•             एक बार एक अद्र्धांगरोगी को चारपाई के साथ उठाकर कुछ लोग ईसा के पास आए। ईसा ने उनका विष्वास देखकर अद्र्धांगरोगी से कहा: ‘‘बेटा तुम्हारे पाप क्षमा हो गए हैं।’’ षास्त्रियों ने इसकी आलोचना की; तब ईसा उनसे बोलेः ‘‘तुम लोग यह जान लो कि मानव पुत्र को पृथ्वी पर पाप क्षमा करने का अधिकार मिला है - वे अद्र्धांगरोगी से बोले - ‘‘उठो और अपनी चारपाई उठाकर घर जाओ।’’ वह उठ खड़ा हुआ और अपनी चारपाई उठाकर घर चला गया’’ (मारकुस 2: 1-12)।
                ईसा ने कई बार व्यक्त किया कि उन्हें पाप क्षमा करने का अधिकार है। जिसने उनके पैर धोए उस पापीनी स्त्री से ईसा ने कहा: ‘‘तुम्हारे पाप क्षमा हो गए हैं’’ (लूकस 7-48)। व्यभिचार में पकड़ी गई स्त्री को भी पाप मोचन देते हुए ईसा ने कहा: ‘‘अब से फिर पाप नहीं करना’’ (योहन 8-11)। ईसा ने पाप मोचन का अपना अधिकार पवित्र कलीसिया को सौंप दिया है। पुनरुत्थान के बाद षिश्यों को दिखाई देकर ईसा ने उनसे कहा; ‘‘जिस प्रकार पिता ने मुझे भेजा उसी प्रकार मैं तुम्हें भेजता हूँ। पवित्रात्मा को ग्रहण करो। तुम जिन लोगों के पाप क्षमा करोगे वे अपने पापों से मुक्त हो जायेंगे और जिन लोगों के पाप क्षमा नहीं करोगे वे अपने पापों से बंधे रहेंगे’’ (योहन 20ः 22-23)। संस्कारों के अनुश्ठान द्वारा कलीसिया इस दौत्य को जारी रखती है। मेलमिलाप संस्कार और रोगीलेपन विषेश रूप से पाप मोचन और चंगाई प्रदान करते हैं। इस कारण उन्हें ‘चंगाई देने वाले संस्कार’ कहते हैं।
              संस्कारों के अनुश्ठान द्वारा कलीसिया इस दौत्य को जारी रखती है। मेलमिलाप संस्कार और रोगीलेपन विषेश रूप से पाप मोचन और चंगाई प्रदान करते हैं। इस कारण उन्हें ‘चंगाई देने वाले संस्कार’ कहते हैं।
     

    गतिविधि-1 

    चार अलग अलग दल बनकर निम्न लिखित चार सुसमाचार भागों में से एक एक चुनकर पढ़िये। उस सुसमाचार भाग के आधार पर एक दृष्य प्रस्तुति तैयार करके कक्षा में दिखाइये।
    मारकुस 2: 1 - 12, लूकस 7: 36 - 49, योहन 8: 1 - 11, लूकस 15: 11 - 24

    मेलमिलाप संस्कार

                   मेलमिलाप संस्कार द्वारा पापियों के प्रति पिता ईष्वर के अनंत प्रेम और करुणा का हम अनुभव करते हैं। यह संस्कार हमें पाप मोचन एवं आगे पाप नहीं करने की षक्ति देकर ईष्वर से और भाई-बहिनों से हमारा मेलजोल कराता है।

    मेलमिलाप चार क्षेत्रों में

                              एक व्यक्ति का पाप चार प्रकार के टूटनों का कारण बनता है। पाप के द्वारा ईष्वर और मनुश्य के बीच का पितृ-पुत्र रिष्ता भंग हो जाता है; भाई-बहिनों के प्रति रिष्ता नश्ट हो जाता है; अपने आपके और दुनिया के प्रति अपना रिष्ता बिगड़ जाता है। इस प्रकार पाप के द्वारा चारों क्षेत्रों में जो सम्बन्ध बिगड़ता है उसे मेलमिलाप संस्कार फिर से जोड़ता है।

