•   प्रभु ने मूसा से कहा: इस्राएलियों से कहो कि प्रभु के पुण्य-पर्व, जिन्हें समारोह के साथ मनाना चाहिए, वे इस प्रकार हैं। तुम छः दिन तक काम करोगे, परंतु सातवां दिन विश्राम दिवस है, वह पवित्र है। पहले महीने के चैदहवें दिन षाम के समय प्रभु के आदर में पास्का है और उस महीने के पंद्रहवें दिन बेखमीर रोटियों का पर्व है। इसी प्रकार नये अनाज का अन्न-पर्व और हफ्तों का पर्व, षिविर पर्व, नए साल का पर्व आदि पर्वों को मनाने का आदेष दिया (लेवी 23: 1-44)। 
                              इन सब पर्वों का लक्ष्य यह था कि इस्राएलियों के जीवन में ईष्वर ने जो महान कार्य किए थे उनका स्मरण करते हुए वे ईष्वर को धन्यवाद अर्पित करें। ईष्वर ने चाहा कि इनके द्वारा उनका सारा जीवन ईष्वर से अभेद्य रूप से जुड़ा रहना चाहिए। ईसा मसीह में पूरी हुई ईष्वर के मुक्ति-विधान की मुख्य घटनाओं का स्मरण करते हुए ईष्वर को धन्यवाद देना - आराधना वर्श वर्श द्वारा कलीसिया यही करती है। ईसा के जन्म से लेकर, प्रताप के साथ उनके  दूसरे आगमन तक की मुक्ति-योजना के मुख्य रहस्यों को केन्द्र बनाकर आराधना वर्श को रूप दिया गया है। पूर्वी सीरियाई कलीसिया के प्राधिधर्माध्यक्ष ईषोयाब तीसरे ने (647-657) हमारे आराधना वर्श के पंचांग को अभी का रूप दिया था। 

    अलग-अलग कालों का महत्व

                             हम मसीही इसीलिए बुलाए गए हैं कि ईसा के जीवन के रहस्यों में भाग लेकर मसीह को अनुभव करते हुए जिएँ और उसके फलस्वरूप स्वर्गीय सौभाग्य प्राप्त करें। ईसा में पूर्ण हुई मुक्ति योजना की घटनाओं का, भिन्न-भिन्न कालों के अनुसार, स्मरण और आचरण करते हुए उसके तात्पर्य के अनुरूप जीवन बिताना - यह है सही ख्रीस्तीय जीवन। मुक्ति-योजना के इतिहास की मुख्य घटनाओं के आधार पर आराधना वर्श को नौ भागों में विभाजित किया गया है।
    ईसा के जन्म की तैयारी में सुसंदेष काल, उनके जन्म की स्मृति में जयंती काल, उनके ज्ञानस्नान से केंद्रित प्रकटीकरण काल, ईसा के चालीस दिन के उपवास, दुःखभोग और मृत्यु के आधार पर उपवास काल, पुनरुत्थान एवं स्वर्गारोहण की याद में पुनरुत्थान काल, पवित्रात्मा के आगमन और कलीसिया के कार्यकलापों की स्मृति में प्रेरित काल, कलीसिया के विकास की याद में फलागमन काल, ईसा के रूपान्तरण और दूसरे आगमन की स्मृति में एलियस - सलीब - मूसा काल, अपनी वधू कलीसिया को ईसा द्वारा पिता को समर्पित किए जाने की याद में कलीसिया की प्रतिश्ठा काल - इस प्रकार सीरो मलबार कलीसिया में नौ काल हैं। 
     
                           पवित्र बलिदान में काल के अनुसार बदलने वाली प्रार्थनाएँ एवं याम प्रार्थनाएँ इस ढंग से तैयार की गई हैं कि प्रत्येक काल का अर्थ विष्वासियों का अनुभव हो जाये। मसीह को अनुभव करते हुए बढ़ना हो तो पूजन पद्धति के कालों के आधार पर जीवन बिताना है। इसीलिए कलीसिया सिखाती है कि हमारे भक्ति-कार्य भी पूजन पद्धति के अर्थ से उत्पन्न हों या उससे जुड़े हुए हों (आराधना क्रम 13)।  
     

