•              हमारा शरीर पवित्र आत्मा का मन्दिर है (1 कुरिंथि 6ः19)। इसलिए वह पवित्र है। हमारे शरीर का महत्व और उसकी पवित्रता संभालना हमारा कर्तव्य है। संत पौलुस कहते हैः “क्या आप यह नहीं जानते कि आप ईश्वर के मन्दिर हैं और ईश्वर का आत्मा आप में निवास करता है ? यदि कोई ईश्वर का मन्दिर नश्ट करेगा तो ईश्वर उसे नश्ट करेगा; क्योंकि ईश्वर का मन्दिर पवित्र है और वह मन्दिर आप लोग हैं”। (1 कुरिंथि 3ः16.17)

    लैंगिकता का अर्थ और लक्ष्य

                     ईश्वर ने मनुश्य को नर और नारी बनाया (उत्पत्ति ग्रन्थ 1ः28)। ईश्वर ने जो प्रेम ही है, मनुश्य की सृष्टि के साथ-साथ प्रेम करने और प्रेम का पात्र बनने की क्षमता भी उसे प्रदान किया। इस प्रेम की पूर्णता के लिए और संतानों को जन्म देने के लिए लैंगिकता से उसे अनुगृहीत किया। 
                                 नर या नारी होना ही लैंगिकता का आधार है। एक दूसरे को आकर्शित करने, प्रेम आपस में बाॅेटने और बच्चों को पैदा करने की क्षमता ईश्वर ने मनुश्य को दी है। इसके लिए आवश्यक प्रजनन क्षमता और षारीरिक अंगों के साथ ही ईश्वर ने मनुश्यों की रचना की। 
     

     

    यौन संबंधी षुद्धता

                                   यौन संबंधी शुद्धता का मतलब यह है: ईश्वर द्वारा दी गई यौन क्षमताओं को उसके इच्छानुसार परिपक्वता के साथ उपयोग करना। विचार, वचन और कर्म में हमें इस शुद्धता का पालन करना है। विवाहित और अविवाहित लोग, दोनों, यौन संबंधी शुद्धता का पालन करने के लिए बाध्य हैं। विवाहित लोग अपने दाम्पत्य जीवन में निश्ठावान रहकर इस शुद्धता का पालन करते हैं। समर्पित लोग अपने ब्रह्मचर्य जीवन द्वारा ईश्वर और मनुश्यों के लिए अविभक्त दिल से अपने आपको समर्पित करके शुद्धता का पालन करते हैं। अविवाहित लोगों को नैतिक नियमों का पालन करते हुए जीवन बिताकर शुद्धता का पालन करना है। 
                               विवाह के बाहर के सभी यौन संबंध इस शुद्धता के विरुद्ध पाप हैं। छठवीं आज्ञा, ’व्यभिचार मत करो’, इस को मना करता है। क्योंकि मानववंष के लिए ईश्वर की जो योजना है उस के विरुद्ध हैं ये सब बुराइयाँ। परिवार एवं व्यक्ति की शुद्धता का परिरक्षण करना ही है छठवीं आज्ञा का लक्ष्य। शुद्धता का पालन करने की आवश्यकता के बारे में संत पौलुस कहते हैं: “व्यभिचार से दूर रहें ... मनुश्य के दूसरे सभी पाप उस के शरीर से बाहर हैं; किन्तु व्यभिचार करने वाला अपने ही शरीर के विरुद्ध पाप करता है। क्या आप लोग यह नहीं जानते कि आप का शरीर पवित्र आत्मा का मन्दिर है ? वह आप में निवास करता है और आपको ईश्वर से प्राप्त हुआ है। आप का अपने पर अधिकार नहीं है; क्योंकि आप लोग क़ीमत पर ख़रीदे गये हैं। इसलिए आप लोग अपने षरीर में ईश्वर की महिमा प्रकट करें” (1 कुरिंथि.6ः18-20)।

     

