पाठ-10
प्रवेषक संस्कार
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ईसा के पुनरुत्थान के बाद, ग्यारह षि य जैतून पहाड़ गए, जहाँ ईसा ने उन्हें बुलायाथा। पुनरुत्थित ईसा वहाँ उन्हें दिखाई दिए। उन्होंने ईसा को देखकर दण्डवत किया। तब ईसा नेउनके पास आकर कहा, ‘‘मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है। इसलिए तुम लोगजाकर सब रा ट्रों को षि य बनाओ और उन्हें पिता, पुत्र और पवित्रात्मा के नाम पर बपतिस्मादो। मैंने तुम्हें जो-जो आदेष दिए हैं तुम लोग उनका पालन करना उन्हें सिखलाओ और याद रखो - मैं संस्कार के अंत तक सदा तुम्हारे साथ हूँ’’ (मत्ती 28: 16-20)। इस प्रकार ईसा नेजो दौत्य सौंपा है उसे कलीसिया संस्कारों द्वारा आज भी जारी रखती है।
प्रवेश संस्कार
ज्ञानस्नान, तैलाभिशेक और परम प्रसाद - इन तीन संस्कारों को प्रवेषक संस्कार कहते हैं; क्योंकि ये तीनों एक व्यक्ति को मसीह-रहस्य और कलीसिया के समूह में प्रवेष कराने क संस्कार हैं। इनको प्रारंभिक संस्कार भी कहते हैं क्योंकि इनके द्वारा एक व्यक्ति अपना कलीसियायी जीवन षुरू करता है (कैथेलिक कलीसिया का संक्षेप 1212)। ज्ञानस्नान द्वारा विष्वासीगण दुबारा जन्म लेते हैं; तैलाभिशेक के जरिए दृढ़ बनाए जाते हैं; परम प्रसाद - अनन्त जीवन के भोजन - द्वारा पोशित किए जाते हैं। इस प्रकार संस्कारों द्वारा एक व्यक्ति कलीसिया में जन्म लेता है और ईष्वरीय जीवन में बढ़ता है। इसलिए आदिम सदियों में इन तीनों संस्कारों को एक साथ ही दिया जाता था।पूर्वी कलीसियाओं में इन तीनों संस्कारों को एक साथ देने की परम्परा आज भी प्रचलित है। एक प्रार्थी को ज्ञानस्नान और तैलाभिशेक के बाद परम प्रसाद भी देते हैं। संत हिप्पोलिट्टस के (170 - 235)। ‘प्रेरितिक परम्परा’ नामक ग्रन्थ में लिखा है कि ज्ञानस्नान, तैलाभिशेक एवं परम प्रसाद एक साथ दिया करते थे।गतिविधि-1
दो या तीन के अलग-अलग दल बनाइये। पूर्व में देखे हुए ज्ञान स्नान को याद कीजिए। उसके मुख्य अनुश्ठानों को क्रम से लिखिए। रोमियों 6: 3-4 पढ़िये। चर्चा कीजिए कि यह पवित्र वचन ज्ञान स्नान के अनुश्ठान में कैसे सार्थक होता है।ज्ञान स्नान
ईसा की मृत्यु एवं पुनरुत्थान में सहभागिता
ज्ञानस्नान द्वारा हम मसीह की मृत्यु एवं पुनरुत्थान में भागीदार बनते हैं और दुबारा जन्म लेते हैं। ज्ञानस्नान में मसीह के साथ मरकर हम उनके साथ पुनर्जीवित होते और नई सृश्टि बन जाते हैं। सन्त पौलुस रोम की कलीसिया को लिखते हैंः ‘‘क्या आप लोग यह नहीं जानते कि ईसा मसीह का जो बपतिस्मा हम सबों को मिला है, यह उनकी मृत्यु का बपतिस्मा है? हम उनकी मृत्यु का बपतिस्मा ग्रहण कर उनके साथ इसलिए दफनाए गए हैं कि जिस तरह मसीह पिता के सामथ्र्य से मृतकों में से जी उठे हैं उसी तरह हम भी एक नया जीवन जीयें’’ (रोमियों 6: 3-4)।ज्ञानस्नान में प्रार्थी को पानी में डुबाना मसीह के साथ मरने को सूचित करता है। इस अर्थ में ही कब्र के प्रतीक के रूप में ‘ज्ञानस्नान कुण्ड’ को मानते हैं। पानी में डूबकर बाहर आना मसीह के साथ जी उठने को सूचित करता है।पापों का मोचन
