पाठ-12
पुरोहिताभिशेक
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गलीलिया के समुद्र के किनारे टहलते हुए ईसा ने दो भाइयों को देखा - सीमोन जो पेत्रुस कहलाता है, और अंदे्रयस को। वे समुद्र में जाल डाल रहे थे, क्योंकि वे मछुए थे। ईसा ने उनसे कहा, ‘‘मेरे पीछे चले आओ। मैं तुम्हें मनुश्यों के मछुए बनाऊँगा।’’ वे तुरन्त अपने जाल छोड़कर उनके पीछे हो लिए (मत्ती 4ः18-20)। यह एक सुन्दर दृष्य है जहाँ ईसा उस स्वर्गराज्य की सेवा के लिए षिश्यों को बुलाते हैं जिसकी स्थापना करने वाले थे। अपने माता-पिताओं तथा अपने सबकुछ को छोड़ कर ईसा का अनुगमन करते हुए उन्होंने इस बुलावे का प्रत्युत्तर दिया। स्वर्ग राज्य की यह सेवा कार्य ईसा ने आज विषेश रूप से पुरोहितों को सौंपा है। पुरोहिताभिशेक संस्कार के ज़्ारिये युगान्त तक यह दौत्य कलीसिया में निभाया जाता है।
रोहिताई पुराने विधान में
ईष्वर ने इस्राएल को पुरोहितगण तथा पवित्र जन के रूप में चुन लिया; इस्राएल के लेवी वंष को आराधना कार्य हेतु विषेश रूप से नियुक्त किया। इस्राएल के प्रति भेंट तथा बलि चढ़ाने के लिए वे नियुक्त किए गए थे। किन्तु पुराने विधान की बलियाँ तथा पौरोहित्य नये विधान की उस बलि तथा पौरोहित्य के प्रतिरूप मात्र थीं जो ईसा में पूरे होने के थे (इब्रानियों 10: 1-18)। ‘‘...पापों के लिए एक ही बलिदान चढ़ाने के बाद वह सदा के लिए ईष्वर के दाहिने विराजमान हो गए हैं.... वे जिन लोगों को पवित्र करते हैं, उन्होंने उनको एक ही बलिदान द्वारा सदा के लिए पूर्णता तक पहुँचा दिया है’’ (इब्रानियों 10ः 12-14)।गतिविधि-1
दो या तीन के एक दल में इब्रानियों नाम पत्र अध्याय 9 पढ़ने के बाद पुराने विधान के पौरोहित्य से ईसा के पौरोहित्य की तुलना कीजिए।पुरोहित सामने रखा हुआ व्यक्ति है
‘पुरोहित’ षब्द का अर्थ है सामने रखा हुआ व्यक्ति। पुरोहित वह व्यक्ति है जिसे ईष्वर मनुश्यों के सामने रखता है तथा कलीसिया ईष्वर के सामने। ईष्वर तथा मनुश्यों के बीच का एकमात्र मध्यस्थ है ईसा मसीह (1 तिमथी 2: 5)। ईसा मसीह षाष्वत् पुरोहित हैं; उनके पौरोहित्य में पुरोहिताभिशेक संस्कार द्वारा पुरोहित भागीदार बनता है। इस प्रकार वह ईष्वर तथा मनुश्यों के बीच का मध्यस्थ बनता है।सामान्य पुरोहिताई
ज्ञानस्नान द्वारा हर एक व्यक्ति ईसा की पुरोहिताई का भागीदार बनता है। यही है विष्वासियों का सामान्य पुरोहिताई। ‘‘आप लोग चुने हुए वंष, राजकीय याजक-वर्ग, पवित्र राश्ट्र तथा ईष्वर की निजी प्रजा हैं’’ (1 पेत्रुस 2: 9) - सन्त पेत्रुस का यह कथन इस पुरोहिताई के बारे में है। हमारे जीवन तथा कार्यकलापों में बलि समर्पण का मनोभाव रखते हुए, हमारे आस-पास रहने वाले लोगों को ईसा का परिचय कराने तथा उन्हें ईष्वर की ओर ले आने के लिए सामान्य पुरोहिताई हमें बाध्य करती है।सुश्रूषा पुरोहिताई
