी। पुस्तक खोलकर ईसा ने वह स्थान निकाला जहाँ लिखा है: ‘प्रभु का आत्मा मुझ पर छाया रहता है, क्योंकि उसने मेरा अभिशेक किया है। उसने मुझे भेजा है, जिससे मैं दरिद्रों को सुसमाचार सुनाऊँ, बन्दियों को मुक्ति का और अन्धों को दृश्टिदान का सन्देष दूँ, दलितों को स्वतन्त्र करुँ और प्रभु के अनुग्रह का वर्श घोशित करूँ ।’ ईसा ने पुस्तक बन्द कर दी और वह उसे सेवक को दे कर बैठ गये। सभागृह के सब लोगों की आँखें उन पर टिकी हुई थीं। तब वह उनसे कहने लगे, ‘धर्मग्रन्थ का यह कथन आज तुम लोगों के सामने पूरा हो गया है।’’ (लूकस 4: 16-21)
दूँ, दलितों को स्वतन्त्र करुँ और प्रभु के अनुग्रह का वर्श घोशित करूँ ।’ ईसा ने पुस्तक बन्द कर दी और वह उसे सेवक को दे कर बैठ गये। सभागृह के सब लोगों की आँखें उन पर टिकी हुई थीं। तब वह उनसे कहने लगे, ‘धर्मग्रन्थ का यह कथन आज तुम लोगों के सामने पूरा हो गया है।’’ (लूकस 4: 16-21)
इस संसार में ईसा को जो दौत्य निभाना था, उसे वे इस वचन द्वारा अभिव्यक्त कर रहे थे। ईसा संसार में इसलिए आये कि वे हम मनुश्यों को सभी प्रकार की गुलामी से मुक्त करें। यह वचन यह स्पश्ट करता है कि मसीह मानवजाति के सम्पूर्ण मुक्तिदाता हैं । प्रभु के आत्मा से पूरित और अभिशिक्त होकर ईसा ने समस्त मानवजाति के सम्पूर्ण मुक्ति के लिए प्रयास किया। अपना दौत्य निभाने में ईसा ने मुख्य रूप से पाँच कार्य किये।1. दरिद्रों को सुसमाचार
दरिद्रों को सुसमाचार सुनाना था ईसा का प्रथम कर्तव्य । उन्होंने सिखाया कि धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं; स्वर्गराज्य उन्हीं का है ;मत्ती 5: 3द्ध। उनके जन्म, जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान दरिद्रों के लिए सुसमाचार था । केवल वे नहीं जो आर्थिक रूप से गरीब हंै, बल्कि जो षारीरिक और मानसिक रुप से
तकलीफ और दबाव में पड़े हुए हैं, वे भी वास्तव में दरिद्र हैं। उनका एकमात्र सहारा ईष्वर ही है। भौतिकता और धन में आसरा रखने वाले नहीं, बल्कि जो ईष्वर की करुणा और परिपालन में पूरा आसरा रखते हंै, वे हैं आत्मा में दीन-हीन।
2. बन्दियों को मुक्ति
ईसा इसलिए आये कि वे हमें षैतान की दासता और पाप के बन्धन से छुडायें। बीमारी और बेईमानी, षोशण, पाखण्ड आदि सामाजिक बुराइयों से ईसा हमें मुक्त करते हैं। अर्धांगरोगी को चंगा करके ईसा ने यह सत्य व्यक्त किया। अर्धांगरोगी से ईसा ने यही कहा था, ‘बेटा, तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हंै (मारकुस 2: 5)। केवल ईष्वर को ही पाप क्षमा करने का अधिकार है। चूँकि षास्त्री लोग नहीं समझ सके कि ईसा ईष्वर के पुत्र हैं, इसलिए वे सोचते थे, ‘यह ईष निन्दा करता है’। यह समझ कर ईसा बोलेः ‘‘तुम लोग यह जान लो कि मानव पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार मिला है’’- वे अर्धांगरोगी से बोले - ‘‘मैं तुमसे कहता हूँ, उठो और अपनी चारपाई उठाकर घर जाओ।’’ वह उठ खडा हुआ और चारपाई उठाकर तुरन्त सबों के देखते-देखते बाहर चला गया। (मारकुस 2: 10 - 11)
एक दिन ईसा गलीलिया के कफरनाहुम नगर आये। वहाँ सभागृह में एक मनुश्य था जो अषुद्ध आत्मा के वष में था। वह ऊँचे स्वर से चिल्ला उठा, ‘‘ईसा नाजरी, आपको हमसे क्या ?क्या आप हमारा सर्वनाष करने आये हैं ?मैं जानता हँू कि आप कौन है - ईष्वर के भेजे इुए परमपावन पुरुश।’’ ईसा ने यह कहते हुए उसे डाँटा, ‘‘चुप रह, इस मनुश्य में से बाहर निकल जा।’’ अपदूत ने सबके देखते-देखते उस मनुश्य को भूमि पर पटक दिया और उसकी कोई हानि किये बिना वह उसमें से बाहर निकल गया। सब विस्मित हो गये और आपस में कहते रहे, ‘‘यह क्या बात है; वे अधिकार तथा सामथ्र्य के साथ अषुद्ध आत्माओं को आदेष देते हैं और वे निकल जाते हैं’’ (लूकस 4: 31-36)। इस प्रकार सुसमाचार में हम देखते हैं कि ईसा केवल पाप और बीमारी के बन्धनों से नहीं, किन्तु षैतान के अनेक बन्धनों से भी मुक्ति देते हैं।3. अन्धों को दृश्टिदान
