•    एक बार ईसा की माता और भाई उनसे मिलने आए। लेकिन भीड़ के कारण वे उनके पास नहीं पहुँच सके। लोगों ने उनसे कहा, ‘‘आपकी माता और आपके भाई बाहर हैं। वे आपसे मिलना चाहते हैं।’’ उन्होंने उत्तर दिया, ‘‘मेरी माता और मेरे भाई वे ही हैं जो ईष्वर का वचन सुनते  और उसका पालन करते हैं।’’ 
                     (लूकस 8: 19-21)। ख्रीस्तीय जीवन का बुनियाद है ईषवचन। ईसा के साथ व्यक्तिगत सम्बन्ध बनाकर उनकी मुक्ति योजना में भागीदार होना है, तो हमें अपने जीवन में उनको स्वीकार करना चाहिए। उनको स्वीकार करने का अर्थ यह है कि उनकी सिखाई हुई बातों को हम अपने जीवन में उतारें। 

     

    ईशवचन का महत्व

      ईषवचन उस ईष्वरीय प्रकाषना का स्रोत है जो हमारे विष्वास-जीवन का बुनियाद है। मानव की सृश्टि इसलिए हुई थी कि वह ईष्वरीय जीवन का सहभागी बनकर स्वर्गीय सुख अपनाए। ईष्वर को जानने और प्यार करने से ही यह संभव होता है। किन्तु मानव की क्षमता सीमित होने से वह अपनी ही बुद्धि और क्षमता द्वारा स्वाभाविक से परे ईष्वरीय रहस्यों को पूर्ण रूप से समझने में असमर्थ है। इसलिए ईष्वर ने, जो अनंत प्रेम ही है, उन्हें मानव को प्रकट करना चाहा। ईसा मसीह में ही यह प्रकाषना पूर्ण हुई। इस प्रकाषना का इतिहास पवित्र ग्रन्थ हमें स्पश्ट कर देता है। पवित्र ग्रन्थ द्वारा ईष्वर मानव से बातें करता है। ईष्वर कौन है और किस प्रकार हमारे जीवन में ईष्वर मुक्तिदायक रूप में हस्तक्षेप करता है तथा हम ईष्वर तक कैसे पहुँच सकते हैं-इन षाष्वत सत्यों को पवित्र ग्रन्थ द्वारा हम जानते हैं। पवित्र-ग्रन्थ के महत्व के बारे में दूसरी वैटिक्कन महासभा हमें सिखाती है: ‘‘जिस प्रकार हम अपने प्रभु के पवित्र षरीर का आदर करते हैं उसी प्रकार कलीसिया पवित्र ग्रन्थ का सम्मान सदा करती आई है... क्योंकि पवित्र ग्रन्थ द्वारा ही स्वर्गीय पिता प्रेम-ग्रन्थ पूर्वक अपनी संतानों से मिलने आता है और उनसे बात करता है। ईषवचन की षक्ति और क्षमता बहुत बड़ी है। वह कलीसिया को सहारा और ऊर्जा प्रदान करता है। उसकी संतानों के विष्वास के लिए षक्ति तथा उनकी आत्माओं का भोजन वही है।’’ (ईष्वरीय प्रकाषना - 21)

     
    ईष्वर का त्रित्व-रहस्य, मसीह-रहस्य, संस्कार, पुनरुत्थान का जीवन आदि हमारे विष्वास का सार है; ये सब इ्रषवचन द्वारा ही हमें प्रकट किये गये हैं। इन रहस्यों को ही हम पवित्र बलिदान में मनाते हैं। 