    सुसन्देश काल (जयंती) 

                               हमारा आराधना वर्श सुसन्देष काल से षुरु होता है। ईसा का जन्मोत्सव 25 दिसंबर को मनाया जाता है; उसकी तैयारी में यह काल रखा गया है। सुसन्देष काल इस प्रकार षुरु होता है कि ईसा के पवित्र जन्म के पहले चार रविवार आ जाएँ लेकिन दिसंबर 1 से 25 तक का समय है मसीह जयंती की तैयारी का उपवास काल। 
                                सीरियाई भाशा में यह काल ‘सूबारा’ षब्द से जाना जाता है जिसका अर्थ है ‘सूचनाओं का काल’। जो मुक्तिदाता की प्रतीक्षा कर रहा था उस मानव कुल के लिए सबसे मंगलमय सन्देष था वह जो गब्रिएल दूत द्वारा पवित्र कुँवारी मरियम को दिया गया। हमारे पापी होने के बावज़ूद भी हमें प्यार करने वाले ईष्वर का असीम प्रेम ईसा के पवित्र जन्म द्वारा प्रकट होता है। ईष्वर के इस प्रेम के प्रति हमें चाहिए कि हम ईष्वर को और दूसरों को किसी षर्त के बिना प्रेम करें। 
                        ईसा के अग्रदूत योहन बपतिस्ता के जन्म का सन्देष, योहन का जन्म, मानव की सृश्टि, आदि माता-पिताओं का आज्ञाभंग और उसके परिणाम, बिगड़े हुए मानव कुल की दयनीय स्थिति, ईष्वर द्वारा मुक्ति की प्रतिज्ञा, मानव कुल के साथ ईष्वर का विधान, मुक्तिदाता के विशय में भविश्यवाणियाँ आदि हैं इस काल में मनन-चिंतन के मुख्य विशय। पाप के ज़्ारिये होने वाले विनाष के बारे में कलीसिया हमें विषेश रूप से याद दिलाती है। मुक्तिदाता को स्वीकार करने के लिए पष्चाताप और प्रायष्चित जरूरी है। इस काल में हम पवित्र कुँवारी मरियम का विषेश रूप से स्मरण करते हैं जिसने मुक्ति विधान के रहस्यों में पूर्ण रूप से भाग लिया। मरियम के आदर की प्रार्थनाएँ और गीत इस काल की विषेशताएँ हैं। 

     

    जयंती काल

                            ईसा मसीह के जन्मोत्सव से लेकर मसीह से प्रकटीकरण पर्व तक के दिनों को जयंती काल माना जाता है। ईसा का पवित्र जन्म, मंदिर में उनका समर्पण, ज्योतिशियों का आगमन और मिस्र में पलायन - ये हैं जयंती काल में मनन चिंतन के मुख्य विशय। 
                               इस समय हम उस स्नेही पिता के प्रेम का स्मरण करते हैं जिसने अपने पुत्र को षांति, भरोसा और मुक्ति के न्यास (बयान) के रूप में अयोग्य मानव को दिया। मुक्तिदाता के जन्म पर हमारा अवर्णनीय आनंद, मुक्तिदाता को देने के प्रति ईष्वर को स्तुति एवं कृतज्ञता, पवित्र कुँवारी मरियम के प्रति भक्त्यादर - यह सब होना चाहिए जयंती काल में हमारा मनोभाव।

