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                           इस्राएल के एक महान नबी थे यिरमियाह। उनका बुलावा इस प्रकार था। प्रभु ने यिरमियाह से कहा, ‘‘माता के गर्भ में तुमको रचने से पहले ही मैंने तुमको जान लिया। तुम्हारे जन्म से पहले ही मैंने तुमको पवित्र किया। मैंने तुमको राश्ट्रों का नबी नियुक्त किया।’’ तब यिरमियाह ने कहा, ‘‘आह प्रभु ईष्वर, मुझे बोलना नहीं आता। मैं तो बच्चा हूँ।’’ प्रभु ने कहा, ‘‘यह न कहो- मैं तो बच्चा हूँ। मैं जिन लोगों के पास तुम्हें भेजूँगा, तुम उनके पास जाओगे और जो कुछ तुम्हें बताऊँगा, तुम वही कहोगे। उन लोगों से मत डरो। मैं तुम्हारे साथ हूँ। मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा। यह प्रभु की वाणी है।’’ तब प्रभु ने हाथ  बढ़ा कर यिरमियाह के मुख का स्पर्ष किया और यिरमियाह से कहा, ‘‘मैं तुम्हारे मुख में अपने षब्द रख देता हूँ... मैं आज तुम्हें राश्ट्रों तथा राज्यों पर अधिकार देता हूँ’’ (यिरमियाह 1: 4-10)।
                           इस्राएल को षिक्षा देकर उन्हें अपनी जनता बनाने, अपनी इच्छा उनको सुनाने एवं उस षिक्षा के अनुसार उन्हें ले चलने के लिए ईष्वर समय≤ पर नबियों को चुनकर नियुक्त करता था। इस्राएल के इतिहास में मूसा, योषुआ आदि नेता इस पैगम्बरी दौत्य को निभाते हुए दिखाई देते हैं। इसायाह, यिरमियाह, एजेकिएल, आमोस, होषेआ आदि अनेक नबियों को ईष्वर ने इस्राएल को दिया।

     
     

     नबी (पैगम्बर) की विषेशताएँ

                     नबी वह है जो ईवर की इच्छा जनता को सुनाता है। ईष्वर के प्रति वह बोलता है। अपने जीवन में ईष्वर की इच्छा पूरी करते हुए साक्ष्य देता है। ईष्वर की इच्छा सुनाने तथा उसका साक्ष्य देने के लिए ईष्वर द्वारा चुने और नियुक्त किए जाने के नाते नबी का जीवन सदा आनन्दमय नहीं होगा। गलतियों पर अँगुली उठाते समय तिरस्कार, उत्पीड़न एवं मृत्यु तक का सामना करना पड़ सकता है। फिर भी ईष्वर के आत्मा से संचालित होने के कारण हताष न होकर सत्य के साक्षी बनने में नबी बहुत ही ध्यान रखता है। राजमहलों में हिम्मत के साथ घुसकर गलतियों का खुलासा करने का साहस पुराने विधान के नबी रखते थे।

     
     

    कलीसिया की सन्तानों का पैगम्बरी दौत्य

                                पेन्तेकोस्त के दिन षिश्यगण पवित्रात्मा से भरपूर होकर भिन्न-भिन्न भाशाएँ बोलते थे और भविश्यवाणी करते थे। भिन्न-भिन्न देषें में से जो लोग उस दिन येरुसालेम में उपस्थित थे वे सब यह देखकर विस्मित हुए। जब आदिम मसीही समूह ने पवित्रात्मा को ग्रहण किया तब वह पैगम्बरी जनता बन गया (प्रेरित चरित 2: 14-19)। कलीसिया की सन्तानें भी, जो ज्ञानस्नान एवं तैलाभिशेक द्वारा पवित्रात्मा को ग्रहण करती हैं, पैगम्बरी जनता हो जाती हैं। पैगम्बरी जनता वह है जो ईष्वर के आत्मा से अभिशिक्त एवं संचालित है। ईसा ने कहा, ‘‘पवित्रात्मा तुम लोगों पर उतरेगा और तुम्हें सामथ्र्य प्रदान करेगा और तुम लोग येरुसालेम, सारी यहूदिया और समारिया में तथा पृथ्वी के अन्तिम छोर तक मेरे साक्षी होंगे’’ (प्रेरित चरित 1: 8)। कलीसिया की संतानें जो पवित्रात्मा को ग्रहण कर पैगम्बरी जनता हो जाती हैं, उनका दौत्य है मसीह के साक्षी बनना।

     
     

    पृथ्वी के नमक और संसार की ज्योति

                               ईसा ने अपने षिश्यों से कहा: ‘तुम पृथ्वी के नमक हो’। उन्होंने फिर कहा: ‘तुम संसार की ज्योति हो’ (मत्ती 5: 13-14)। उन्होंने यह ध्यान रखने की चेतावनी दी कि नमक फीका न पड़ जाए तथा ज्योति न  बुझे। नमक खाद्य वस्तुओं को सड़ने से बचाता है; स्वाद बढ़ाता है। कलीसिया में हम में से हर एक का यह दौत्य है कि हम समूह की बुराइयों को दूर करें तथा पवित्रात्मा द्वारा संचालित जीवन का स्वाद दूसरों के साथ बाँटें। कलीसिया की सन्तानें, जहाँ कहीं भी हों, आदर्ष जीवन एवं ईषवचन की घोशणा द्वारा ईसा के गवाह होने के लिए बुलायी गयी हैं। मसीहियों को ऐसे पैगम्बर होना चाहिए जो धार्मिक पतन, कपटता एवं बेईमानी के अधीन होकर अंधकार में रह रहे मनुश्यों के बीच ईसा की ज्योति फैलाते हैं। मसीहियों को ऐसे पैगम्बर होना चाहिए जो धार्मिक पतन, कपटता एवं बेईमानी के अधीन होकर अंधकार में रह रहे मनुश्यों के बीच ईसा की ज्योति फैलाते हैं। 