ईष्वर किसी-किसी को चुनकर अपने सेवाकार्य हेतु विषेश रूप से नियुक्त करता है। ईष्वर की प्रजा की अगुवाई करने, उन्हें पढ़ाने तथा उन्हें पवित्र करने के अपने दौत्य में ईसा उन्हें भागीदार बनाते हैं। ईसा उन्हें इसलिए चुनते हैं जिससे वे ईसा के साथ रहें और ईसा उनको अपदूतों को निकालने, सुसमाचार का प्रचार करने और रोगियों को चंगा करने का अधिकार देकर भेज सकें (मारकुस 3: 14-15)। इस तरह ईसा ने अपने पास्का रहस्यों के ज़रिए प्राप्त मुक्ति के फल आनेवाली पीढ़ियों तक पहुँचाने हेतु प्रेरितों को अधिकार दिया। पवित्रात्मा को देखकर उन्हें दृढ़ बनाया। यही दौत्य और कृपा ईसा आज प्रेरितों के उत्तराधिकारी धर्माध्याक्षों तथा उनके सह-सेवक याजकों एवं उपयाजकों को देते हैं।प्रेरितों के सहसेवक
प्रेरितों ने जहाँ-जहाँ सुसमाचार की घोशणा की थी वहाँ वे सहसेवकों के रूप में पुरोहितों को नियुक्त करते थे। विष्वासियों के झुंड के प्रति सावधान रहने के लिए उन्हें उपदेष भी देते थे (प्रेरित चरित 20: 28)। संत पेत्रुस अपने सह-सेवकों से कहते हैं: ‘‘आप लोगों को ईष्वर का जो झुण्ड सौंपा गया है उसकी देखभाल करें’’ (1 पेत्रुस 5: 2)। प्रेरित गण अपने सह-सेवकों को हस्तारोपण द्वारा ही नियुक्त करते थे। प्रेरित संत पौलुस तिमथी से कहते हैं: ‘‘मैं तुमसे अनुरोध करता हूँ कि तुम ईष्वरीय वरदान की वह ज्वाला प्रज्जवलित बनाए रखो जो मेरे हाथों के आरोपण से तुममें विद्यमान है’’ (2 तिमथी 1: 6)।प्रेरितों के उत्तराधिकारी - धर्माध्यक्ष - भी आज हस्तारोपण द्वारा पुरोहिताई का अभिशेक करते हैं। पुरोहिताभिशेक संस्कार का सबसे महत्वपूर्ण भाग है हस्तारोपण की प्रार्थना। हस्तारोपण के ज़रिये पवित्रात्मा की विषेश कृपा से पुरोहिताभिशेक किया जाता है। आदिम कलीसिया में उपयाजकों को भी हस्तारोपण के द्वारा ही नियुक्त किया जाता था (प्रेरित चरित 6: 1-6)।प्रेरितों का उत्तराधिकार एवं पवित्रात्मा की कृपा
सीरो मलबार कलीसिया के पुरोहिताभिशेक संस्कार में हस्तारोपण की दो मुख्य प्रार्थनाएँ हैं। पहली हस्तारोपण-प्रार्थना में धर्माध्यक्ष यह प्रार्थना करते हैं: ‘‘हे प्रभु, पुरोहिताभिशेक के हस्तारोपण द्वारा हमें प्राप्त प्रेरितिक परम्परा के अनुसार तेरी कलीसिया में चुना हुआ पुरोहित बनने के लिए इस दास को तेरे सम्मुख, मैं समर्पित करता हूँ। पवित्रात्मा की कृपा इस पर उतरे और तेरे इकलौते की करुणा तथा अनुग्रह से इसे सौंपा गया ‘पुरोहिताई का सेवाकार्य’ निभाने के लिए यह दास परिपूर्ण किया जाए’’। यह प्रार्थना स्पश्ट करती है कि पुरोहिताभिशेक प्रेरितिक उत्तराधिकार है तथा पवित्रात्मा की षक्ति से इसका पालन किया जाता है। यह प्रार्थना यह भी सूचित करती है कि यद्यपि पुरोहिताई के सेवाकार्य के लिए बुलाया हुआ व्यक्ति अयोग्य है, तो भी पवित्रात्मा की षक्ति उसे परिपूर्ण बनाती है। पवित्र बलिदान की वचन विधि में जो आषीर्वाद की प्रार्थना है वह हमें इसी बात की याद दिलाती है: ‘‘पवित्रात्मा की कृपा से सच्ची पुरोहिताई की श्रेणियों का अभिशेक हस्तारोहण के द्वारा दिया जाता है। हे प्रभु, हमारे स्वभाव की तुच्छता के बावजूद तूने हमें अपनी सार्वत्रिक कलीसिया के चुने हुए सदस्य बनने और अपने भक्तों की आध्यात्मिक सेवा करने योग्य बनाया है...’’।प्रेरितों का उत्तराधिकार एवं पवित्रात्मा की कृपा