    जयंती काल

                            ईसा मसीह के जन्मोत्सव से लेकर मसीह से प्रकटीकरण पर्व तक के दिनों को जयंती काल माना जाता है। ईसा का पवित्र जन्म, मंदिर में उनका समर्पण, ज्योतिशियों का आगमन और मिस्र में पलायन - ये हैं जयंती काल में मनन चिंतन के मुख्य विशय। 
                               इस समय हम उस स्नेही पिता के प्रेम का स्मरण करते हैं जिसने अपने पुत्र को षांति, भरोसा और मुक्ति के न्यास (बयान) के रूप में अयोग्य मानव को दिया। मुक्तिदाता के जन्म पर हमारा अवर्णनीय आनंद, मुक्तिदाता को देने के प्रति ईष्वर को स्तुति एवं कृतज्ञता, पवित्र कुँवारी मरियम के प्रति भक्त्यादर - यह सब होना चाहिए जयंती काल में हमारा मनोभाव।

    प्रकटीकरण काल

                            ईसा के ज्ञानस्नान और प्रकटीकरण का विषेश रूप से इस अवसर पर हम स्मरण करते हैं। प्रकटीकरण काल जनवरी छः तारीख के प्रकटीकरण पर्व से प्रारंभ होता है। दूसरी सदी से ही कलीसिया यह पर्व मनाती आ रही है। सिरियायी षब्द ‘दनहा’ का अर्थ है सूर्योदय, प्रकटीकरण, आदि। ईसा के ज्ञानस्नान के अवसर पर उनका ईष-पुत्रत्व एवं त्रितैक ईष्वर पिता, पुत्र और पवित्रात्मा का त्रित्व-रहस्य मानवों को प्रकट किए गए; प्रकटीकरण पर्व में हम इस महान् घटना का स्मरण करते हैं। ज्ञानस्नान से प्रारंभ हुए अपने सार्वजनिक जीवन द्वारा ईसा अपने स्वयं को प्रकट कर रहे थे। ईसा भलाई करते हुए घूम-फिर कर ईष्वर का प्रेम प्रकट करते थे; उनके साक्षी बनकर उनके प्रति हमारा प्रेम प्रकट करने के लिए यह काल हमें प्रेरित करता है।
                           प्रेरितों और सन्तों ने ईसा को संसार में प्रकट किया। प्रकटीकरण काल के षुक्रवारों में हम विषेश रूप से उनकी याद करते हैं। सभी मृत विष्वासियों को ईसा के साक्षी मानकर प्रकटीकरणकाल के आखिरी षुक्रवार को हम उनके लिए विषेश रूप से प्रार्थना करते हैं।

     

    उपवास काल

                                 आराधना वर्श का केन्द्र है पुनरुत्थान पर्व; उसकी तैयारी के सात सप्ताहों का समय है उपवास काल। षैतान के प्रलोभनों पर विजयी ईसा का स्मरण करते हुए हम उपवास काल षुरू करते हैं। ईसा के दुःख-भोग और मृत्यु के रहस्यों का विषेश रूप से मनन-चिंतन करने और हमारे पापों के प्रति प्रायष्चित करने के लिए यह काल निष्चित किया गया है। चालीस दिन निर्जन प्रदेष में ईसा का उपवास है पवित्र ग्रन्थ में बड़े उपवास काल का आधार। इस काल का पहला रविवार ‘पेतुरता रविवार’ जाना जाता है। सिरियायी षब्द ‘पेतुरता’ का अर्थ है ‘पीछे मुड़कर देखना’। पेतुरता रविवार की आधी रात से लेकर पुनरुत्थान रविवार तक के पचास दिनों को हमारी कलीसिया में उपवास काल मानते हैं। 
                       मानव का पाप और उसके दुश्परिणाम, पष्चाताप और मनपरिवर्तन की जरूरत, पष्चातापी पापी के प्रति ईष्वर का असीम प्रेम और करुणा, ईसा का दुःख-भोग एवं मृत्यु - इन रहस्यों का हम उपवास काल में विषेश रूप से स्मरण करते हैं। जैसे ईसा ने प्रलोभनों को पराजित कर अपने आपको पिता को समर्पित किया, वैसे ही उपवास, प्रार्थना एवं भिक्षादान द्वारा बुराई की षक्तियों पर विजयी होने की षक्ति पाने का समय है उपवास काल।
     