ईसा अनेक अन्धों को दृश्टि प्रदान करते हैं। जब अन्धे यह पुकारते हुए ईसा के पास आये, ‘दाऊद के पुत्र ईसा, मुझ पर दया कीजिए’, तब ईसा ने उनको दृश्टि प्रदान की। फिर एक बार रास्ते में ईसा ने एक मनुश्य को देखा जो जन्म से अन्धा था। उनके षिश्यों ने उनसे पूछा, ‘‘गुरुवर, किसने पाप किया था, इसने अथवा इसके माँ-बाप ने, जो यह मनुश्य जन्म से अन्धा है ?’’ ईसा ने उत्तर दिया, ‘‘न तो इस मनुश्य ने पाप किया और न इसके माँ-बाप ने । यह इसलिए जन्म से अन्धा है कि इसे चंगा करने से ईष्वर का सामथ्र्य प्रकट हो जाये।’’ इसके बाद उन्होंने भूमि पर थूका, थूक से मिट्टी सानी और वह मिट्टी अन्धे की आँखों पर लगाकर उससे कहा, ‘‘जाओ, सिलोआम के कुण्ड में नहा लो।’’ सिलोआम का अर्थ है ‘प्रेशित’। वह मनुश्य गया और नहा कर वहाँ से देखता हुआ लौटा। (योहन 9: 1-8)
फरीसियों ने उसे सभागृह से बाहर निकाला, यह जानकर ईसा ने कहा, ‘‘मैं लोगांे के पृथक्करण का निमित बनकर संसार में आया हूँ जिससे जो अन्धे हैं, वे देखने लगें और जो देखते हैं, वे अन्धे हो जायें। ‘‘जो फरीसी उनके साथ थे, वे यह सुनकर बोले, क्या हम भी अन्धे हैं ?’’ ‘‘ईसा ने उनसे कहा, यदि तुम लोग अन्धे होते तो तुम्हें पाप नहीं लगता, परन्तु तुम तो कहते हो कि हम देखते हैं; इसलिए तुम्हारा पाप बना रहता है (योहन 9: 39-41)। यहाँ ईसा आत्मीय अंधता को सूचित करते हैं। ईसा ने न केवल षारीरिक अंधता को हटाया बल्कि अज्ञान की अंधता को भी ज्ञानवाणी से दूर किया। जो लोग अन्याय, षोशण, असत्य आदि धार्मिक अंधकार में डूबे थे उनके खिलाफ आवाज़ उठाकर एवं सत्य का वचन देकर उन्हें प्रकाष की ओर लाने के लिए ईसा ने प्रयास किया। जिन्होंने भी सहयोग किया, उन सबों ने ज्योति के प्रभु की स्तुंित करते हुए मुक्ति का अनुभव पा लिया।
4. दलितों को स्वतंत्रता
ईसा इसलिए आये कि वे पापों की गुलामी की जंजीरों को तोड़ डालें। प्रभु ने पापिनी स्त्री को पाप की गुलामी से मुक्त किया और यह कहते हुए भेजा, ‘अब से फिर पाप नहीं करना’। जब ईसा ने अर्धांगरोगी से कहा, ‘बेटा, तुम्हारे पाप क्षमा हो गये हंै’, तब वह पाप और रोग की गुलामी से मुक्त होकर अपनी चारपाई उठाता हुआ चला गया।
सत् पथ पर चलकर अनंत सौभाग्य में पहुँचाने के मार्गदर्षन के रूप में ईष्वर ने मनुश्य को नियम दिया। किन्तु जब गलत व्याख्या देकर नियम को केवल बाह्य आचरण में सीमित रखा गया, तो वह दमनकारी बन गया। इसको नेतृत्व देने वाले फरीसियों और षास्त्रियों को ईसा ने डाँटा। विश्राम के दिन चंगाई देते हुए ईसा ने सिखाया कि विश्राम दिवस मनुश्य के लिए है न कि मनुश्य विश्राम दिवस के लिए। ईसा इसलिए आये कि पाप, रोग और नियम के बन्धनों से मुक्त कर हमें ईष्वर की संतानों की स्वतंत्रता की ओर ले जायें। ईसा ने अपने पास आये हुए हर एक को मानसिक, षारीरिक और आत्मिक गुलामी से मुक्त कर आज़ादी का अनुभव प्रदान किया।
5. प्रभु के अनुग्रह का वर्श