ज्ञानस्नान ऐसा एक संस्कार है जो पापमोचन देता है। मूल पाप और यदि कर्म पाप हो तो उसे भी ज्ञानस्नान संस्कार मोचित करता है। ‘पापों की क्षमा के लिए एक ही स्नानसंस्कार हम स्वीकार करते हैं।’ इस प्रकार धर्मसार में हम बोलते हैं। प्रेरित सन्त पौलुस कहते हैं कि ज्ञानस्नान में हम मसीह के साथ-इसलिए क्रूस पर चढ़ाए गए हैं कि हमारा पापमय षरीर मर जाए (रोमियो 6: 6)। ‘क्या आप पाप और पाप मार्गों को छोड़ देते हैं ?’ - इस प्रष्न के उत्तर में स्नानार्थी कहता हैः ‘जी हाँ, मैं छोड़ देता हूँ’; इससे वह व्यक्ति यह घोशित करता है कि उसको अब से पाप से कोई संबन्ध नहीं है।पापों का मोचन
ज्ञानस्नान ऐसा एक संस्कार है जो पापमोचन देता है। मूल पाप और यदि कर्म पाप हो तो उसे भी ज्ञानस्नान संस्कार मोचित करता है। ‘पापों की क्षमा के लिए एक ही स्नानसंस्कार हम स्वीकार करते हैं।’ इस प्रकार धर्मसार में हम बोलते हैं। प्रेरित सन्त पौलुस कहते हैं कि ज्ञानस्नान में हम मसीह के साथ-इसलिए क्रूस पर चढ़ाए गए हैं कि हमारा पापमय षरीर मर जाए (रोमियो 6: 6)। ‘क्या आप पाप और पाप मार्गों को छोड़ देते हैं ?’ - इस प्रष्न के उत्तर में स्नानार्थी कहता हैः ‘जी हाँ, मैं छोड़ देता हूँ’; इससे वह व्यक्ति यह घोशित करता है कि उसको अब से पाप से कोई संबन्ध नहीं है।ईष्वर की संतान होकर जन्म लेना
जब निकोदेमुस रात को ईसा से मिलने आया, तब ईसा ने कहा: ‘‘जब तक कोई जल और पवित्रात्मा से जन्म न ले तब तक वह ईष्वर के राज्य में प्रवेष नहीं कर सकता’’ (योहन 3ः5)। ज्ञानस्नान के ज़्ारिए पवित्रात्मा हमें ईष्वर की संतान बना देता है। पाप के कारण नश्ट हुआ ईष्वरीय प्रतिरूप हम पुनः प्राप्त करते हैं। हमें ईष्वरीय जीवन या कृपा से भरकर ईष्वर की संतान एवं स्वर्गराज्य के अधिकारी बना देता है। इसीलिए मार एफ्रेम की दृश्टि में ज्ञानस्नान वह अनुश्ठान है जिसके द्वारा बच्चे स्वर्ग राज्य के लिए मुद्रित किए जाते हैं। इसी अर्थ में कलीसिया के आचार्य ज्ञानस्नान कुण्ड को कलीसिया की कोख कहते हैं जो कलीसिया के लिए संतानें उत्पन्न करती हैं।कलीसियायी समूह से जुड़ जाना
ज्ञानस्नान हमें मसीह के षरीर के अंग बना देता है। प्रेरित संत पौलुस कहते हैंः ‘हम सब के सब एक ही आत्मा का बपतिस्मा ग्रहण कर एक ही षरीर बन गए हैं’ (1 कुरिन्थियों 2-13)। जो ज्ञान स्नान ग्रहण करता है वह कलीसिया का अंग बनने के साथ-साथ ईसा का अपना हो जाता और उनके अनुरूप बन जाता है। मसीह उसमें एक आध्यात्मिक छाप लगाते हैं जिसे मिटा नहीं सकते। यह इस तथ्य की छाप है कि जो ज्ञानस्नान स्वीकार करता है वह ईसा का अपना बन जाता है। यह छाप पाप के द्वारा भी नहीं मिट जाती। इसलिए ज्ञानस्नान हमेषा के लिए एक ही बार लिया जाता है। इसके द्वारा दूसरों के अधीन रहने, कलीसियायी समूह मउनकी सेवा करने तथा कलीसिया के अधिकारियों का आज्ञापालन करने के लिए वह बुलाया जाता है (कैथेलिक कलीसिया का विष्वास संक्षेप 1269, 1272)।ज्ञानस्नान और विश्वास
