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    एक बार ईसा यात्रा करते करते थक गए और एक कँुए के किनारे
    बैठ गए। उस समय एक समारी स्त्री पानी भरने वहाँ आई। उस स्त्री
    से बातचीत करते समय ईसा ने कहाः
    (योहन 4ः13-14)
    ‘‘जो यह पानी पीता है उसे
    फिर प्यास लगेगी, किन्तु जो मेरा दिया हुआ जल पीता है उसे फिर
    कभी प्यास नहीं लगेगी। जो जल मैं उसे प्रदान करूँगा वह
    उसमें वह स्रोत बन जायेगा, जो अनन्त जीवन के लिए उमड़ता रहता
    है’’ ।
     
    प्यासे लोगों को ईसा ने संजीवन जल का वादा किया है।
    वह संजीवन जल है ईश्वरीय जीवन या कृपादान। जो इस कृपादान को
    स्वीकार करते हैं, वे अनन्त जीवन के हकदार बन जाते हैं। अनन्त
    जीवन का यह कृपादान ईसा कलीसिया द्वारा हमको देते हैं।

    क्या आपने तालाब से खेतों में पानी पहुँचाने की
    नहरें देखी हैं ? ये नहरें तालाब से निकलकर आसपास के खेतों
    को जल प्रदान करती हैं। यह जल पौधों को सींचता है। वे
    बढ़ कर फल देते हैं। उसी प्रकार संस्कार वे नहरें हैं जिनके
    द्वारा हमें ईश्वरीय जीवन दिया जाता है। इन नहरों का स्रोत
    ईसा मसीह ही है।
     
    ‘संस्कार’ शब्द ‘कूदाशा’ सिरियाई शब्द की परिभाषा है - इसका अर्थै ‘‘पवित्र करने का कर्म’’ । संस्कार पापमुक्ति 
    और ईश्वरीय जीवन देकर हमें पवित्र करते हैं। 
     
    संस्कार वह दृश्य चिह्न है जो अदृश्य ईश्वरीय जीवन देकर हमें
     
    ज्ञानस्नान
    तैलाभिषेक
    पवित्र बलिदान
    मेल-मिलाप
    रोगीलेपन
    विवाह
    पुरोहिताभिषेक (हस्तारोपण शुश्रूषा)
     
    पवित्र करता है और शक्तिशाली बनाता है जिसकी स्थापना प्रभु
    ईसा मसीह ने की और परिकर्म कलीसिया करती है।
     
    स्ंास्कारों में पहले तीन संस्कार प्रवेशक संस्कार 
    कहलाते हैं। इनके द्वारा ही एक व्यक्ति ईसा से संबंध स्थापित
     

    हम गायें

     
    कृपासागर की राहों को
    खोला, हे प्रभु येसु तूने।
    पश्चात्तापी पापी जनों को
    आनन्द देता तू है महान।।
     

     

    हम प्रार्थना करें

     
    हे प्रभु, आपने ईश्वरीय जीवन में हमें बढ़ाने के लिए
    संस्कारों की स्थापना की। हमें यह वरदान दीजिए कि हम
    योग्यता के साथ संस्कारों को स्वीकार करंे।
     

    हम ईश वचन पढ़ें

    (योहन 4ः1-15)
     

     

    याद करें

     
    ‘‘जो मेरा दिया हुआ जल पीता है,
    उसे फिर कभी प्यास नहीं लगेगी’’ (योहन 4ः14)।
     
     

    मेरा निर्णय

     
    मैं योग्यतापूर्वक और भक्ति भाव से
    संस्कारों को स्वीकार करूँगा/गी।

     

    हम करें

     
    छूटे हुए ढूँढ़ कर, क्रम से लिखिए।
     

    ज्ञानस्नान

     
    पवित्र बलिदान
    रोगीलेपन

     

    हम नाचें और गायें

     
    जीवन जल के झरनों को
    संस्कारों को प्रभु ने दिया।
    जीवन अनंत हमें देने
    पावन करने, बल देने।।
    प्रभु येसु के रहस्यों का
    अनुभव हमको देते हैं।
    उभारते वे कलीसिया
    प्यार के सेवक बनाते हैं।।
    जीवन के संस्कारों को
    भक्ति से हम ग्रहण करें।
    प्यार भरे हृदयों से हम
    वरदान पायें धन्य बनें।।