पाठ 9
ाग्लू ,कइचप्
-
संत पौलुस कहते हैं: “आप लोग झूठ बोलना छोड़ दें और एक दूसरे से सच ही बोलंे, क्योंकि हम एक दूसरे के अंग हैं” (एफेसियों 4ः25)। ईश्वर सत्यप्रतिज्ञ है; इस कारण हम भी जो ईश्वर की संतान हैं, सत्य में जीने के लिए बुलाये गये हैं (रोमियों 3ः4)। आठवीं आज्ञा, ’झूठी गवाही मत दो,’ हमें यह याद दिलाती है कि हम हर समय ईमानदारी से ही बात करें और काम करें।
सत्य की प्रासंगिकता
हमें विचार, कथनी और करनी में ईमानदारी का पालन करना चाहिए। आपसी विश्वास ही मानव जीवन की बुनियाद है। “तुम्हारी बात इतनी हो - हाँ की हाँ, नहीं की नहीं। जो इससे अधिक है, वह बुराई से उत्पन्न होता है” (मत्ती 5ः37)। यही सत्यनिश्ठा हमें ईश्वर और मनुश्य से रखनी चाहिए। किसी पर विष्वास न रखने की स्थिति पैदा होने पर हमारी ज़िन्दगी कितनी मुष्किल होगी?ईमानदारी का पालन करने की ईश्वरीय प्रेरणा के साथ ही हर एक मनुश्य की सृश्टि हुई है। सत्य की पूर्णता ईश्वर ही है। ईसा ने यह सिखाया है कि वह सत्य ही है (योहन 14ः6)। जो ईसा को स्वीकार करते हैं और ईसा में जीते हैं, वे अपने जीवन में ईमानदारी प्रकट करने को बाध्य हैं।सत्य का साक्षी होना
ईसा ने पिलातुस से कहा कि वे सत्य के विशय में साक्ष्य देने संसार में आये हैं। सत्य का साक्षी होना है हम ईसाइयों का कर्तव्य। जो भी कथन सत्य के विरुद्ध हैं, वे सब झूठ हैं। दूसरों को सत्य जानने का अधिकार है। उस का इनकार करना भी झूठ बोलने के बराबर है। स्वार्थलाभ के लिए जानबूझकर अपनी धारणा और जानकारी के विरुद्ध बोलना भी गलत है। परिस्थितियों और कही गयी बात की गंभीरता के अनुरूप झूठ बोलने की बुराई की गंभीरता ज़्यादा या कम होती है। फिर भी बात कितनी भी छोटी क्यों न हो, झूठ बोलना छोड़ देना चाहिए। झूठ बोलने से समाज में उस व्यक्ति की विष्वसनीयता की हानि होती है। सत्य के खिलाफ़ जो बयान सार्वजनिक रूप से, विषेशकर अदालत में दिया जाता है, वह झूठी गवाही साबित हो जाती है। यह बहुत बड़ी गलती है।
सत्य के विरुद्ध बुराइयाँ
परनिन्दा
एक व्यक्ति के बारे में झूठे और गुप्त स्वभाव की बातें फैलाना परनिन्दा होती है। परनिन्दा का प्रचार चाहे कितना ही छोटा क्यों न हो, कभी-कभी बड़ी हानि का कारण बनता है। जो परनिन्दा करते हैं और जो उसको सुनकर आनन्द लेते हैं और उसका प्रोत्साहन करते हैं, वे सब समान रूप से आठवीं आज्ञा के विरुद्ध पाप करते हैं।चुगली
दो व्यक्तियों के बीच झगड़ा या दुष्मनी पैदा करना है चुगली करने का लक्ष्य। जो चुगली करता है वह किसी व्यक्ति द्वारा कही गई या नहीं कही गई बातों को दूसरों के कानों तक पहँुचाकर लड़ाई की प्रेरणा देता है। ऐसे भी लोग हैं जो चुगली करने में आनन्द लेते हैं और उससे अपना स्वार्थ लाभ प्राप्त करते हैं। यह भी बहुत बडा पाप है।झूठ
अपनी धारणा और जानकारी के विरुद्ध जो कहा जाता है, वह है झूठ। दूसरे लोग इस धारणा से हमें सुनते हैं कि हमारा कहना सच है। कही हुई बात झूठी साबित होती है तो सुनने वाला धोख़ा खाता है। सच्चाई को छिपाकर बोलना, यानी सही बात को गलत कहना और गलत बात को सही कहना, आठवीं आज्ञा का उल्लंघन है।रहस्य प्रकट करना