    उपवास काल

                                 आराधना वर्श का केन्द्र है पुनरुत्थान पर्व; उसकी तैयारी के सात सप्ताहों का समय है उपवास काल। षैतान के प्रलोभनों पर विजयी ईसा का स्मरण करते हुए हम उपवास काल षुरू करते हैं। ईसा के दुःख-भोग और मृत्यु के रहस्यों का विषेश रूप से मनन-चिंतन करने और हमारे पापों के प्रति प्रायष्चित करने के लिए यह काल निष्चित किया गया है। चालीस दिन निर्जन प्रदेष में ईसा का उपवास है पवित्र ग्रन्थ में बड़े उपवास काल का आधार। इस काल का पहला रविवार ‘पेतुरता रविवार’ जाना जाता है। सिरियायी षब्द ‘पेतुरता’ का अर्थ है ‘पीछे मुड़कर देखना’। पेतुरता रविवार की आधी रात से लेकर पुनरुत्थान रविवार तक के पचास दिनों को हमारी कलीसिया में उपवास काल मानते हैं। 
                       मानव का पाप और उसके दुश्परिणाम, पष्चाताप और मनपरिवर्तन की जरूरत, पष्चातापी पापी के प्रति ईष्वर का असीम प्रेम और करुणा, ईसा का दुःख-भोग एवं मृत्यु - इन रहस्यों का हम उपवास काल में विषेश रूप से स्मरण करते हैं। जैसे ईसा ने प्रलोभनों को पराजित कर अपने आपको पिता को समर्पित किया, वैसे ही उपवास, प्रार्थना एवं भिक्षादान द्वारा बुराई की षक्तियों पर विजयी होने की षक्ति पाने का समय है उपवास काल।
     

    पुनरुत्थान काल

            कलीसिया का सबसे महत्वपूर्ण पर्व, याने पुनरुत्थान पर्व, है इस काल का केन्द्र। पुनरुत्थान द्वारा ईसा ने जो नवजीवन प्राप्त किया, उसमें भागीदार होने तथा उसमें आनंद मनाने का काल है यह। पुनरुत्थान पर्व से पेन्तेकोस्त तक के सात सप्ताह हैं पुनरुत्थान काल।
                  ईसा के पुनरुत्थान के साथ ही स्वर्ग खुल गया और स्वर्ग में सन्तों की आत्माओं का प्रवेष हुआ। इसलिए पुनरुत्थान काल के पहले षुक्रवार को सभी सन्तों का पर्व मनाते हैं। पुनरुत्थान काल के दूसरे रविवार को नया रविवार और सन्त थोमस रविवार पुकारा जाता है। उस दिन हम हमारे पिता प्रेरित सन्त थोमस की विष्वास-घोशण का स्मरण करते हैं, जिन्होंने पुनरुत्थित ईसा में अपना विष्वास स्वीकार किया था। इस काल के पहले सप्ताह को ‘सप्ताहों का सप्ताह’ कहते हैं।
                        ईसा का पुनरुत्थान हमारे उत्थान का मूल आधार है। ‘‘यदि मसीह नहीं जी उठे, तो हमारा धर्म-प्रचार व्यर्थ है और आप लोगों का विष्वास भी व्यर्थ है’’ (1 कुरिंथियों 15ः14)। ज्ञानस्नान द्वारा हम प्रतीकात्मक रूप से मसीह के साथ उनके मरण, दफन  और पुनरुत्थान के भागीदार बनते हैं (रोमियों 6: 3 - 4; कलोसियों 2: 12)। जीवन के हर पल में ईसा की मृत्यु एवं पुनरुत्थान के भागीदार बनते हुए पाप के लिए मरे और ईसा में जीवित होकर पुनरुत्थान की महिमा में रूपांतरित होने के लिए (2 तिमथी 2: 12) पुनरुत्थान काल हमें आह्वान करता है।