ईसा ने प्रभु के अनुग्रह के वर्श की घोशणा की। प्रभु के अनुग्रह का वर्श वह है जिसमें कर्ज़ माफ किये जाते हैं, अनाथों और विधवाओं पर दया की जाती है, गरीबों के साथ अपनी संपत्ति बाँटने के लिए लोग तैयार हो जाते हैं, अन्याय और असमानता का जुआ तोड़ दिया जाता है तथा बैर और प्रतिषोध से लोग मुक्त हो जाते हंै। समानता, प्रेम और भाईचारे से सम्पन्न एक अच्छे समूह का निर्माण था ईसा के दौत्यों में से एक। स्वर्गराज्य का सुसमाचार सुनाते हुए ईसा ने सिखाया कि यह कैसे संभव होगा।
स्वर्गराज्य की घोशणा करने वाले ईसा
‘‘ईष्वर का राज्य निकट आ गया है, पष्चाताप करो, सुसमाचार में विष्वास करो’’ (मारकुस 1ः14,15)। यह घोशणा करते हुए ईसा ने अपना सार्वजनिक जीवन षुरू किया। पर्वत पर, रास्ते के किनारे और खेतों में भी उन्होंने इस सुसमाचार की घोशणा की। रोटियों के चमत्कार, रोगियों और अषुद्ध आत्मा से पीड़ित लोगों की चंगाई आदि नाना प्रकार के अद्भुत कार्य करते हुए ईसा ने स्वर्गराज्य के सुसमाचार का प्रमाण दिया। उनके वचन, कर्म और सान्निध्य में ईष्वर का राज्य लोगों को प्रकट हुआ।
संत पौलुस हमें सिखाते हैं, ‘‘ईष्वर का राज्य खाने-पीने का नहीं बल्कि वह न्याय, षान्ति और पवित्रात्मा द्वारा प्रदत्त आनन्द का विशय है’’ (रोगियों 14ः17)। ‘स्वर्ग में विराजमान हमारे पिता’- प्रार्थना में हम दोहराते हैं, ‘तेरा राज्य आये’। ईष्वर को पिता और सारी मानव जाति को भाई-बहनों के रूप में देखकर, प्रेम करना और अपना सब कुछ परस्पर बाँटना-ऐसी एक स्थिति है स्वर्गराज्य। ईष्वर की इच्छा निभाते हुए जीने वालों का समूह है वह। पृथ्वी पर ऐसी स्थिति का निर्माण करना है कलीसिया का दौत्य। खमीर की तरह होकर, इस पृथ्वी पर कार्य करते हुए अपने सान्निध्य, प्रार्थना और कर्मों द्वारा संसार में ईष्वर का राज्य फैलाने का प्रयत्न कलीसिया करती है। कलीसिया की संतानों, यानी हमारे, द्वारा ही यह प्रयत्न सफल हो जाता है।
सुसमाचार
ईसा की कही हुई बातें, उनके द्वारा किये गये कार्य, उनके जन्म एवं बचपन के विशय में इकट्ठी की गयी जानकारी आदि ईष्वर की प्रेरणा से ईसा के षिश्यों (प्रेरितों) ने और उनके षिश्यों ने लिखा हैै। इस प्रकार रचा गया पवित्र्र ग्रन्थ है सुसमाचार। संत मत्ती, संत मारकुस, संत लूकस और संत योहन के नाम पर हमें चार सुसमाचार मिले हंै। ये हंै नये विधान की पहली चार किताबें। जब हम इन सुसमाचारों का मन लगाकर अध्ययन करते हैं तब ईसा द्वारा घोशित ईष्वर के राज्य की विषेशतायें हमें स्पश्ट हो जाती हैं।
हम प्रार्थना करें
हे मसीह, आपने कहा, ‘दरिद्रों को सुसमाचार सुनाया जाता है’;
आपके आषीर्वचन के अनुसार जीवन बिताकर आपके सत्य के
साक्षी बनने की कृपा हमें दीजिए।
हम गायें
गीत
पिता, पुत्र, पवित्रात्मा की जय हो बारम्बार
रोगों से और दुःख संकट से पीड़ित लोगों पर
प्रभु ने की करुणा।
दुश्टात्मा की गुलामी से मानव को मुक्ति दी
षान्ति एवं चंगाई की किरणें बरसायीं
प्रभु ने बरसायीं।
लकवा रोग से पीड़ित, तन और मन से व्याकुल भी
प्रभु की दया के पात्र बने थे, उनको षान्ति मिली
प्रभु की षान्ति मिली।।
ईशवचन पढ़े और वर्णन करें
योहन 9: 1 - 34
मार्गदर्षन के लिए एक पवित्र वचन
‘‘जो लोग मुझे प्रभु! प्रभु ! कहकर पुकारते हंै, उनमें सब-के-सब
स्वर्गराज्य में प्रवेष नहीं करेंगे। जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है,
वही स्वर्गराज्य में प्रवेष करेगा’’ (मत्ती 7: 21)।
हम करें
ईसा द्वारा अन्धों को दृश्टिदान के विवरण सुसमाचारों में हैं;
उनमें से किसी एक का अभिनय अपनी कक्षा में कीजिए।
मेरा निर्णय
‘‘दाऊद के पुत्र ईसा, मुझ पापी पर दया कीजिए’’;
यह ईसा-नामजप मैं बार-बार दोहराऊँगा/गी।