ज्ञानस्नान विष्वास का संस्कार है। ईसा ने अपने स्वर्गारोहण के समय षिश्यों को एक दौत्य दिया: ‘संसार के कोने-कोने में जाकर सारी सृश्टि को सुसमाचार सुनाओ। जो विष्वास करेगा और बपतिस्मा ग्रहण करेगा उसे मुक्ति मिलेगी। जो विष्वास नहीं करेगा वह दोशी ठहराया जाएगा’ (मारकूस 15ः15-16)। जो ईसा में पूर्ण विष्वास करते हैं उनको ही ज्ञानस्नान दिया जाता है। मुक्ति की प्रतिज्ञा केवल उनके लिए है जो विष्वास करते हुए ज्ञानस्नान स्वीकार करते हैं। ‘मुक्ति प्राप्त करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए ?’ - कारापाल के इस सवाल को पौलुस और सीलस जो जवाब देते हैं, वह उपर्युक्त बात को स्पश्ट करता है। ‘आप प्रभु ईसा में विष्वास कीजिए तो आपको और आपके परिवार को मुक्ति प्राप्त होगी’ (प्रेरित चरित 16ः31)। प्रेरित सन्त पौलुस कहते हैंे: ‘‘यदि आप लोग मुख से स्वीकार करते हैं कि ईसा प्रभु हैं और हृदय से विष्वास करते हैं कि ईष्वर ने उन्हें मृतकों में से जिलाया, तो आप को मुक्ति प्राप्त होगी’ (रोमियों 10ः9)।षिषुओं के ज्ञानस्नान में सारे कलीसियायी समूह के विष्वास को कलीसिया ध्यान में रखती है। इसलिए षिषुओं के ज्ञानस्नान में षिषुआंे के स्थान पर धर्ममाता-पिता प्रष्नों के उत्तर देते हैं। इसके अतिरिक्त ज्ञानस्नान का विष्वास प्रारंभिक विष्वास मात्र है जिसे बढ़ाना जरूरी है। जो ज्ञानस्नान ग्रहण करते हैं उन सबका विष्वास ज्ञानस्नान के बाद बढ़ते रहना चाहिए। इसमें माता-पिताओं एवं कलीसियायी समूह की तत्परता और सहायता आवष्यक है। यह एकतैलाभिषेक
जो ज्ञानस्नान द्वारा पवित्रात्मा में दुबारा जन्म लेकर ईष्वर की संतान बन चुके हैं, उन्हें मसीह का सुसमाचार घोशित करने तथा उनके साक्षी बनने के लिए आवष्यक पवित्रात्मा की विषेश षक्ति एवं कृपा देने वाला संस्कार है तैलाभिशेक। ज्ञानस्नान से प्राप्त विष्वास में यह संस्कार उन्हें दृढ़ बनाता है। तैलाभिशेक संस्कार के ज़्ारिए वे कलीसिया के साथ पूर्ण रूप से जोड़े जाते हैं और पवित्रात्मा की विषेश षक्ति से धनी बनाए जाते हैं। कैथेलिक कलीसिया हमें सिखाती है कि ज्ञानस्नान में प्राप्त कृपा की पूर्ति के लिए तैलाभिशेक संस्कार जरूरी है। जिसने ज्ञानस्नान द्वारा दुबारा जन्म लिया है उसे यह संस्कार ख्रीस्तीय पूर्णता की ओर ले चलता है और ख्रीस्तीयों को पवित्रात्मा से भरपूर होकर निर्भीकता से मसीह के साक्षी होने में सक्षम बना देता है। पवित्रात्मा की विषेश षक्ति एवं कृपा इस संस्कार द्वारा मिलती हैं।ईसा - पवित्रात्मा से अभिशिक्त
सिरियायी षब्द ‘म्षीहा’ का अर्थ है ‘अभिशिक्त’। ईसा पवित्रात्मा से अभिशिक्त हैं। ज्ञानस्नान के वक्त पवित्रात्मा ने कपोत के रूप में आकर ईसा का अभिशेक किया। पवित्रात्मा से पूरित होकर ईसा ने अपने द्वारा जो होने की थी उस मुक्तियोजना की पूर्ति के लिए दृढ़ संकल्प एवं लक्ष्य-बोध के साथ नाज़्ारेत के सभागृह पहुँचकर सार्वजनिक जीवन षुरू किया। मुक्तिदायक दौत्य निभाने मंे पवित्रात्मा ने ईसा को षक्ति प्रदान की।प्रेरित-पवित्रात्मा से परिपूरित
अपनी मृत्यु के पहले ही ईसा ने प्रेरितों को पवित्रात्मा की प्रतिज्ञा की थी (योहन 14: 26)। पुनरुत्थान के बाद ईसा ने प्रेरितों को दर्षन दिए तथा उन पर फँूककर उन्हें पवित्रात्मा प्रदान किया (योहन 20: 22 - 23)। पेंतेकोस्त के दिन, जब पे्ररितगण सियोन की अटारी में प्रार्थना में लीन रहे थे, तब पवित्रात्मा आग की ज्वालाओं के रूप में उतरकर उन पर ठहर गया और उन्हें प्रेरिताई कार्य निभाने की षक्ति प्रदान की।आदिम ख्रीस्तीय - पवित्रात्मा से परिपूरित
