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                           ईसा किसी दिन पहाड़ी पर चढ़े। वे जिनको चाहते थे, उनको उन्होंने अपने पास बुला लिया। वे उनके पास आये और ईसा ने उन में से बारह को नियुक्त किया, जिससे वे लोग उनके साथ रहें और वह उन्हें अपदूतों को निकालने का अधिकार देकर सुसमाचार का प्रचार करने भेज सकें (मारकुस 3: 13 - 19)। प्रेरितों की नींव पर ही ईसा ने कलीसिया की स्थापना की थी; कलीसिया प्रेरितिक होने का आधार यही है। ‘‘आप लोगों का निर्माण उस भवन के रूप में हुआ है, जो प्रेरितों तथा नबियों की नींव पर खड़ा है। और जिसका कोने का पत्थर स्वयं ईसा मसीह है। उन्हीं के द्वारा समस्त भवन संघटित हो कर प्रभु के लिए पवित्र मंदिर का रूप धारण कर रहा है। उन्हीं के द्वारा आप लोग भी इस भवन में जोड़े जाते हैं, जिससे आप ईष्वर के लिए एक आध्यात्मिक निवास बनें’’ (एफेसियों 2: 20 - 22)। प्रेरित गण मसीह के प्रत्यक्षदर्षी होने तथा उनका मुक्तिदायक दौत्य घोशित करने के लिए बुलाये गये थे; पवित्रात्मा की अन्तर्यामिता से वे मसीह के साक्षी बन गये। प्रेरितों के साक्ष्य एवं घोशणा द्वारा ही कलीसिया के रूप धारण का मार्ग तैयार हुआ।

     

     

    प्रेरितों का विष्वास-का-अनुभव

                                 प्रेरितों का विष्वास-का-अनुभव है कलीसिया की नींव। ‘‘मैं कौन हूँ’’, ईसा के इस प्रष्न का उत्तर पेत्रुस ने दिया, ‘‘आप जीवन्त ईष्वर के पुत्र मसीह हैं’’ (मत्ती 16 - 17)। सिमोन के इस उत्तर से खुष होकर ईसा बोले, ‘‘सिमोन, योनस के पुत्र, तुम धन्य हो, क्योंकि किसी निरे मनुश्य ने नहीं, बल्कि मेरे स्वर्गिक पिता ने तुम पर यह प्रकट किया है। मैं तुम से कहता हूँ कि तुम पेत्रुस अर्थात् चट्टान हो और इस चट्टान पर मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा।’’ प्रेरितों का प्रतिनिधि होकर पेत्रुस ने नाजरी ईसा में विष्वास घोशित किया। हमारे पिता प्रेरित सन्त थोमस ने भी यह घोशणा की, ‘‘मेरे प्रभु, मेरे ईष्वर’’ (योहन 20: 29)। ईसा को ‘प्रभु’ और ‘ईष्वर’ मान कर प्रेरितों ने विष्वास किया। उन्होंने उस विष्वास की घोशणा की। उनकी यह घोशणा सुनकर लोग उस विष्वास की ओर आकर्शित हुए। इस प्रकार प्रेरितों का विष्वास-का-अनुभव कलीसिया की नींव बन गया।

     
     