सीरो मलबार कलीसिया के पुरोहिताभिशेक संस्कार में हस्तारोपण की दो मुख्य प्रार्थनाएँ हैं। पहली हस्तारोपण-प्रार्थना में धर्माध्यक्ष यह प्रार्थना करते हैं: ‘‘हे प्रभु, पुरोहिताभिशेक के हस्तारोपण द्वारा हमें प्राप्त प्रेरितिक परम्परा के अनुसार तेरी कलीसिया में चुना हुआ पुरोहित बनने के लिए इस दास को तेरे सम्मुख, मैं समर्पित करता हूँ। पवित्रात्मा की कृपा इस पर उतरे और तेरे इकलौते की करुणा तथा अनुग्रह से इसे सौंपा गया ‘पुरोहिताई का सेवाकार्य’ निभाने के लिए यह दास परिपूर्ण किया जाए’’। यह प्रार्थना स्पश्ट करती है कि पुरोहिताभिशेक प्रेरितिक उत्तराधिकार है तथा पवित्रात्मा की षक्ति से इसका पालन किया जाता है। यह प्रार्थना यह भी सूचित करती है कि यद्यपि पुरोहिताई के सेवाकार्य के लिए बुलाया हुआ व्यक्ति अयोग्य है, तो भी पवित्रात्मा की षक्ति उसे परिपूर्ण बनाती है। पवित्र बलिदान की वचन विधि में जो आषीर्वाद की प्रार्थना है वह हमें इसी बात की याद दिलाती है: ‘‘पवित्रात्मा की कृपा से सच्ची पुरोहिताई की श्रेणियों का अभिशेक हस्तारोहण के द्वारा दिया जाता है। हे प्रभु, हमारे स्वभाव की तुच्छता के बावजूद तूने हमें अपनी सार्वत्रिक कलीसिया के चुने हुए सदस्य बनने और अपने भक्तों की आध्यात्मिक सेवा करने योग्य बनाया है...’’।पुरोहिताई की जिम्मेदारियाँ
हस्तारोपण की दूसरी प्रार्थना में एक पुरोहित की जिम्मेदारियों की याद दिलाते हैं तथा उनको निभाने की कृपा के लिए प्रार्थना करते हैं। सत्य के वचन की घोशणा करना, रोगियों पर हाथ रखकर उन्हें चंगा करना, निर्मल मन से पवित्र बलिवेदी पर षुश्रूशा करना, पापमोचन तथा ज्ञानस्नान देना, विवाह कराना आदि हैं इस प्रार्थना में दी गई पुरोहिताई की जिम्मेदारियाँ। इनके द्वारा विष्वासियों को षिक्षा देना, उनकी अगुवाई करना और उन्हें पवित्र करना - इन मसीही दौत्यों को पुरोहित के जरिए निभाया जाता है।पुरोहित एक शिक्षक
इस्राएलियों से ईष्वर के नाम पर बोलने एवं उनकी गलतियों को सुधार कर उन्हें ईष्वर की ओर ले आने के लिए ईष्वर द्वारा नियुक्त व्यक्ति थे नबी। षिक्षा देना नबियों का दौत्य है। ईष्वर द्वारा भेजे गए सबसे बड़े नबी हैं ईसा। संसार में आए सबसे बड़े गुरू हैं वे। अपना सारा सार्वजनिक जीवन उन्होंने षिक्षा देने में बिताया। मंदिर, सभागृह, पर्वत, घाटियाँ, खेत और समुद्र के तट - ये सब उनकी ‘प्रबोधन की वेदियाँ’ थीं। पुरोहित जो ईसा की पुरोहिताई में भागीदार है वह भी षिक्षा देने के लिए बुलाया गया है। मुक्ति का सुसमाचार सबों को सुनाना है पुरोहित की प्रथम जिम्मेदारी ( दूसरी वैटिकन महासभा का निर्णय: पुरोहितों के जीवन और धर्मसेवा के विशय में नं. 4)। विष्वासियों को विष्वास तथा सदाचार के विशयों में आधिकारिक षिक्षा देकर उन्हें प्रबुद्ध करना भी पुरोहितरोहित पवित्र करता है
इस्राएल जनता के लिए बलियाँ तथा भेंटें चढ़ाकर उन्हें पवित्र करने हेतु ईष्वर द्वारा चुनकर अभिशिक्त किए गए लोग थे पुराने विधान के पुराहित। परन्तु पुराने विधान की बलियाँ तथा भेंटें उपासकों को पूर्णता तक पहुँचाने में असमर्थ थीं। वे वास्तविक बलिदान की छाया मात्र थीं। लेकिन ईसा ने अनंत काल के लिए केवल एक ही बार बलि अर्पित करते हुए सारी मानव जाति की मुक्ति और पवित्रीकरण प्राप्त किया। पुरोहित जो ईसा की पुरोहिताई में भागीदार है, वह विष्वासियों को पवित्र करने के लिए बुलाया गया है। पवित्र करने के अनुश्ठानों द्वारा, यानि पवित्र बलिदान तथा संस्कारों द्वारा, पुरोहित गण मुख्य रूप से यह दायित्व निभाते हैं। पुरोहित का विष्वास-पर-अधिश्ठित जीवन, पवित्र जीवन और प्रार्थना - ये सब विष्वासियों के पवित्रीकरण का कारण बन जाते हैं।पुरोहित अगुवाई करता है