    मेलमिलाप संस्कार कबूल करने का संस्कार है

                          गलती होना सहज है। गलती की माफी सभी चाहते हैं। अन्य धर्मावलम्बी भी उपवास करते हुए तीर्थ यात्रा करते हैं और पुण्य तीर्थों पर स्नान करते हैं तथा पाप मोचन पाने का प्रयास करते हैं। पाप कबूल करना, मानवीय दृश्टि में भी हमें आजाद बनाता है और दूसरों से मेलजोल में रहने में मदद करता है। मसीह ने पापमोचन का अधिकार पवित्र कलीसिया को सौंपा है। इसलिए कलीसिया के प्रतिनिधि पुरोहित के सामने पाप कबूल करने से ईष्वर तथा कलीसिया के साथ हमारा मेल होता है और खोया हुआ ‘ईष-पुत्र’ का पद हम पुनः प्राप्त करते हैं। अतः पुरोहित के सामने कबूल करना मेलमिलाप संस्कार में अनिवार्य है। संत अगस्टिन सिखाते हैं: ‘‘दुश्कर्मों को कबूल करना सत्कर्मों का आरंभ है।’’ इस संस्कार में ‘कबूल करने का स्वभाव’ सूचित करने के लिए ही इसे ‘‘पाप स्वीकार संस्कार’’ का नाम दिया गया था।

    क्षमा करने का और पाप मुक्ति का संस्कार

                       उड़ाऊ पुत्र के दृश्टांत द्वारा ईसा ने अपने पिता के प्रेम और करुणा की गहराई प्रकट की। जब वह हमारे पाप और अपराध हमें क्षमा करता है, तभी हम व्यक्तिगत रूप से उसकी करुणा और प्रेम का अनुभव करते हैं। जब ईष्वर क्षमा करता है तब हमें पाप मोचन मिलता है। मेलमिलाप संस्कार क्षमा करने का और पाप मोचन का संस्कार है जो हमें ईष्वर के क्षमाषील प्रेम का अनुभव कराता है।

    पाप मोचन पुरोहित द्वारा

                       पापों को क्षमा करने का अधिकार मसीह ने अपनी कलीसिया को सौंपा है। कलीसिया के प्रतिनिधि - पुरोहित - के द्वारा यह संस्कार दिया जाता है। मेलमिलाप संस्कार में पुरोहित के सामने कबूल किए गए पापों को वे कभी भी, किसी भी परिस्थिति में प्रकट नहीं करेंगे। मेल मिलाप संस्कार में सुनी हुई बातों के आधार पर वे कुछ भी नहीं बोलेंगे न करेंगे। चाहे मरना पड़े तो भी मेलमिलाप संस्कार के मौन-बन्धन (ैमंस व िबवदमिेेपवद) का पालन करना पुरोहित का गंभीर कत्र्तव्य ह

