पाठ-4
प्रभु का दिन
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ईसा किसी विश्राम-दिवस गेहँू के खेतों से होकर जा रहे थे। उनके षिश्य बालें तोड कर और हाथ से मसल कर खाते थे। कुछ फरीसियों ने कहा, “जो काम विश्राम के दिन मना है, तुम क्यों वही कर रहे हो?” ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या तुम लोगों ने यह नहीं पढ़ा कि जब दाऊद और उनके साथियों को भूख लगी, तो दाऊद ने क्या क्या किया था?। उन्होंने ईष-मन्दिर में जा कर भेंट की रोटियाँ उठा लीं, उन्हें स्वयं खाया तथा अपने साथियों को भी खिलाया। याजकों को छोड़ किसी और को उन्हें खाने की आज्ञा तो नहीं है।” और ईसा ने उन से कहा, “मानव पुत्र विश्राम-दिवस का स्वामी है” (लूकस 6ः1-5)। प्रभु के दिन यानी विश्राम-दिवस का महत्व और उसके आचरण में हमारा मनोभाव क्या होना है, इन पर ईसा यहाँ प्रकाश डालते हंै।
विश्राम-दिवस - पुराने विधान में
सीनई पर्वत पर ईष्वर ने मूसा को दस आज्ञाएँ दीं। इनमें से तीसरी आज्ञा विश्राम-दिवस के बारे में है। “विश्राम-दिवस को पवित्र मानने का ध्यान रखो। तुम छः दिनों तक परिश्रम करते रहो और अपना सब काम करो; परन्तु सातवाँ दिन तुम्हारे प्रभु ईष्वर के आदर में विश्राम का दिन है। उस दिन न तो तुम कोई काम करो, न तुम्हारा पुत्र, न तुम्हारी पुत्री, न तुम्हारा नौकर, न तुम्हारी नौकरानी, न तुम्हारे चैपाये और न तुम्हारे षहर में रहने वाला परदेषी।’’ (निर्गमन 20ः8-10)इस्राएली सप्ताह के आखिरी दिन को विश्राम-दिवस के रूप में मनाते थे। ईश्वर ने छः दिन में अपना सृश्टिकार्य पूरा किया और सातवें दिन विश्राम किया; इसकी याद में वे विश्राम-दिवस मनाते थे। “ईश्वर ने सातवें दिन को आशीर्वाद दिया और उसे पवित्र माना; क्योंकि उस दिन उसने सृश्टि का समस्त कार्य समाप्त कर विश्राम किया था” (उत्पत्ति 2ः3)। पुराने विधान के लोगों के लिए विश्राम-दिवस का अर्थ था, सब प्रकार के कामों को वर्जित करना। विश्राम-दिवस का मूल इब्रानी षब्द था ‘साबात’ जिसका अर्थ है, विश्राम करना या विराम डालना।आराम करने का एवं आराधना का दिन था विश्राम-दिवस; उस दिन इस्राएलियों में न किसी मनुश्य या जानवर को कोई काम करने की अनुमति नहीं थी। षुक्रवार के सूर्यास्त से लेकर षनिवार के सूर्यास्त तक वे विश्राम-दिवस मनाते थे। धीरे धीरे विश्राम-दिवस में वर्जित कामों की संख्या बढ़ाकर उन्होंने नियम बना दिया। सख़्त नियमों के कारण विश्राम-दिवस मनाना मुष्किल हो गया।ईसा और विश्राम-दिवस
एक बार ईसा सभागृह में षिक्षा दे रहे थे। वहाँ एक मनुश्य था जिसका हाथ सूख गया था। ईसा पर दोश लगाने के लिए लोगों ने उनसे पूछा, “क्या विश्राम के दिन चंगा करने की आज्ञा है?” ईसा ने उन से कहा, “विश्राम के दिन भलाई करने की आज्ञा है” (मत्ती 12ः12)। उन लोगों के सामने ईसा ने उस सूखे हाथ वाले को चंगा किया। ईसा ने सिखाया कि मनुश्य विश्राम-दिवस के लिए नहीं, बल्कि विश्राम-दिवस मनुश्य के लिए बनाया गया है। ईसा ने बताया कि ईष्वर विश्राम-दिवस का भी स्वामी है, उसकी आराधना करनी चाहिए।ईसा विश्राम-दिवस को पवित्र मनाने का विषेश ध्यान रखते थे। लेकिन यहूदियों के विश्राम-दिवस के आचरणों की कमियों को ईसा ने दूर किया। विश्राम-दिवस में चंगाई प्रदान करते हुए ईसा ने यह स्पश्ट किया कि भलाई करना विश्राम-दिवस के अनुरूप है। इस प्रकार विश्राम-दिवस के सम्बन्ध में जो गलत भावनाएँ थीं उन्हें ईसा ने संषोधित किया।रविवार - प्रभु का दिन