    प्रेरित काल

                           पेन्तेकोस्त पर्व के साथ प्रेरितकाल का आरंभ होता है। पवित्रात्मा का आगमन, उनके कार्यकलाप, प्रेरितों एवं कलीसिया का आपसी संबन्ध, आदिम कलीसिया का धर्मोत्साह और कलीसिया का प्रेरिताई-स्वभाव हैं इस काल में मनन-चिन्तन के विशय। कलीसिया का औपचारिक षुभारंभ पेन्तेकोस्त के दिन में था। पेन्तेकोस्त के बाद पवित्रात्मा से पूरित होकर प्रेरितों ने दुनिया के कोने-कोने में जाकर सुसमाचार की घोशणा की और अनेक कलीसियायी समूहों की नींव डाली। सिरियायी षब्द ‘ष्लीहा’ का अर्थ है ‘भेजा हुआ’। हम सब जिन्होंने ज्ञानस्नान और तैलाभिशेक स्वीकार किए हैं, प्रेरितों के जैसे ही भेजे हुए हैं। प्रेरित काल हमें याद दिलाता है कि कलीसिया के प्रेरिताई कार्य में भागीदार होकर हमें ईसा के साक्षी होने चाहिए।

    फलागमन काल

                     प्रेरित काल के बाद के सात सप्ताहों को फलागमन काल कहते हैं। सिरियायी षब्द ‘कय्ता’ का अर्थ है ‘ग्रीश्मकाल’ जो फसल काटने का समय है। इसलिए यह फलागमन काल कहलाता है। प्रेरितों के परिश्रम के फलस्वरूप रोपी गयी कलीसिया जड़ पकड़कर, बढ़ते-बढ़ते दुनिया के चारों ओर फैलकर, अनेक संतों और षहीदों को जन्म देकर, पवित्रता के फल उत्पन्न करते हुए बढ़ रही है - फलागमन काल में हम इस तथ्य का स्मरण करते हैं। बारह प्रेरित हैं कलीसिया के बढ़ने का मूल आधार; उनके पर्व के साथ इस काल का आरंभ होता है। इस काल के षुक्रवारों में हम उन सन्तों का स्मरण करते हैं जो कलीसिया के विकास के लिए षहीद बन गए। कलीसिया के विकास के लिए प्रयत्न करने का उत्साह और तत्परता इस काल में कलीसिया की सन्तानों को अपनाना चाहिए।

    एलिया-सलीव-मूसा काल

                   पवित्र क्रूस के पर्व में, जो सितम्बर 14 तारीख को मनाया जाता है, केन्द्रित है एलिया-सलीव-मूसा काल। पवित्र सलीव के चिह्न और सब स्वर्ग दूतों के साथ महिमा में आने वाले मसीह का दूसरा आगमन, संसार का अन्त तथा न्याय का दिन - ये हैं इस काल में हमारे मनन-चिन्तन के विशय; देवदूतों के साथ प्रकट होने वाले मसीह को सन्तों के साथ स्वीकार करने के अनुग्रह के लिए इस काल में कलीसिया प्रार्थना करती है। षैतान के प्रलोभनों के विरुद्ध जाग्रता रखने एवं पापों को धो डाल कर ईसा के दूसरे आगमन की राह देखने के लिए यह काल हमें आह्वान करता है। ईसा के रूपान्तरण के समय उनके साथ प्रकट हुए मूसा और एलियस का स्मरण हम इस काल में विषेश रूप से करते हैं। प्रभु का रूपान्तरण उनके दूसरे आगमन का प्रतीक है। मूसा संहिता का एवं एलियस नबियों का प्रतीक हैं। आदिम कलीसिया का विचार था कि मसीह के दूसरे आगमन के पहले एलियस आ जायेंगे (मलआकी 3: 23) और विनाष के पुत्र से वाद-विवाद करके उसका भ्रम संसार को प्रमाणित करेंगे।