    यौन संबंधी षुद्धता

                                   यौन संबंधी शुद्धता का मतलब यह है: ईश्वर द्वारा दी गई यौन क्षमताओं को उसके इच्छानुसार परिपक्वता के साथ उपयोग करना। विचार, वचन और कर्म में हमें इस शुद्धता का पालन करना है। विवाहित और अविवाहित लोग, दोनों, यौन संबंधी शुद्धता का पालन करने के लिए बाध्य हैं। विवाहित लोग अपने दाम्पत्य जीवन में निश्ठावान रहकर इस शुद्धता का पालन करते हैं। समर्पित लोग अपने ब्रह्मचर्य जीवन द्वारा ईश्वर और मनुश्यों के लिए अविभक्त दिल से अपने आपको समर्पित करके शुद्धता का पालन करते हैं। अविवाहित लोगों को नैतिक नियमों का पालन करते हुए जीवन बिताकर शुद्धता का पालन करना है। 
                               विवाह के बाहर के सभी यौन संबंध इस शुद्धता के विरुद्ध पाप हैं। छठवीं आज्ञा, ’व्यभिचार मत करो’, इस को मना करता है। क्योंकि मानववंष के लिए ईश्वर की जो योजना है उस के विरुद्ध हैं ये सब बुराइयाँ। परिवार एवं व्यक्ति की शुद्धता का परिरक्षण करना ही है छठवीं आज्ञा का लक्ष्य। शुद्धता का पालन करने की आवश्यकता के बारे में संत पौलुस कहते हैं: “व्यभिचार से दूर रहें ... मनुश्य के दूसरे सभी पाप उस के शरीर से बाहर हैं; किन्तु व्यभिचार करने वाला अपने ही शरीर के विरुद्ध पाप करता है। क्या आप लोग यह नहीं जानते कि आप का शरीर पवित्र आत्मा का मन्दिर है ? वह आप में निवास करता है और आपको ईश्वर से प्राप्त हुआ है। आप का अपने पर अधिकार नहीं है; क्योंकि आप लोग क़ीमत पर ख़रीदे गये हैं। इसलिए आप लोग अपने षरीर में ईश्वर की महिमा प्रकट करें” (1 कुरिंथि.6ः18-20)।

    ौन संबंधी षुद्धता के विरुद्ध पाप

                                       जो ज्ञानस्नान स्वीकार कर चुके हैं वे सब पवित्रता की ओर बुलाये गये हैं। ईसाई ने मसीह को धारण किया है, जो सभी शुद्धता के आदर्श हैं (गलातियों. 3ः27)। अपनी अपनी बुलाहट के अनुरूप निर्मल जीवन बिताना ईसाइयों का कर्तव्य है। हस्तमैथुन, समलिंगकामुकता, व्यभिचार, वेष्याकर्म, बलात्कार आदि बुराइयाँ इस शुद्धता को भंग करती हैं। 

    यौन संबंधी षुद्धता का पालन करने हेतु मददगार बातें 

                      यौन संबंधी शुद्धता बहुत ही श्रद्धा से संभालने की अमूल्य निधि है। इस के लिए पाप की परिस्थितियों को हमें ध्यान रखकर दूर रखना है। निम्नलिखित बातें हमारी मदद करेंगीं:
    थ् उन दोस्तों से दूर रहना जो अष्लील बात और कार्य करते हैं।
    थ् अष्लील प्रकाशनों और चित्रों से दूर रहना। 
    थ् उन सभी दूरदर्शन कार्यक्रम, सिनेमा, वेब साइट आदि को नहीं देखना जो यौन संबंधी शुद्धता के विरुद्ध हैं।
    थ् बातचीत, परिधान, मनोरंजन आदि में संयम बरतना। 
    थ् प्रार्थना, संस्कारों का ग्रहण आदि में निश्ठा रखना।
    थ् पवित्र ग्रन्थ, संतों की जीवनी और अन्य सद्ग्रन्थों का वाचन।
    थ् पवित्र माँ मरियम की मध्यस्थता एवं संरक्षण का आश्रय लेना।
    थ् परिपक्व व्यक्तियों की सलाह स्वीकार करना।
                            हर एक व्यक्ति ईश्वर की छाया और सादृष्य में बनाया हुआ है। वह यौन संबंधी एक उपभोग की वस्तु नहीं है; परन्तु वह एक सम्माननीय व्यक्ति है। अपने शरीर को और दूसरों को ईश्वरीय दृश्टि से आदर के साथ देखने पर हम यौन शुद्धता के साथ जी सकते हैं।

    ईष-वचन पढ़ें और वर्णन करें

    1 कुरिंथि 6ः12-20
     
     

    मार्गदर्षन के लिए एक पवित्र वचन

    “क्या आप नहीं जानते कि आप ईश्वर के मन्दिर हैं और 
    ईश्वर का आत्मा आप में निवास करता है ?” (1 कुरिंथि. 3ः16)
     
     

    हम करें

    संत मरिया गोरेथी के जीवनचरित पर चर्चा कीजिए। 
     
     

    मेरा निर्णय

    यौन संबंधी शुद्धता का पालन करने के 
    लिए मैं कोषिष करूँगा/गी।