    प्रेरितों के दौत्य

                              ईष्वर ने इस्राएल को गुलामी से मुक्त करके कनान देष ले आना चाहा। उन्हें अपनी पवित्र जनता बनाने की योजना तैयार की। कुछ व्यक्तियों को - नबियों, पुरोहितों एवं राजाओं को विषेश रूप से चुनकर उन्हें विषेश दौत्य सौंपते हुए ईष्वर ने यह कार्य निभाया। नबी ईष्वर के नाम पर इस्राएलियों से बोलते तथा उनकी गलतियाँ होने पर उन्हें समझाते थे। ईष्वर की जनता के पवित्रीकरण के लिए बलियाँ चढ़ाते थे पुरोहित। इस्राएलियों की अगुआई करते एवं उन्हें षत्रुओं के आक्रमण से बचाते थे राजा। ये तीनों दौत्य, जिनके द्वारा इस्राएल को मुक्ति का अनुभव होता था, उस मसीह में पूर्ण हुए जो आने वाले थे। ईसा नबी थे, पुरोहित थे और राजा भी थे। प्रेरितों को पवित्रात्मा से अभिशिक्त करके ईसा ने उन्हें ये तीनों दौत्य सौंप दिए। प्रेरितों ने ईसा के मुक्तिदायक दौत्यों को इस प्रकार निभाया: षिक्षा देते हुए नबी का दौत्य, पवित्रीकरण द्वारा पुरोहित का दौत्य तथा अगुआई करते और मार्गदर्षन देते हुए राजकीय दौत्य। धर्माध्यक्ष, जो प्रेरितों के उत्तराधिकारी हैं, इन दौत्यों में भाग लेते हैं।

     
     

    प्रेरितों की षिक्षा

                              पवित्रात्मा को ग्रहण करके पे्ररित, ईसा के आदेषानुसार, सब जनताओं में सुसमाचार का प्रचार करने लगे। उन्होंने यह स्पश्ट किया कि जिन्हें यहूदियों ने सलीब पर चढ़ा कर मार डाला था उन ईसा को पूर्वजों के ईष्वर ने जिलाया, ईसा अब भी जीवित हैं तथा वे उस बात के साक्षी हैं (प्रेरित चरित 3: 15)। उन्होंने यह घोशित किया कि जो ईसा सलीब पर चढ़ा कर मारे गये और यहूदियों की दृश्टि में षापित हैं, वे वह मुक्तिदाता हैं जो आने वाले थे तथा ईष्वर ने उन्हें श्रेश्ठ नाम ‘प्रभु’ देकर जिलाया। उन्होंने यह भी स्पश्ट किया कि जो मसीह में विष्वास करते हैं और उनका नाम स्वीकार करते हैं, वे ही मुक्ति पाते हैं। जब इस षिक्षा के प्रति सताये गये तब वे अधिक उत्साह से इस सच्चाई की घोशणा करते थे। जिन्होंने प्रेरितों से विष्वास स्वीकार किया, वे जहाँ कहीं भी गये, विपरीत परिस्थितियों में भी, मसीह के साक्षी रहे।अब भी जीवित हैं तथा वे उस बात के साक्षी हैं (प्रेरित चरित 3: 15)। उन्होंने यह घोशित किया कि जो ईसा सलीब पर चढ़ा कर मारे गये और यहूदियों की दृश्टि में षापित हैं, वे वह मुक्तिदाता हैं जो आने वाले थे तथा ईष्वर ने उन्हें श्रेश्ठ नाम ‘प्रभु’ देकर जिलाया। उन्होंने यह भी स्पश्ट किया कि जो मसीह में विष्वास करते हैं और उनका नाम स्वीकार करते हैं, वे ही मुक्ति पाते हैं। जब इस षिक्षा के प्रति सताये गये तब वे अधिक उत्साह से इस सच्चाई की घोशणा करते थे। जिन्होंने प्रेरितों से विष्वास स्वीकार किया, वे जहाँ कहीं भी गये, विपरीत परिस्थितियों में भी, मसीह के साक्षी रहे।

     
     

    प्रेरित गण और कलीसियायी समूह

                            प्रेरितों ने पवित्रात्मा को ग्रहण किया और वे ईसा के आदेषानुसार सुसमाचार का सन्देष लेते हुए अनेक देषों में गये। प्रेरितों ने जहाँ-जहाँ सुसमाचार का प्रचार किया, उन सब देषों में मसीही विष्वासियों के नये समूहांे का रूप धारण हुआ। प्रेरित सन्त थोमस ने फारस, भारत आदि देषों में सुसमाचार का प्रचार किया। इसलिए इन देषों के कलीसियायी समूह प्रेरित सन्त थोमस को विष्वास में अपने पिता मानते हैं।

     
     