    मेलमिलाप संस्कार फलदायक बनाने में सहायक पाँच बातें

     
    1. मन की जाँच: ईष्वर के सामने, पिछले मेलमिलाप संस्कार के बाद के जीवन की जाँच    करके, आयी हुई गलतियों को ढूँढ निकालना है। कत्तर््ाव्यों को नहीं निभाने से एवं वर्जित कार्यों को करने से पाप होते हैं। ईष्वर की आज्ञाओं और कलीसिया के नियमों के आधार पर तथा अपने जीवनस्तर (अविवाहित, विवाहित, समर्पित) के कत्र्तव्यों के आधार पर यह जाँच करनी चाहिए।
    2. पश्चाताप: कोई भी पाप ईष्वर के प्रेम के विरुद्ध होता है। पाप के द्वारा हमने ईष्वर 
    को दुःख दिया - इस विचार से मन में उत्पन्न दुःख और पापों के प्रति द्वेश हमें सही 
    पष्चाताप की ओर ले चलते हैं। तब उड़ाऊ पुत्र के जैसे हम कबूल कर सकते हैं - 
    ‘ईष्वर, मैंने आपके विरुद्ध पाप किया है।’ पाप के मार्गों को पूर्ण रूप से त्यागकर ईसा 
    के मार्ग पर वापस आने का मनोभाव है पष्चाताप का सारांष।
    3. प्रतिज्ञा: सही पष्चाताप फिर से पाप नहीं करने के दृढ़ संकल्प की ओर ले चलता है। 
    पाप करने के अवसरों को त्यागने का दृढ़ संकल्प भी रहेगा। यह दृढ़ निष्चय एवं दृढ़ 
    संकल्प ही प्रतिज्ञा है - प्रतिज्ञा पालन की कृपा के लिए प्रार्थना करनी चाहिए तथा दृढ़ 
    मन से परिश्रम करना भी है।
    4. कबूल करना: हमें सभी पापों को पुरोहित के सामने कबूल करना है। बड़े पापों की 
    संख्या और उनका स्वभाव भी साफ-साफ बताना चाहिए। इसके द्वारा ईसा और 
    कलीसिया के साथ हम अपना खुला मनोभाव व्यक्त करते हैं। पुरोहित को हमारी 
    आत्मा की स्थिति सही रूप से समझने में यह सहायक है।
    5. प्रायश्चित: पुरोहित द्वारा दिया गया प्रायष्चित ध्यान से सुनकर उसका पालन करना 
    है। यदि बराबर नहीं सुना तो उनसे पूछकर समझना चाहिए। पुरोहित द्वारा दिए गए 
    प्रायष्चित के अतिरिक्त अपनी ओर से भी कुछ प्रायष्चित करना उचित है। जब 
    पुरोहित प्रायष्चित दे चुके हैं तब सिर झुकाकर पापमोचन स्वीकार करना है। इस 
    समय पष्चाताप की विनती मन में दोहराकर ईसा से पापमोचन और कृपा की याचना 
    करनी चाहिए। मेलमिलाप संस्कार की तैयारी करते समय पापों के प्रति पछताते हुए 
    भी पष्चाताप की विनती कर सकते हैं।
    यह संस्कार हमें पापमोचन तथा मन एवं षरीर को स्वास्थ्य  और षान्ति प्रदान करता है; इसे बार-बार स्वीकार करने का हम ध्यान रखें।

    रोगी लेपन

                       ईसा ने अपने सार्वजनिक जीवन के समय अनेक रोगियों को चंगा किया। वे राज्य केसुसमाचार का प्रचार करते हुए, हर प्रकार की बीमारी और दुर्बलता दूर करते हुए, सब नगरों और गाँवों में घूमते थे (मत्ती 9-35)। उत्पत्ति ग्रन्थ यह साक्ष्य देता है कि मानव के पापों के कारण ही उसके जीवन में कठिनाइयाँ और बीमारियाँ होती रहती हैं। ईष्वर ने मानव की सृ िट सुःख चैन की स्थिति में की थी। जब उसने पाप करके उस स्थिति को न ट किया तब बीमारियाँ
    और दुख संकट आ गए। बीमारी एक ऐसा अवसर है जो मानव को ईष्वर की ओर मुड़ने के लिए पे्ररित करता है।
                       ईष्वर चंगाई देने वाला है। बीमारी के समय मनु य को ईष्वर का आसरा लेना है। आदिम कलीसिया में यह दृढ़ धारणा मौजूद थी। संत याकूब कहते हैंः ‘‘यदि आप लोगों में कोई अस्वस्थ हो, तो कलीसिया के अध्यक्षों को बुलाये और वे प्रभु के नाम पर तेल का विलेपन करने के बाद उसके लिए प्रार्थना करें। वह विष्वासपूर्ण प्रार्थना रोगी को बचाएगी और प्रभु उसे स्वास्थ्य प्रदान करेगा। यदि उसने पाप किया है, तो उसे क्षमा मिलेगी’’ (याकुब 5ः14-15)।
                  रोगीलेपन एक ऐसा संस्कार है जो हमें पाप मोचन और चंगाई देकर हमारीआत्मा और ारीर को स्वास्थ्य प्रदान करता है। इस संस्कार द्वारा प्राप्त पवित्रात्मा की ाक्तिरोगी को आत्मिक चंगाई की ओर ले चलती है। यदि ईष्वर की इच्छा हो तो ाारीरिक चंगाई भीमिलती है। ईष्वर की करुणा में विष्वासरखते हुए जीवन की कठिनाइयों, बीमारियों एवं दुःखतकलीफों को संतुलित मन से स्वीकार करने की ाक्ति रोगीलेपन संस्कार हमें देता है। बीमारी
    की नाजुक हालत में ही हम यह संस्कार स्वीकार करते हैं। यदि जरूरी हो तो एक से अधिक बार