ईसाइयों का विश्राम-दिवस रविवार है। वह प्रभु का दिन है। रविवार को प्रभु के दिन के रूप में मनाने के अनेक कारण हैं। उनमें मुख्य कारण यह है कि ईसा का पुनरुत्थान जो कि मुक्तियोजना की निर्णायक घटना है, रविवार को हुआ था (मारकुस 16ः9, मत्ती 28ः1, लूकस 24ः1, योहन 20ः1)। पाप और मृत्यु को हरा कर सप्ताह के पहले दिन - रविवार को ईसा का पुनरुत्थान हुआ, इसलिए यह दिन ईसाइयों के लिए पवित्र दिन बन गया। पुनरुत्थान के बाद ईसा ने षिश्यों और अन्य लोगों को कई बार दर्शन दिए। इनमें सभी महत्वपूर्ण दर्षन रविवार के दिन में ही थे (मत्ती 28, लूकस 24, योहन 20)। पुनरुत्थान के बाद पचासवें दिन - एक रविवार को ही पवित्र आत्मा प्रेरितों पर उतरा था (प्रेरित चरित 2ः1-14)। कलीसिया की स्थापना भी पेन्तेकोस्त के दिन थी।संत पापा जाॅन पाॅल द्वितीय ने रविवार के आचरण के विशय में ‘प्रभु का दिन’ नामक एक विष्वपत्र लिखा है; उसमें, वे मसीह-रहस्य के केन्द्र यानी पुनरुत्थान से रविवार का जो सम्बन्ध है उसका विवरण देते हैं। संत पापा रविवार को हर सप्ताह का ईस्टर दिवस कहते हैं। संत पापा का कहना है कि जिन्हें ईसा में विष्वास करने का वरदान मिला है, वे रविवार का महत्व कभी नहीं भूल सकते। इसलिए रविवार न सिर्फ आराम का दिन है, बल्कि ईसा के पुनरुत्थान के बारे में मनन चिन्तन करने का और पुनरुत्थान के महत्व में सहभागी बनने का अवसर भी है।रविवार कलीसिया का दिन है। विष्वास की घोशणा करने और उसको मनाने के लिए अलग किया हुआ दिन है रविवार। अन्य दिनों की अपेक्षा उस दिन के पवित्र बलिदान का विषेश महत्व है। उस दिन के पवित्र बलिदान में भाग लेना हर एक कलीसियायी सदस्य का कर्तव्य है। कलीसिया रविवार को ‘दिवसों का दिवस’ भी कहती है। संत पापा हमें यह याद दिलाते हंै कि रविवार के आचरण को केवल एक हुक्म के रूप में नहीं देखना है, बल्कि हमारे ख्रीस्तीय जीवन का एक आवश्यक अंष मानना है। प्रभु के दिन को पवित्र मानना - ईश्वर की यह आज्ञा हमें ईष्वर और कलीसिया के साथ बढ़ने की मदद करती है।हमें, जो नये विधान की जनता है, प्रभु के दिन को तीन प्रकार से मनाना हैःरविवार - प्रभु का दिन