    सीरो मलबार कलीसिया की पैतृक सम्पत्ति

                          हमारे पूर्वज सौभाग्यषाली थे, इसलिए कि वे प्रेरित सन्त थोमस से ही विष्वास प्राप्त कर सके। हम सीरो मलबार कलीसिया की सन्तानों को जो मिली है वह इसी विष्वास की परम्परा है। मार थोमा नाजरी, मार थोमा मसीही आदि नाम हमारी कलीसिया का प्रेरितिक आधार दिखाते हैं। जिन्होंने ईसा को ‘प्रभु’ और ‘ईष्वर’ कह कर स्वीकार किया, जो ईसा के साथ जीने और मरने को तैयार हुए, वही प्रेरित हैं प्रेरित सन्त थोमस। इस प्रेरित द्वारा प्राप्त विष्वास-का-अनुभव है हमारी कलीसिया का प्रेरितिक आधार। 

     
     

    धर्माध्यक्ष

    प्रेरितों के उत्तराधिकारी हैं धर्माध्यक्ष। उनको प्राप्त पवित्रात्मा की षक्ति से वे विष्वास के आधिकारिक षिक्षक, प्रधानयाजक और गडेरिये हैं। वे प्रभु की भेड़षाला में से अपने को सौंपी हुई भेड़ों की देखभाल करते हैं (धर्माध्यक्ष 2, 3)। धर्मप्रान्त, जो कि स्थानीय कलीसिया है, के मुखिया हैं धर्माध्यक्ष। सन्त पापा के साथ मिलकर धर्माध्यक्ष अपने को सौंपे हुए धर्मप्रान्त के विष्वासियों का अध्यापन, उनकी अगुआई एवं उनका पवित्रीकरण करते हैं।

     

     

    श्रेश्ठ धर्माध्यक्ष

                   सन्त पापा के साथ मिलकर षासन किए जाने वाली स्वयं-षासित कलीसियाएँ हैं प्राधिधर्माध्यक्षीय कलीसियाएँ। उन कलीसियाओं के मुखिया प्राधिधर्माध्यक्ष हैं। प्राधिधर्माध्यक्षीय कलीसियाओं के अलावा उनकी बराबरी के अधिकार और हक रखने वाली श्रेश्ठ धर्माध्यक्षीय कलीसियाएँ भी हैं। उनके मुखिया श्रेश्ठ धर्माध्यक्ष हैं। सीरो मलबार कलीसिया 1992 में इस पदवी पर उठायी गयी। एरणाकुलम- अंकामाली केन्द्रित हमारी कलीसिया के प्रथम श्रेश्ठ धर्माध्यक्ष मार आन्टणी पटियरा थे। 1997 में मार वर्कि वितयत्तिल ने श्रेश्ठ धर्माध्यक्ष का स्थान ग्रहण किया। 

     
     

    सन्त पापा का परमाधिकार

                                 ईसा द्वारा चुने हुए प्रेरितों के समूह में सिमोन पेत्रुस को ईसा ने ही प्रमुख बनाया था। अपने जीवन के सभी महत्वपूर्ण अवसरों पर ईसा पेत्रुस को साथ ले जाते हैं। जो ईसा के विषेश सम्मान, प्रेम और फटकार के पात्र बने उन्हीं पेत्रुस को ईसा ने अपनी कलीसिया की स्थापना और दौत्य में भी प्रमुखता दी। सुसमाचारों में हम देखते हैं कि कलीसिया में पेत्रुस को परमाधिकार दिया जाता है। ईसा ने पेत्रुस से कहा कि तुम चट्टान हो और इस चट्टान पर मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा... मैं तुम्हें स्वर्गराज्य की कुँजियाँ प्रदान करूँगा (मत्ती 16: 17 - 19)। इससे यह स्पश्ट है कि ईसा ने पेत्रुस को बारहों में प्रथम बनाया। इसलिए धर्माध्यक्षों में प्रथम हैं सन्त पापा। क्योंकि सन्त पापा सन्त पेत्रुस के उत्तराधिकारी हैं। सन्त पापा रोम के धर्माध्यक्ष हैं, साथ ही साथ विष्व भर की काथलिक कलीसिया के षीर्श भी हैं। सन्त पापा को विष्वभर की काथलिक कलीसिया की अगुआई, उसके पवित्रीकरण एवं अध्यापन करने का अधिकार है। पहली वाटिकन महासभा ने सन्त पापा के परमाधिकार को एक अलंघलीय धर्म सिद्धान्त घोशित किया। विष्व-पत्रों एवं प्रेरितिक पत्रों द्वारा सन्त पापा कलीसिया अगुआई, उसके पवित्रीकरण एवं अध्यापन करने का अधिकार है। पहली वाटिकन महासभा ने सन्त पापा के परमाधिकार को एक अलंघलीय धर्म सिद्धान्त घोशित किया। विष्व-पत्रों एवं प्रेरितिक पत्रों द्वारा सन्त पापा कलीसिया की सन्तानों को आधिकारिक षिक्षा देते रहते हैं।