    ईशवचन का महत्व

                        ईषवचन उस ईष्वरीय प्रकाषना का स्रोत है जो हमारे विष्वास-जीवन का बुनियाद है। मानव की सृश्टि इसलिए हुई थी कि वह ईष्वरीय जीवन का सहभागी बनकर स्वर्गीय सुख अपनाए। ईष्वर को जानने और प्यार करने से ही यह संभव होता है। किन्तु मानव की क्षमता सीमित होने से वह अपनी ही बुद्धि और क्षमता द्वारा स्वाभाविक से परे ईष्वरीय रहस्यों को पूर्ण रूप से समझने में असमर्थ है। इसलिए ईष्वर ने, जो अनंत प्रेम ही है, उन्हें मानव को प्रकट करना चाहा। ईसा मसीह में ही यह प्रकाषना पूर्ण हुई। इस प्रकाषना का इतिहास पवित्र ग्रन्थ हमें स्पश्ट कर देता है। पवित्र ग्रन्थ द्वारा ईष्वर मानव से बातें करता है। ईष्वर कौन है और किस प्रकार हमारे जीवन में ईष्वर मुक्तिदायक रूप में हस्तक्षेप करता है तथा हम ईष्वर तक कैसे पहुँच सकते हैं-इन षाष्वत सत्यों को पवित्र ग्रन्थ द्वारा हम जानते हैं। पवित्र-ग्रन्थ के महत्व के बारे में दूसरी वैटिक्कन महासभा हमें सिखाती है: ‘‘जिस प्रकार हम अपने प्रभु के पवित्र षरीर का आदर करते हैं उसी प्रकार कलीसिया पवित्र ग्रन्थ का सम्मान सदा करती आई है... क्योंकि पवित्र ग्रन्थ द्वारा ही स्वर्गीय पिता प्रेम-ग्रन्थ पूर्वक अपनी संतानों से मिलने आता है और उनसे बात करता है। ईषवचन की षक्ति और क्षमता बहुत बड़ी है। वह कलीसिया को सहारा और ऊर्जा प्रदान करता है। उसकी संतानों के विष्वास के लिए षक्ति तथा उनकी आत्माओं का भोजन वही है।’’ (ईष्वरीय प्रकाषना - 21)
     
    ईष्वर का त्रित्व-रहस्य, मसीह-रहस्य, संस्कार, पुनरुत्थान का जीवन आदि हमारे विष्वास का सार है; ये सब इ्रषवचन द्वारा ही हमें प्रकट किये गये हैं। इन रहस्यों को ही हम पवित्र बलिदान में मनाते हैं। 
     
     
     
     
     
     

    ईशवचन और शिष्यत्व

    ‘‘यदि तुम मेरी षिक्षा पर दृढ़ रहोगे तो सचमुच मेरे षिश्य सिद्ध होगे’’ (योहन 8: 31)। ईसा के सच्चे षिश्य होने के लिए वचन में स्थिर होना ज़रूरी है। ईसा चाहते थे कि अपने षिश्य ईषवचन से पूरित हों। उनके वचन सुनने के लिए वे अक्सर अपने षिश्यों से अनुरोध करते थे। गुरु की इच्छा का पालन करने वाला है सच्चा षिश्य। ईसा के षिश्य को उनकी इच्छा जाननी चाहिए। पवित्र वचन द्वारा ईष्वर अपनी इच्छा प्रकट करता है। मानव के प्रति ईष्वर की जो इच्छा है वह है ईषवचन। 
                              ईसा का षिश्य होना उनके व्यक्तित्व में भागीदार होना है। उनकी षिक्षा के अनुसार के जीवन में सच्चा षिश्यत्व निहित है। दैनिक जीवन और उसके कर्मों द्वारा यह षिश्यत्व पूरा किया जाना चाहिए। ईसा ने कहा: ‘‘जो लोग मुझे प्रभु-प्रभु कहकर पुकारते हैं, उनमें सबके सब स्वर्ग राज्य में प्रवेष नहीं करेंगे। जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पूरी करता है, वही स्वर्ग राज्य में प्रवेष करेगा’’ (मत्ती 7: 21)।
     

     

    ईशवचन स्वतंत्रता एवं पवित्रता प्रदान करता है

                          ईसा ने कहा, ‘‘यदि तुम मेरी षिक्षा पर दृढ़ रहोगे तो सचमुच मेरे षिश्य सिद्ध होगे। तुम सत्य को पहचान जाओगे और सत्य तुम्हें स्वतंत्र बना देगा’’ (योहन 8: 31-32)। यह स्वतंत्रता हमें पवित्रता की ओर ले चलता है। यह संसार छोड़कर अपने पिता के पास जाने से पहले ईसा ने हमारे लिए पिता से प्रार्थना की: ‘‘तू सत्य की सेवा में उन्हें समर्पित कर। तेरी षिक्षा ही सत्य है’’ (योहन 17: 17)। ईष्वर की वाणी अग्नि जैसी है (यिरमियाह 23-29)। सोना आग में षुद्ध किया जाता है। जितनी बार सोना आग में पिघलता है उतना ज्यादा उसका गुण बढ़ता है। इसी प्रकार, जब ईषवचन हममें निवास करता है तब हम भी षुद्ध बन जाते हैं। ईसा ने कहा है, ‘‘मैंने तुम लोगों को जो षिक्षा दी है उसके कारण तुम षुद्ध हो गए हो’’ (योहन 15: 3)।