ईसाइयों का विश्राम-दिवस रविवार है। वह प्रभु का दिन है। रविवार को प्रभु के दिन के रूप में मनाने के अनेक कारण हैं। उनमें मुख्य कारण यह है कि ईसा का पुनरुत्थान जो कि मुक्तियोजना की निर्णायक घटना है, रविवार को हुआ था (मारकुस 16ः9, मत्ती 28ः1, लूकस 24ः1, योहन 20ः1)। पाप और मृत्यु को हरा कर सप्ताह के पहले दिन - रविवार को ईसा का पुनरुत्थान हुआ, इसलिए यह दिन ईसाइयों के लिए पवित्र दिन बन गया। पुनरुत्थान के बाद ईसा ने षिश्यों और अन्य लोगों को कई बार दर्शन दिए। इनमें सभी महत्वपूर्ण दर्षन रविवार के दिन में ही थे (मत्ती 28, लूकस 24, योहन 20)। पुनरुत्थान के बाद पचासवें दिन - एक रविवार को ही पवित्र आत्मा प्रेरितों पर उतरा था (प्रेरित चरित 2ः1-14)। कलीसिया की स्थापना भी पेन्तेकोस्त के दिन थी।संत पापा जाॅन पाॅल द्वितीय ने रविवार के आचरण के विशय में ‘प्रभु का दिन’ नामक एक विष्वपत्र लिखा है; उसमें, वे मसीह-रहस्य के केन्द्र यानी पुनरुत्थान से रविवार का जो सम्बन्ध है उसका विवरण देते हैं। संत पापा रविवार को हर सप्ताह का ईस्टर दिवस कहते हैं। संत पापा का कहना है कि जिन्हें ईसा में विष्वास करने का वरदान मिला है, वे रविवार का महत्व कभी नहीं भूल सकते। इसलिए रविवार न सिर्फ आराम का दिन है, बल्कि ईसा के पुनरुत्थान के बारे में मनन चिन्तन करने का और पुनरुत्थान के महत्व में सहभागी बनने का अवसर भी है।रविवार कलीसिया का दिन है। विष्वास की घोशणा करने और उसको मनाने के लिए अलग किया हुआ दिन है रविवार। अन्य दिनों की अपेक्षा उस दिन के पवित्र बलिदान का विषेश महत्व है। उस दिन के पवित्र बलिदान में भाग लेना हर एक कलीसियायी सदस्य का कर्तव्य है। कलीसिया रविवार को ‘दिवसों का दिवस’ भी कहती है। संत पापा हमें यह याद दिलाते हंै कि रविवार के आचरण को केवल एक हुक्म के रूप में नहीं देखना है, बल्कि हमारे ख्रीस्तीय जीवन का एक आवश्यक अंष मानना है। प्रभु के दिन को पवित्र मानना - ईश्वर की यह आज्ञा हमें ईष्वर और कलीसिया के साथ बढ़ने की मदद करती है।हमें, जो नये विधान की जनता है, प्रभु के दिन को तीन प्रकार से मनाना हैः1. आराधना का दिन
ईसाइयों के विष्वास-जीवन के गढन में मुख्य स्थान रविवार के आचरण का है। वह ईष्वर की आराधना का ही दिन है। ईष्वर को आराधना और स्तुति अर्पित करना ही इस दिवस का मुख्य लक्ष्य है। रविवार के आचरण में प्रमुख स्थान पवित्र बलिदान का है, जो परम श्रेश्ठ आराधना विधि है; जिसे ख्रीस्तीय समूह एक साथ मिलकर अर्पित करते हंै। पवित्र बलिदान के द्वारा ही हमें विष्वास-जीवन की षक्ति प्राप्त होती है और अपने समर्पण का नवीनीकरण भी होता है। पवित्रता तथा श्रद्धा-भक्ति से ही हमें पवित्र बलिदान में भाग लेना चाहिए। कलीसिया हमें यह सिखाती है कि रविवारों और अन्य विशेष दिनों में सभी विष्वासियों को पवित्र बलिदान में भाग लेने का फर्ज है। रविवार विष्वास प्रशिक्षण का विषेश दिवस भी है।2. विश्राम का दिवस
मनुश्य जो सदा व्यस्त रहता है, उसे आराम की ज़रूरत और अधिकार हैं। अन्य दिनों की कठिन मेहनत से रविवार के दिन दूर रहना चाहिए। पारिवारिक और सामाजिक संबंध बढ़ाने में यह सहायक है। पवित्र बलिदान में भाग लेने के लिए समय निकालना और पूरा दिन आराधना के चैतन्य में व्यतीत करना, यह मनोभाव रविवार के आचरण में हमें होना चाहिए। इसको बनाये रखने के लिए कठिन काम से बचे रहना है। कलीसिया यह भी सिखाती है कि किसी अनिवार्य अवसर को छोड़कर कभी भी अन्य लोगों को किसी काम के लिए बाध्य न करें, जो रविवार के आचरण में बाधा डालता हो। (सी.सी.सी. 2195)3. करुणा का दिन