अन्य लोगों की निजी बातों में उनकी अनुमति के बिना दखल करने का अधिकार किसी को नहीं है। दूसरों के रहस्यों को गुप्त रखना हमारा कर्तव्य है। झाँककर देखना, दूसरों की बातचीत छिपकर सुनना, दूसरों की चिट्ठियाँ उनकी अनुमति के बिना पढ़ना आदि गलत हैं। किसी कारणवष किसी से संबंधित रहस्य हम जान गये तो उन्हें गुप्त रखना हमारा कर्तव्य है। ऐसी स्थिति में रहस्य प्रकट कर सकते हैं, जैसे उसे प्रकट करने से भी अधिक हानि उसे नहीं प्रकट करने से हो सकती है। मगर एक पुरोहित किसी भी हालत में पाप स्वीकार संस्कार का रहस्य नहीं प्रकट कर सकता है।यष बिगाड़ना
किसी का यष जानबूझकर बिगाडने की कोशिश करना बहुत बड़ा पाप है। किसी व्यक्ति को गलत तरीके से दोशी ठहराना और उस के लिए गवाही देना यष बिगाडने का काम होता है।परीक्षा में नकल करना
नकल करना ईमानदारी के विरुद्ध पाप है। इससे अध्यापक को ऐसी गलत धारणा दी जाती है कि नकलची सब कुछ जानता है जबकि वह कुछ भी नहीं जानता और अयोग्य रीति से अंक प्राप्त करता है। नकल करना और उसमें मदद करना दोनों समान रूप से बुराई हैं। एक ईमानदार छात्र कभी नकल नहीं करेगा।चापलूसी करना
किसी की, उन गुणों के प्रति तारीफ करना, जो वास्तव में उसमें नहीं है तथा किसी के दुर्गुणों का प्रोत्साहन करते हुए समर्थन देना चापलूसी है। इस प्रकार दूसरों की गलती नहीं सुधारने और उस गलती को प्रोत्साहन देने के कारण चापलूसी बड़ी बुराई बन जाती है।झूठ बोलने में जो नैतिक सवाल है वह अधिकार के उल्लंघन से संबंधित है। सही जानकारी प्राप्त करना हर व्यक्ति का अधिकार है। झूठ बोलने से सत्य जानने के इस अधिकार का उल्लंघन होता है। झूठ बोलते समय और जो सत्य उपयुक्त अवसर पर बोलना चाहिए, उसे नहीं बोलने से इस अधिकार का उल्लंघन होता है। जहाँ सत्य जानने के अधिकार का उल्लंघन होता है वहाँ सामाजिक जीवन कठिन होता है। इसलिए संतुश्ट सामाजिक जीवन के लिए और ईश्वर के समक्ष दोशमुक्त होने के लिए ईमानदारी का पालन करना अनिवार्य है। समाज उन लोगों का सम्मान करता है जो विचार, कथनी और करनी में ईमानदार हैं। हम ज़िन्दगी भर सत्य के साक्षी बने रहें।हम प्रार्थना करें
हे ईसा, आप सत्य ही हैं। हमारी ज़िन्दगी में सत्य के साक्षी होने काअनुग्रह हमें प्रदान कीजिए।हम गायें
सत्यम एवं येसु प्रभु ने, उसके सामने आये लोगषिश्यों को यह प्रेम वचन, कहने को दिया।अपने वचन सत्य है तो, ‘हाँ’ कहना, ‘नहीं’ कहनाइससे ज्यादा बोले तो भी, बुराई से हो।ना झूठ बोलो, सत्य बोलो, सत्य में ही असल बातसत्य में ही ताकत हमारी, सत्य की जय हो।बुरी बुरी बातें करना, अनुयोग्य नाहीं देव के लोगऐसी बातें चालन करते, वह न डगमगाता।सत्य देता स्वतन्त्रता को, अनुभव लेना आनन्दी तुमनित्य तुम हो चरवाहे हो, येसु में तुम हो।ईष-वचन पढ़ें और वर्णन करें
योहन 8: 31-38मार्गदर्षन के लिए एक पवित्र वचन
“आप लोग हर प्रकार की बुराई, छलकपट, पाखण्ड,ईश्र्या और परनिन्दा को सर्वथा छोड़ दें।”(1 पेत्रुस 2ः1)हम करें
जिसे झूठ बोलने की आदत है,उसे उसकी गलती कैसे समझा सकते हैं - इस पर चर्चा कीजिए।मेरा निर्णय
मैं किसी भी कीमत पर ईमानदारी को अपनी ज़िन्दगी