    ईशवचन अनंत जीवन प्रदान करता है

                        ईसा का वचन हमें अनंत जीवन की ओर ले चलता है। ईसा ने कहा: ‘‘जो मेरी षिक्षा सुनता और जिसने मुझे भेजा उसमें विष्वास करता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है’’ (योहन 5: 24)। ईसा के वचन आत्मा और जीवन हैं (योहन 6: 63)। जो रोज़्ा ईषवचन पढ़ते हैं और
     
                      जीवन में ईषवचन का कुछ असर होना है तो निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिएः प्रार्थना पूर्वक ईषवचन पढ़ना; उसके द्वारा ईसा व्यक्तिगत रूप से क्या संदेष देता है - यह समझना। ईषवचन द्वारा जो कमियाँ प्रकट की जाती हैं उन्हें ठीक करना, गलतियों को सुधारना और भलाइयों को अपनाना चाहिए। वचन के लिए हम अपनी व्यक्तिगत व्याख्या न दें; बल्कि कलीसिया द्वारा दी गई व्याख्या स्वीकार करें। ईष्वर की इच्छा जानने के लिए आग्रह के साथ ही पढ़ना है। 
     
                   जो ध्यान और प्रेम से ईषवचन सुनते और उसका अध्ययन करते हैं, वे अनन्त जीवन के मार्ग पर हैं। वे स्वर्गीय सौभाग्य में प्रवेष करेंगे तथा ईसा की प्रतिज्ञाएँ प्राप्त

    ईशवचन जीवन प्रदान करता है

                 ईषवचन जीवनदायक है।मरने के चार दिन बाद लाजरूस वचनकी ाक्ति से जीवित हुआ (योहन 11ः 44)। जैरूस की बेटी खाट पर पड़ीहुई थी; उसके प्राण निकल चुके थे।ईषवचन ने उसमें प्रवेष किया औरउसे जीवन प्राप्त हुआ। वह उठ खड़ीहुई, मानो नींद से जागी हो (मारकुस5: 41-42)। विधवा के एकलौतेबेटे की लाष अर्थी पर थी; ईषवचनने उसे भी जीवन प्रदान किया (लूकस7: 12-15)।‘‘जिसे पुत्र प्राप्त है, उसे वह जीवन प्राप्त है और जिसे पुत्र प्राप्त नहीं है उसे वह जीवनप्राप्त नहीं’’ (1 योहन 5: 12)। ईषवचन आज भी जीवनदायक है। मृत सा मन ईषवचन द्वारासजीव बन जाता है (एजेक्एिल 36, 37; इब्रानियों 4)। ईषवचन आषाहीनों को प्रत्याषा देताहै। दुर्बलता में बल प्रदान करता है। बीमारी में चंगाई देता है। पाप के बंधनों को तोड़ डालता है। भटके हुओं को मार्ग दिखाता है।

    ईशवचन मुक्ति प्रदान करता है

                        ईषवचन मुक्तिदायक है। सन्त पौलुस वचन को इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं: ‘सत्य कावचन, मुक्ति का सुसमाचार’ (एफेसियों 1: 13)। कुरिंथियों से भी वे दुहराते हैं कि सुसमाचारमुक्ति प्रदान करता है (कुरिंथियों 15: 1-2)। ईसा ने प्रतिज्ञा की है कि जो सुसमाचार मेंविष्वास करेगा और ज्ञानस्नान ग्रहण करेगा उसे मुक्ति मिलेगी (मारकुस 16: 15-16)।ईषवर ने सुसमाचार की ‘मूर्खता’ द्वारा विष्वासियों को बचाना चाहा (कुरिंथियों 1: 21)। जोविष्वास करते हैं उन सबों की मुक्ति के लिए ईष्वरीय ाक्ति है ईषवचन। प्रेरित सन्त याकुब यहआह्वान करते हैं, ‘‘आप लोग नम्रतापूर्वक ईष्वर का वह वचन स्वीकार करें, जो आप में रोपा गया है और आप की आत्माओं का उद्धार करने में समर्थ है’’ (याकूब 1: 21)।