ईष्वर ने इस्राएलियों की अगुआई तथा उनका संरक्षण करने के लिए राजाओं को चुनकर अभिशिक्त किया। ईसा भला गडेरिया हैं जिन्होंने अपनी जनता के लिए जीवन अर्पित किया। उनके समान पुरोहित को चाहिए कि वह भेड़ों के झुंड को कृपा के चारागाहों की ओर तथा अंत में स्वर्ग में ले चले। उसका नेतृत्व सेवा का है, अधिकार का नहीं। वह उस भले गडेरिए का है जो भेड़ों केलिए जीवन अर्पित करता है। ईसा ने कहा: ‘मानव पुत्र अपनी सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने आया है’’। पुरोहित को चाहिए कि वह पाप की गुलामी से ईष्वरीय प्रेम की आज़्ाादी की ओर विष्वासियों को ले चले।रोहिताई की बुलाहट
जिस तरह ईसा ने बारहों को चुनकर नियुक्त किया था उसी तरह आज वे अपने दौत्य सौंपने के लिए कुछ व्यक्तियों को विषेश रूप से बुलाते हैं। हमें यह बुलावा सुनने का ध्यान रखना चाहिए। पुरोहिताभिशेक का संस्कार, जो हमें ईसा की पुरोहिताई के भागीदार बनाता है, अति श्रेश्ठ है। पुरोहिताभिशेक की विधि का यह गीत ध्यान देने योग्य है: ‘‘हे पुरोेहित, कितना ऊँचा है वह विषिश्ट स्थान जिसे तूने आज ग्रहण किया है...’’ यदि ईष्वर हमें विषिश्ट पुरोहिताई की ओर बुलाता है, तो हमें उस मार्ग पर चलना है। हममें से हर एक के प्रति ईष्वर की सुस्पश्ट योजना है। हमारा जीवन तभी फलदायक होता है, जब हम ईष्वर के ईच्छानुसार जीते हैं। ‘हमारे प्रति ईष्वर की इच्छा क्या है’ - यह समझने के लिए हमें निरंतर प्रार्थना करते हुए प्रयास करना है। संस्कारों को बारंबार ग्रहण करना, पवित्र ग्रन्थ पढ़ना आदि भी ईष्वर की बुलाहट को बढ़ाने में उपयोगी मार्ग हैं। उसके साथ-साथ कलीसिया को बहुत से अच्छे-अच्छे पुरोहित मिलने के लिए हमें प्रार्थना करनी भी चाहिए।ईषवचन पढ़ें और मनन करें
(2 तिमथि 1: 3-14)कंठस्थ करें
‘‘कोई अपने आप यह गौरवपूर्ण पद नहीं अपनाता। प्रत्येक प्रधान याजक हारूण की तरह ईष्वर द्वारा बुलाया जाता है‘’ (इब्रानियों 5: 4)।हम प्रार्थना करें
हे ईसा, आपने कहा: ‘फसल के स्वामी से विनती करो कि वह अपनी फसल काटने के लिए मजदूरों को भेजे।’ हम आपसे विनती करते हैं कि आप कलीसिया को बहुत से पुरोहितों, समर्पितों एवं लोकधर्मियों को प्रदान करें।मेरा निर्णय
मैं रोज़्ा पुरोहितों के लिए प्रार्थना करूँगा/गी।कलीसिया के आचार्य कहते हैं
पुरोहिताभिशेक के द्वारा पुरोहितगण षाष्वत् पुरोहित ईसा मसीह की पुरोहिताई का रूप धारण करते हैं। मसीह कलीसिया का षीर्श हैं; पुरोहित उस मसीह के सहसेवक तथा धर्माध्यक्षों के सहकर्मी होने के नाते उनको मसीह के पूर्ण षरीर - कलीसिया - का निर्माण करने में लगे रहना चाहिए। सभी ख्रीस्तीयों के समान वे भी ज्ञानस्नान के समर्पण में ईष्वर की बुलाहट और कृपा के चिह्न एवं उपहार स्वीकार कर चुके हैं। इसलिए मानवीय दुर्बलता के आधीन होते हुए भी पूर्णता प्राप्त करने में वे समर्थ हो जाते हैं (पुरोहितों के जीवन और धर्मसेवा के विशय में दूसरी वैटिकन महासभा का निर्णय, नं. 12)।