    अनुष्ठान की विधि

                           याजक यह कहते हुए रोगी के कमरे में पवित्र जल छिड़कता है: ‘‘प्रभु ईसा मसीह जिसने ज्ञानस्नान द्वारा हमें अपने क्रूसमरण और पुनरुत्थान के सहभागी बनाया है वह आपको पवित्र बना दे।’’ घोशणा प्रार्थना माला तक पवित्र बलिदान की विधि का उपयोग करता है। उसके बाद रोगीलेपन के तेल की आषिश होती है। ‘इस पवित्र तेल के लेपन द्वारा दर्द कम हों, दुःख मिट जाएँ, घाव सुख जाएँ तथा षरीर और आत्मा को चंगाई प्राप्त हो’ - यह प्रार्थना बोलकर पवित्र त्रित्व की स्तुति करते हुए तेल की आषिश करता है। फिर रोगी के ऊपर दाहिना हाथ बढ़ाते हुए (हथेली नीचे की ओर) आषीर्वाद की प्रार्थना बोलता है। फिर तेल से लेपन करते हुए पाप मोचन तथा आत्मा और षरीर की चंगाई के लिए प्रार्थना करता है। माथे, आँखों, कानों, होठों, हाथों एवं पैरों का लेपन करते हुए उन अंगों द्वारा किए गए पापों की क्षमा के लिए ईष्वर से करुणा की याचना करता है।
                                  लेपन के बाद ‘‘अनुतापी जन को प्रभु करता चंगा...’’ गीत गाते हैं। तब समूह मेलमिलाप की घोशणा प्रार्थना माला बोलकर रोगी के लिए प्रार्थना करता है। उसके बाद रोगी को परम प्रसाद देता है। पापियों को मोचन, रोगियों को सौख्य और पीड़ितों को सांत्वना प्रदान करने के लिए प्रिय पुत्र को भेजने के प्रति धन्यवाद देते हुए तथा रोगी को आत्मिक और षारीरिक सांत्वना प्रदान करने के प्रति स्तुति अर्पित करते हुए याजक प्रार्थना करता है। धन्य कुँवारी मरियम, संत यूसुफ, पे्ररित संत थेमस और सभी संतों की मध्यस्थता रोगी के लिए मांगता है। रोगी और समूह को आषीर्वाद देने के बाद रोगी को सलीब का चुम्बन कराता है।
                             जरूरत के वक्त यह सौख्यदायक संस्कार स्वीकार करके ईसा के प्रेम और करुणा का हम अनुभव करें।  

    ईष वचन पढ़ें और मनन करें

    1 कुरिंथियों 11: 27-31

    कंठस्थ करें

    ‘‘तुम जिन लोगों के पाप क्षमा करोगे, वे अपने पापों से मुक्त हो जायेंगे और जिन लोगों के पाप क्षमा नहीं करोगे, वे अपने पापों से बंधे रहेंगे’’ (योहन 20: 23)।

    हम प्रार्थना करें

    हे ईसा, आप पाप मोचन एवं चंगाई देते हुए घूमते रहे; पापों से मुक्त होकर पवित्रता के मार्ग पर चलने की षक्ति हमें 

    मेरा निर्णय

    मैं दो हफ्ते में एक बार मेलमिलाप का संस्कार स्वीकार करूँगा/गी।

    कलीसिया के आचार्य कहते हैं

    ‘‘हर एक बीमारी के लिए दवाई होती है। जो षैतान के हमले से घायल है, वह उपचार हेतु पुरोहित के पास जाए। जो पाप कबूल करता उसे ईष्वर क्षमा करता है’’ (अफ्रातस)।