    कलीसिया की प्रतिष्ठा काल

                       आराधना वर्श के आखिरी चार सप्ताहों का समय है कलीसिया की प्रतिश्ठा काल। संसार के अन्त में ईसा द्वारा अपनी वधु कलीसिया पिता को अर्पित की जाएगी - इस काल में हम इसकी याद करते हैं। पहले सप्ताह का पर्व ही कलीसिया का समर्पण पर्व के नाम से जाना जाता है। कलीसिया के बारे में अधिक मनन-चिन्तन करने तथा कलीसिया के साथ मिलकर स्वर्गोन्मुख यात्रा करने में यह काल हमारी मदद करता है।

    आराधना वर्ष एवं याम प्रार्थनाएँ

                       पवित्र बलिदान में, विषेशकर रविवार के दिनों में, हम मसीह का रहस्य, याने उनका मनुश्यावतार एवं पास्का, मनाते हैं। यह रहस्य याम प्रार्थनाओं (संध्या वन्दना, निषा वन्दना, प्रभात वन्दना) द्वारा हर दिन के भिन्न-भिन्न समयों में व्याप्त होता है और उनका रूपान्तरण करता है। ‘‘नित्य प्रार्थना करनी चाहिए’’ (लूकस 18ः1) - मसीह के इस आदेष के अनुरूप यह (याम प्रार्थनाएँ) इस ढंग से तैयार की गयी है कि सारा दिन और सारी रात ईष्वर की स्तुति से पवित्र की जाए। कलीसिया की इस सार्वजनिक प्रार्थना द्वारा विष्वासीगण (पुरोहित-वर्ग, सन्यासी-सन्यासिनियाँ और लोक-धर्मी) ज्ञानस्नान में प्राप्त अपनी राजकीय पुरोहिताई का अनुश्ठान करते हैं।  कलीसिया की आधिकारिक प्रार्थना होने से याम प्रार्थनाएँ वास्तव में दुल्हन की आवाज़्ा है जो अपने दुलहे से बातें करती है। यह वही प्रार्थना है, जो मसीह अपने आध्यात्मिक षरीर (कलीसिया) के साथ पिता से करते हैं।
                               स प्रकार आराधना वर्श के अलग-अलग कालों के दौरान हम उस मुक्ति का, जिसे ईसा ने अपने जन्म, मृत्यु और पुनरुत्थान द्वारा अर्जित किया, अनुभव ग्रहण करते हुए बढ़ने तथा अन्त में स्वर्गधाम पहुँचने में समर्थ हो जाते हैं।

    ईषवचन पढ़ंे और मनन करें

    (1 पेत्रुस 1: 3-12)

    कंठस्थ करें

    ‘‘आप लोग हमारे प्रभु और मुक्तिदाता ईसा के अनुग्रह और ज्ञान में बढ़ते रहें’’ (2 पेत्रुस 3: 18)।

    हम प्रार्थना करें

    हे ईसा, अपनी मुक्ति-योजना के बहुमूल्य फलों को कलीसिया द्वारा आप हमें प्रदान करते हैं; आराधना वर्श के तात्पर्य के अनुसार जीवन बिताने का अनुग्रह हमें प्रदान कीजिए। 

    मेरा निर्णय

    मैं आराधना वर्श के अलग-अलग कालों का तात्पर्य समझकर उसके अनुसार जीने की कोषिष करूँगा/गी।
     

    कलीसिया के आचार्य कहते हैं

    ‘‘आराधना वर्श का क्रम और उसके मुख्य पर्व ख्रीस्तीय प्रार्थना जीवन के 
    आधार-भूत कार्य हैं।’’         (काथलिक कलीसिया का विष्वास संक्षेप 2698)।