पाठ 4
पाप का फल - विनाश
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आदि माता-पिता को, जिन्होंने पाप किया, ईश्वर ने दण्ड दिया। आदम से ईश्वर ने कहा: तुम्हें कड़ी मेहनत करके जीना होगा। अपने माथा के पसीने से ही तुम रोटी खाओंगे। तुम्हारे पाप के फलस्वरूप धरती कांटे और ऊँटकटारे उगायेगी। हेवा से ईश्वर ने कहा: तुम दर्द के साथ प्रसव करोगी।
काइन को जिसने हाबिल की हत्या की ईश्वर ने दण्ड दिया। भूमि में काइन श्रापित बन गया। उसे आवारा की तरह पृथ्वी पर मारे - मारे फिरना पड़ा। खेती करता था, कुछ भी पैदा नहीं होता था।
जैसे समय बीतता गया, पाप बढ़ता भी रहा। प्रभु ने देखा कि पृथ्वी पर मनुष्यों की दुष्टता बढ़ गयी है और उनके मन में निरन्तर बुरे विचार और बुरी प्रवृत्तियाँ उत्पन्न होती हैं। उस समय के लोगों में नूह एक सदाचारी व्यक्ति था। वह ईश्वर को प्रीति कर जीवन बिताता था। ईश्वर नूह पर प्रसन्न हुए।
ईश्वर ने नूह से कहाः मैंने पृथ्वी के सब शरीरधारियों का विनाश करने का संकल्प किया है। तुम एक पोत बनाओ। मैं पृथ्वी पर एक जलप्रलय भेजने जा रहा हूँ। (उत्पत्ति 6:13-17)
नूह ने ईश्वर के कहनानुसार पोत बनाया। प्रभुने नूह से कहा: तुम अपने सारे परिवार के साथ पोत में प्रवेश करो। (उत्पत्ति 7:1)
नूह अपने परिवार के साथ पोत में चढ़ा। प्रभु के आदेश अनुसार सब पशुओं, पक्षिओं और पृथ्वी पर रेंगने वाले सब प्राणियों में से नर मादा के जोड़े को पोत में चढ़ाया। ईश्वर ने लगातार चालीस दिन और चालीस रात पृथ्वी पर पानी बरसाया। पृथ्वी पर जलप्रलय हुआ। पानी इतना बढ़ गया कि उसने उँचे पर्वतों को भी ढक लिया। पृथ्वी पर रहने वाले सब शरीर धारी मर गये - पशु, पक्षी, जंगली जानवर, कीड़े-मकोड़े तथा सब मनुष्य। नूह और उनके परिवार जो पोत में थे, बच गये।
ईश्वर ने इस प्रकार उस पीढ़ी का, जिसने पाप किया था, विनाश किया। लेकिन सदाचारी नूह और उनके परिवार को ईश्वर ने बचाया। जल प्रलय के बाद ईश्वर ने नूह को आशीर्वाद दिया। उनके साथ ईश्वर ने एक विधान स्थापित किया और उसके चिन्ह स्वरूप ईश्वर ने आकाश में इन्द्रधनुष बनाया।
नूह के पुत्रों के द्वारा पृथ्वी पर फिर मनुष्य प्रजातियां फैल गयीं। मनुष्य फिर ईश्वर का तिरस्कार करकें पाप करने लगे। उन्होंने एक दूसरे से कहा, आओ हम अपने लिए एक शहर बना लें और एक ऐसी मीनार, जिसका शिखर स्वर्ग तक पहुँचे। हम अपने लिए नाम कमा लें। (उत्पत्ति 11:4)
मनुष्य का मन घमण्ड से भर गया और अपनी कीर्ति कायम रखने के लिये वे मीनार बनाने लगे उन्होंने ईश्वर पर ध्यान नहीं दिया। ईश्वर को यह पसन्द नहीं आया। इसलिए ईश्वर ने उनकी भाषा में ऐसी उलझन पैदा किया कि वे एक दूसरे को न समझ पाये। इस प्रकार वे भिन्न भिन्न देशों में बिखर गये।
हम भी अपने पिता ईश्वर का मुकाबला करते हैं और उनके प्रेम को खारिज करते हैं। पाप का फल विनाश है। ईश्वर की निंदा करने से हमारा विनाश हो जाता है, हममें जो ईश्वरीय जीवन है, वह भी नष्ट हो जाता है। नूह के समान हमें भी ऐसा जीवन बिताना चाहिये जो ईश्वर को प्रीतिकर हो।
हम प्रार्थना करें
हे सृष्टिकर्ता ईश्वर, यह न होने दिजिये
कि में आपके विरुद्ध पाप करूँ
मुझे आपके इच्छानुसार जीने की आशिष दीजिए।
बाइबिल पाठ (उत्पत्ति 6:13-22)
मेरा बाइबिल वाक्य
चुनकर लिखें -
शब्द की थैली में से चुनकर लिखें।
1.पोत बनाने वाला व्यक्ति ………………………… चालीस
2.लगातार कितने दिन की वर्षा हुई ....................... इन्द्रधनुष
3.ईश्वर के विधान का चिन्ह ................................. बाबुल
4.मीनार किस जगह पर बना रहे थे ...................... नूह
5.नूह की कहानी पवित्र ग्रंथ की कौन सी पुस्तक में है ? उत्पत्ति
हम गायें
न्यायी एक नूह ने माना आदेश प्रभु का सारे मन से
पोत बनाया, पोत में ले लिया सब प्राणियों की जोड़ी जोड़ी।
घमण्डी विचार मन में बढ़ गया बाबूल मीनार नर ने बनाया। घमण्डियों को ईश ने गिराया घमण्डी विचार सबको गिराता।
क्रम में लिखिये
नीचे दी गई घटनाओं को घटना के क्रम से लिखिए।
आदम और हेवा ने ईश्वर की निन्दा की।
पृथ्वी पर जलप्रलय हुआ।
ईश्वर ने मनुष्य को बनाया।
बाबुल में मीनार बनाने लगे।
ईश्वर ने आकाश और पृथ्वी को बनाया।
काइन ने हाबिल की हत्या की।