रविवार करुणा का एक दिन भी है; रविवार मनाने के सामाजिक स्तर को भी प्रकट यह करता है। दुःख सहने वालों के साथ ईसा ने जैसे दया दिखायी वैसे ही उसे करने का विशेष अवसर है रविवार। दीन-दुःखियों को सहारा देने में कलीसिया हमेषा तत्पर रही है। कलीसिया के आरंभ से ही हमें यह देखने को मिलता है। प्रेरित संत पौलुस विष्वासियों को इस प्रकार लिखते हंै, “आप लोगों में हर एक, प्रति रविवार को अपनी आय के अनुसार कुछ अलग कर दे” (1 कुरिंन्थि 16ः2)। रविवार के दिन कम से कम कुछ समय हमें दीन-दुःखियों की सहायता के लिए बिताना चाहिए और अपनी क्षमता के अनुसार उन्हें आर्थिक सहायता देनी भी चाहिए। इस प्रकार रविवार को हम आपसी एकता और भाईचारे का दिन बना सकते हैं।हुक्म पर्व के दिन
रविवार को हम प्रभु का दिन मानते हैं; उस के अलावा कलीसिया ने कुछ हुक्म पर्व के दिन निर्दिश्ट किए हैं। सीरो मलबार कलीसिया में हुक्म पर्व के दिन निम्नलिखित हैंः-1) हमारे प्रभु के जन्म का पर्व - क्रिसमस - 25 दिसम्बर2) प्रेरित संत थाॅमस की मृत्यु का पर्व - दुक्राना - 3 जुलाई3) पवित्र माता मरियम के स्वर्गारोपण का पर्व - 15 अगस्त4) हमारे प्रभु का ज्ञानस्नान - दन्हा का पर्व - 6 जनवरी5) प्रेरित संत पेत्रुस और पौलुस का पर्व - 29 जून6) हमारे प्रभु के स्वर्गारोहण का पर्व - गुरुवार को, जो पुनरुत्थान काल के छठवें रविवार के बाद आता है।इन दिनों में से अंतिम तीन दिनों के बारे में कलीसिया विषेश निर्देष देती है। छुट्टी के दिन न होने पर भी इन दिनों में, गंभीर असुविधा न हो, तो सबको पवित्र बलिदान और अन्य धर्मविधियों में भाग लेना चाहिए।इन दिनों में रविवार के जैसे पवित्र बलिदान में भाग लेते हुए और सत्कर्म करते हुए ईष्वर को महिमान्वित करना हमारा कर्तव्य है। प्रभु के दिन हमें आनन्द के साथ आराधना में भाग लेने का ध्यान रखना है। तब ही हम पूर्ण रूप से ईश्वर की तीसरी आज्ञा का पालन कर सकते हैं।हम प्रार्थना करें
पुनर्जीवित ईसा, हमें सहायता दीजिए कि आपके पुनरुत्थान केबारे में हम मनन करें और पुनरुत्थान की महिमा में भागलेने के योग्य बन जाएँ।हम गायेंआज के दिवस संपूज्यता से, आराधना करना ईष्वर कापाप और रोग, मृत्यु भी छोड़ता, उत्थित येसु का नाम ही गायें।आराधना, स्तुति, स्तोत्र आदि से, षक्तिमान प्रभु नाम ही लेंगेईष्वरीय षक्ति से आषिश पायें, विश्राम ही करके अनुभव गायें।दुःखित लोगों को प्रभु का प्यार, सेवा का मार्ग प्रभु ने दिया हैनाचेंगे गायेंगे भजन करेंगे, आनंद से हम दिन मनायें।ईष-वचन पढ़ें और वर्णन करें
लूकस 6: 6-11मार्गदर्षन के लिए एक पवित्र वचन
“यह प्रभु का ठहराया हुआ दिन है,हम आज प्रफुल्लित हो कर आनन्द मनायें”।(स्तोत्र-ग्रंथ 118ः24)हम करंे
रविवार के दिन हम जो सत्कर्म कर सकते हैं,उनकी एक सूची तैयार कीजिए।मेरा निर्णय
हर रविवार को मैं पवित्र बलिदान में भाग लूँगा/गीऔर ईसा को स्वीकार करूँगा/गी।