    ईशवचन स्वतंत्रता एवं पवित्रता प्रदान करता है

                       ईसा ने कहा, ‘‘यदि तुम मेरी षिक्षा पर दृढ़ रहोगे तो सचमुच मेरे षि य सिद्ध होगे।तुम सत्य को पहचान जाओगे और सत्य तुम्हें स्वतंत्र बना देगा’’ (योहन 8: 31-32)। यह68 कंठस्थ करें‘‘मैंने तुम्हें जो षिक्षा दी है वह आत्मा और जीवन है’’ (योहन 6: 63)। स्वतंत्रता हमें पवित्रता की ओर ले चलता है। यह संसार छोड़कर अपने पिता के पास जाने सेपहले ईसा ने हमारे लिए पिता से प्रार्थना की: ‘‘तू सत्य की सेवा में उन्हें समर्पित कर। तेरीषिक्षा ही सत्य है’’ (योहन 17: 17)। ईष्वर की वाणी अग्नि जैसी है(यिरमियाह 23-29)।सोना आग में ाुद्ध किया जाता है। जितनी बार सोना आग में पिघलता है उतना ज्यादा उसकागुण बढ़ता है। इसी प्रकार, जब ईषवचन हममें निवास करता है तब हम भी ाुद्ध बन जाते हैं। ईसा ने कहा है, ‘‘मैंने तुम लोगों को जो षिक्षा दी है उसके कारण तुम ाुद्ध हो गए हो’’ (योहन 15: 3)।

    ईशवचन अनंत जीवन प्रदान करता है

                      ईसा का वचन हमें अनंत जीवन की ओर ले चलता है। ईसा ने कहा: ‘‘जो मेरी षिक्षासुनता और जिसने मुझे भेजा उसमें विष्वास करता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है’’ (योहन 5:24)। ईसा के वचन आत्मा और जीवन हैं (योहन 6: 63)। जो रोज़्ा ईषवचन पढ़ते हैं औरईषवचन पढ़ें और मनन करें (योहन 6: 60-69)  जीवन में ईषवचन का कुछ असर होना है तो निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिएः प्रार्थनापूर्वक ईषवचन पढ़ना; उसके द्वारा ईसा व्यक्तिगत रूप से क्या संदेष देता है - यह समझना।ईषवचन द्वारा जो कमियाँ प्रकट की जाती हैं उन्हें ठीक करना, गलतियों को सुधारना औरभलाइयों को अपनाना चाहिए। वचन के लिए हम अपनी व्यक्तिगत व्याख्या न दें; बल्किकलीसिया द्वारा दी गई व्याख्या स्वीकार करें। ईष्वर की इच्छा जानने के लिए आग्रह के साथही पढ़ना है।जो ध्यान और प्रेम से ईषवचन सुनते और उसका अध्ययन करते हैं, वे अनन्त जीवन के मार्ग पर हैं। वे स्वर्गीय सौभाग्य में प्रवेष करेंगे तथा ईसा की प्रतिज्ञाएँ प्राप्त

    ईषवचन पढ़ें और मनन करें

    (योहन 6: 60-69)

    कंठस्थ करें

    ‘‘मैंने तुम्हें जो षिक्षा दी है वह आत्मा और जीवन है’’ (योहन 6: 63)। 

    हम प्रार्थना करें

    हे ईसा, आपने कहा: ‘मेरा वचन आत्मा और जीवन है’; वचन के आधार पर जीवन बिताने का अनुग्रह मुझे प्रदान कीजिए। 

    मेरा निर्णय

    मैं रोज़्ा ईषवचन पढ़ूँगा/गी तथा उससे प्राप्त संदेष के अनुसार जीवन बिताऊँगा/गी।

    कलीसिया के आचार्य कहते हैं

    ‘‘जीवन्त ईषवचन हमारे जीवन के लिए चुनौती है, मार्गदर्षक है और हमारे जीवन को सही रूप प्रदान करता है; पवित्र ग्रन्थों में ऐसे वचनों से हमारी भेंट होती है जब हम ईषवचन सुनते हैं’’     (जाॅन पाॅल द्वितीय)।