    ईषवचन पढ़ें और

    मनन करें 
    एफेसियों 2: 17-22?

    कंठस्थ करें

    ‘‘आप लोगों का निर्माण उस भवन के रूप में हुआ है, जो प्रेरितों तथा नबियों की नींव पर खड़ा है और जिसका कोने का पत्थर स्वयं ईसा मसीह हैं’’। (एफेसियों 2: 20) 

    हम प्रार्थना करें

    हे प्रभु, जैसे मूसा आपकी चुनी हुई जनता को प्रतिज्ञात देष की ओर ले चले, वैसे ही आप की कलीसिया को स्वर्गीय येरुसालेम की ओर ले चलने में हमारे धर्माध्यक्षों को प्रचुर मात्रा में अनुग्रह प्रदान

    मेरा निर्णय

    अपने पल्ली-पुरोहित एवं धर्माध्यक्ष के लिए मैं रोज प्रार्थना करूँगा/गी।

    कलीसिया के अनुसार विचार करें

    प्रभु के निर्णय के अनुसार सन्त पेत्रुस और अन्य प्रेरितों ने मिलकर एक प्रेरितिक संघ का गठन किया। उसी प्रकार पेत्रुस के उत्तराधिकारी रोम के सन्त पापा एवं प्रेरित के उत्तराधिकारी धर्माध्यक्षगण मिलकर आपस में एक बने हुए हैं। कलीसिया के आरंभ से लेकर धर्माध्यक्षों की एकता और सहषासन प्रकट है। संसार के भिन्न-भिन्न भागों में नियुक्त धर्माध्यक्ष आपस में एवं रोम के धर्माध्यक्ष के साथ एकता, प्रेम और षान्ति रखते थे।        (कलीसिया - 22)

    अपनी कलीसिया को जानें

    मार थोमा मसीही चार सदियों तक लातीनी षासन के अधीन थे। उन्हें उस षासन से अलग करके पुनः स्वयं षासित कलीसिया बनाने के उद्देष्य से सन्त पापा लियो तेरहवें ने 1886 सिंतबर 1 तारीख को लातीनी मसीहियों के लिए अलग से धर्मतंत्र स्थापित किया। उसके बाद 1887 मई 20 तारीख को मार थोमा मसीहियों को सीधे रोम के षासन के अधीन बनाया तथा कोट्टयम और तृषूर उपधर्मप्रान्तों की स्थापना की। कलीसिया के षासन की सुविधा के लिए 1896 जुलाई 28 को मार थोमा मसीहियों को तृषूर, चंगनाषेरी एरणाकुलम - इन तीनों उपधर्मप्रान्तों में बाँटा गया। एरणाकुलम में मार लूईस पशेपरम्पिल, तृषूर में मार जाॅन मेनाच्चेरी एवं चंगनाषेरी मंे मार  मेत्यु माकील थे प्रथम देषी धर्माध्यक्ष। 1911 में चंगनाषेरी से अलग करके क्नानाया काथलिक समूह के लि