     

    ईष्वर के राज्य का खमीर

                          संसार में ईष्वर के राज्य का खमीर होना चाहिए कलीसिया को; नबियों की तरह ईष्वर की इच्छा तथा ईष्वर के राज्य के मूल्यों का गवाह भी होना चाहिए। थोड़ा सा खमीर सारे सने हुए आटे को खमीरा बना देता है। (1 कुरिंथि 5: 6)। इसी प्रकार सत्य, प्रेम एवं निस्वार्थता के गवाह होकर जीते हुए इस संसार में ईष्वर का राज्य फैलाने के लिए ईसा ने जो खमीर मिलाया है वह है मसीही। 

     
     

    सत्य के विशय में साक्ष्य देना

                                      ईसा ने कहा- ‘मैं इसलिए संसार में आया कि सत्य के विशय में साक्ष्य दूँ’ (योहन 18: 37)। ईसा के वचन एवं कर्म यह साबित करते थे। पैगम्बरी दौत्य हमें बाध्य करता है कि हम इस संसार में ईसा की तरह सत्य के विशय में साक्ष्य दें। असत्य और अन्याय के विरुद्ध संघर्श करते हुए, सत्य, न्याय एवं प्रेम के विशय में साक्ष्य देते हुए, कलीसिया को संसार का अन्तःकरण बन जाना चाहिए। यह है कलीसिया का पैगम्बरी दौत्य। बुराई के विरुद्ध आवाज़्ा उठाने से योहन बपतिस्ता का सिर काटा गया। सन्त थोमस मूर की तरह अनेक सन्त लोग हैं पैगम्बरी कलीसिया की प्यारी सन्तानों में।

     

    लोकधर्मी एवं पैगम्बरी दौत्य

                         याजकों एवं धर्मसंघियों की तरह, जो समर्पित लोग हैं, लोकधर्मियों का भी पैगम्बरी दौत्य होता है। जो ज्ञानस्नान ग्रहण कर कलीसिया की सन्तानें बन जाते हैं उनमें हर एक को प्राप्त विषेश बुलावा है पैगम्बरी दौत्य। सब से महान पैगम्बर, मसीह, ने अपना पैगम्बरी दौत्य अपने पुनरागमन तक जारी रखने के लिए कलीसिया को नियुक्त किया। ईसा का साक्षी एवं पैगम्बर बनने की कृपा भी हर एक लोकधर्मी को प्राप्त है (कलीसिाया 35)। मुख्यतः संस्कारों को स्वीकार कर षक्ति पाते हुए, विष्वासपूर्वक जीवन बिताते हुए तथा आदर्ष एवं वचन द्वारा सुसमाचार का प्रचार करते हुए लोकधर्मियों को अपना पैगम्बरी दौत्य निभाना चाहिए।
                      लोकधर्मियों का पैगम्बरी दौत्य निभाने में पारिवारिक जीवन का भी खास महत्व है। पति और पत्नी आपस में, बच्चों के सामने एवं समाज में विष्वास तथा मसीह के प्रेम के साक्षी बन जाएँ, यह है उनका दौत्य।

    ईष वचन पढ़ें और मनन करें

    इसायाह 6: 1-13 

    कंठस्थ करें

    ‘‘तुम्हारी ज्योति मनुश्यों के सामने चमकती रहे, जिससे वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे स्वर्गिक पिता की महिमा करें’’
    (मत्ती 5: 16)। 

    हम प्रार्थना करें

    हे ईष्वर, आपने अपने चुने हुओं के लिए नबियों एवं नेताओं को दिया; हमें मदद कीजिए कि हम एलियाह के उत्साह तथा मूसा के साहस के साथ जीवन भर आपके साक्षी बनें। 

    मेरा निर्णय

    बाधाएँ चाहे कुछ भी हो जायें, मैं कभी भी झूठ नहीं बोलूँगा/गी।

    कलीसिया के अनुसार विचार करें

    मसीह के सजीव साक्षी बनते हुए, खास करके विष्वास एवं प्रेम का जीवन बिताते हुए तथा ईष्वर की महिमा के लिए स्तुति की बलि ईष्वर को अर्पित करते हुए ईष्वर की जनता मसीह के पैगम्बरी दौत्य के सहभागी बनती है (कलीसिया-12)।

    अपनी कलीसिया को जानें

    फारस के प्राधिधर्माध्यक्ष द्वारा नियुक्त अन्तिम महाधर्माध्यक्ष मार अब्राहम का देहान्त 1597 में हुआ। उसके बाद मार थोमा नाजरियों पर लातीनी षासन का आरंभ हुआ तथा येसु समाज के याजक फ्रान्सीस रोस प्रथम धर्माध्यक्ष नियुक्त हुआ। पष्चिमी मिषनरियों की यह गलत धारणा थी कि केवल लातीनी पूजन पद्धति मानने वाले विष्वासियों का समूह है कलीसिया; इसलिए उन्होंने मार थोमा नाजरियों के आचारानुश्ठानों को गलत समझा। किसी भी तरह इस समूह को बचाना चाहिए - इस विचार से उन्होंने मार थोमा नाजरियों को अपरिचित लातीनी आचारानुश्ठानों को उन पर थोपने का प्रयास किया। प्राचीनता एवं परम्पराओं में मार थोमा नाजरियों का विष्वास-जीवन सार्वत्रिक कलीसिया के बराबर हैं; उस विष्वास जीवन का अदल-बदल हुआ लातीनी षासन काल में।