आदिम ख्रीस्तीय जो ईसा में विष्वास करके उनके साक्षी बने, वे पवित्रात्मा से परिपूरित थे। विष्वास के प्रति जीवन तजकर षहीद बनने की षक्ति पवित्रात्मा ने उनको प्रदान की। स्तेफनुस आदि की षहादत इसकी पुश्टि करती है। ‘प्रेरित चरित’ में ज्ञानस्नान के सभी विवरणों में पवित्रात्मा प्रदान करने की विषेश प्रार्थनाएँ देखने को मिलती हैं। समारिया में जिन्होंने ज्ञानस्नान स्वीकार किया उनके लिए पेत्रुस और योहन ने प्रार्थना की जिससे वे पवित्रात्मा को प्राप्त करें (प्रेरित चरित 8: 14-17)। प्रेरित चरित में हम देखते हैं कि जिन्हांेने ज्ञानस्नान स्वीकार किया, उन पर जब प्रेरित हाथ रखकर प्रार्थना करते थे तब उनको भी पवित्रात्मा मिलता था (प्रेरित चरित 19: 1-7)।पवित्रात्मा के मन्दिर बन जाते हैं
ख्रीस्तीय जो ज्ञानस्नान द्वारा ईसा की मृत्यु एवं पुनरुत्थान का भागीदार बनता और तैलाभिशेक द्वारा पवित्रात्मा से परिपूरित होता है, वह पवित्रात्मा का मन्दिर है। प्रेरित सन्त पौलुस बताते हैं, ‘‘क्या आप यह नहीं जानते कि आप ईष्वर के मन्दिर हैं और ईष्वर का आत्मा आपमें निवास करता है’’ (1 कुरिंथियों 3-16)। जब हममें निवास करने वाला पवित्रात्मा हमारा पथ-प्रदर्षन करता है, तब हम ईष्वर की संतान बन जाते हैं।ख्रीस्तीय जीवन के लिए षक्ति प्रदान करता हैहर एक ख्रीस्तीय तैलाभिशेक द्वारा पेन्तेकोस्त के अनुभव में भागीदार बनता है। विचार, वचन एवं कर्म में तथा अपना जीवन कुर्बान करते हुए भी मसीह के साक्षी बनने का दौत्य हम स्वीकार करते हैं। प्रेरितों द्वारा सौंपा हुआ यह दौत्य पवित्रात्मा से परिपूरित होकर युग के अन्त यह दौत्य पवित्रात्मा से परिपूरित होकर युग के अन्त तक हमें घोशित करना है।
यह दौत्य हमें कलीसिया के ज़्ारिए ही निभाना है। कलीसिया के प्रति हमारी वचनबद्धता मसीह के प्रति हमारी वचनबद्धता ही है। क्योंकि कलीसिया द्वारा ही आज मसीह कार्य करते हैं। इसलिए कलीसिया में सक्रिय सदस्य बनकर मसीह के साथ जीने के लिए आवष्यक कृपा और वरदान तैलाभिशेक संस्कार हमें प्रदान करता है।
.. हम ज्ञानस्नान, तैलाभिशेक एवं परम प्रसाद स्वीकार करके विष्वास में दृढ़ हुए हैं; हम विष्वास एवं पे्रम के फल उत्पन्न करें।ईष वचन पढ़ें और मनन करें
योजन 3: 1-8कंठस्थ करें
‘‘जब तक कोई जल और पवित्रात्मा से जन्म न ले तब तक वह ईष्वर के राज्य में प्रवेष नहीं कर सकता’’ (योहन 3ः5)।हम प्रार्थना करें
हे मसीह, आपने हमें ज्ञानस्नान के ज़्ारिए ईष्वर की संतान बनने की कृपा प्रदान की; पवित्रात्मा से भरपूर होकर सुसमाचार के साक्षी होने का अनुग्रह हमें दीजिए।मेरा निर्णय
ईष्वर की संतान के अनुरूप प्रेम का साक्ष्य देते हुए मैं जीऊँगा/गी।कलीसिया के आचार्य कहते हैं
ओ वह कोख (ज्ञान-स्नान कुण्ड), जिसने स्वर्गराज्य की संतानों को दर्द बिना जन्म दिया कितना सुन्दर है! यदि यह कोख जन्म देता है तो बलिवेदी उनका पोशण करती है। ये संतानें दूध नहीं, बल्कि स्वर्गीय रोटी ही खाती हैं। (मार एफ्रेम)