पाठ-6

पवित्र बलिदान तैयारी की विधि तथा यज्ञ प्रार्थना (अनाफोरा)

  •               पोंतुस पिलातुस रोम का राज्यपाल था; उसने यहूदी धर्म के नेताओं के इच्छानुसार ईसा को सलीब पर मृत्यु की सजा दी। अनेक पीड़ाओं के बाद उन्हें गोलगोथा (अर्थात् खोपड़ी की जगह) ले जाया गया। दुःखभोग की लम्बी यात्रा के अन्त में वहाँ उन्हें सलीब पर ठोका गया। जब उन्हें प्यास लगी, तब सैनिकों ने उन्हें खट्टी अंगूरी दी। ईसा ने खट्टी अंगूरी चखकर कहा, ‘‘सब पूरा हो चुका है।’’ फिर ईसा ने ऊँचे स्वर से पुकार कर कहा, ‘‘पिता, मैं अपनी आत्मा को तेरे हाथों सौंपता हूूँ’’ (लूकस 23: 44 - 46, योहन 19ः28-30)। यह कहकर उन्होंने प्राण त्याग दिए। अरिमथिया के यूसुफ एवं ईसा के रिष्तेदारों ने मिलकर उनके मृत षरीर को एक कब्र में दफनाया, जो निकट थी; परन्तु तीसरे महिमा के साथ जी उठे (लूकस 24: 1-12, योजन 20: 1-10)।
                   ईसा मसीह में सम्पन्न समग्र मुक्ति कार्य को हम पवित्र बलिदान में मनाते हैं। इन मसीही रहस्यों की सर्वश्रेश्ठ घटनाओं में, यानी ईसा के दुःखभोग, मृत्यु और पुनरुत्थान के रहस्यों में, अनाफोरा (यज्ञ प्रार्थना) हमें विषेश रूप से सहभागी बनाता ह अनाफोरा के पहले तैयारी की विधि भी है जो ईसा की मृत्यु तथा पुनरुत्थान के रहस्यों में योग्य रीति से भाग लेने में हमारी मदद करती है।

    तैयारी की विधि

                                         अनाफोरा में हम ईसा की मृत्यु एवं पुनरुत्थान के रहस्यों को मनाते हैं; इसकी तैयारी के रूप में यह विधि मानी जाती है। इसमें बाहरी तथा आन्तरिक तैयारियाँ हैं। बाहरी तैयारी में बलि वस्तुओं को तैयार करना, उनका समर्पण और बलिवस्तुओं को षोषप्पा से ढकना एवं आंतरिक तैयारी में अयोग्य लोगों को विदा करना, साश्ठांग प्रणाम, हाथ धोना, धर्मसार और यज्ञ मण्डप में याजक का प्रवेष होते हैं।
     

    बलिवस्तुओं को तैयार करना

                                      जिनमें ईसा के पवित्र षरीर तथा रक्त ले जाना है उन प्याले और थाली को धूपार्पण द्वारा पवित्रीकृत  करके याजक उनमंे रोटी तथा दाखरस तैयार करता है। इस वक्त हम ईसा के दुःखभोग का स्मरण करते हैं। दाखरस में पानी डालते समय की प्रार्थना यह सूचित करती है। ‘‘एक सैनिक ने प्रभु की बगल में भाला मारा और उसमें से तुरन्त रक्त और जल बह नि कला’’ (योजन 19ः34)। जब याजक थाली तथा प्याले में रोटी और दाखरस तैयार करता हैं तब समूह अपने आपको आन्तरिक रूप से समर्पित करता है।
     

    गतिविधि-1 

    पवित्र बलिदान की पुस्तक में से ढँूढ निकालिए कि घोशणा प्रार्थना माला से लेकर यज्ञ-मण्डप में याजक के प्रवेष तक के अनुश्ठान क्या-क्या हैं। प्रत्येक अनुश्ठान का प्रतिकात्मक अर्थ पाठ्य पुस्तक में से ढूँढ कर एक सूची तैयार कीजिए 
     

    अनाफोरा में भाग लेने वालों की योग्यता

                   उपयाजक का यह निर्देष, ‘‘जो स्नान संस्कार स्वीकार कर चुके हैं और जीवन की मुद्रा से अंकित हैं, वे भक्ति और ध्यान से पवित्र रहस्यों में भाग लें’’, हमें प्रेरित करता है कि हम भक्त्यादर से अनाफोरा में प्रवेष करें।
     

    अयोग्य लोगों को विदा करना

                               जिन्होंने स्नान संस्कार स्वीकार नहीं किया, जिनको जीवन की मुद्रा प्राप्त नहीं हुई और जो परमप्रसाद स्वीकार नहीं करते हैं उन्हें विदा करने का रिवाज पुरातन काल में प्रचलित था। यह स्पश्ट करता है कि हमें कितनी आन्तरिक तैयारी के साथ पवित्र बलिदान में भाग लेना चाहिए। यह विदाई इसका चिह्न है कि जो ज्ञानस्नान के आदर्षानुसार जीवन नहीं बिताते 
     

    साष्ठांग प्रणाम (मुँह के बील गिरना)

                                     रासा क्रम (महासमारोही विधि) का यह अनुश्ठान केवल सीरो मलबार कलीसिया की विषेशता है। ‘तेरे याजक धार्मिकता और तेरे सन्त महिमा धारण करें...’ यह गीत याजक, उपयाजक तथा गायकगण बारी-बारी से गाते हैं; उस समय याजक बेमा में बिछी चादर (षोषप्पा) के चारों पाष्र्व पर तीन-तीन बार माथा टेकता है। यह गीत पुरोहिताई पद का विषेश महत्व प्रकट करता है; साथ ही साथ यह भी स्मरण कराता है कि पवित्रात्मा के विराजने से ही रोटी तथा दाखरस ईसा के षरीर तथा रक्त में बदल जाते हैं।
     

    हाथ धोना

                                    दिव्य रहस्यों को बलिवेदी पर ले जाने के पहले याजक हाथ धोता है। यह इसका प्रतीक है कि प्रभु के कृपासागर में पूरे आराधना-समूह को धोकर पवित्र किया जाता है।

    बलिवस्तुओं का समर्पण एवं दिव्य-रहस्य गीत

                                    याजक उपवेदियों (बेसगसा) पर तैयार कर रखी रोटी तथा दाखरस बलिवेदी पर ले आता है। इस वक्त समूह जो गीत गाता है वही है दिव्य-रहस्य गीत। तैयार किए गए प्याला और थाली हाथों में लेते हुए बलिवेदी की ओर याजक का जुलूस ईसा की कलवारी यात्रा की याद दिलाता है। बलिवेदी पर इन रहस्यों को सलीब के रूप में उठाना सलीब पर उनकी मृत्यु को सूचित करता है। प्याला और थाली बलिवेदी पर रखकर याजक उन्हें षोषप्पा से ढकता है; यह ईसा के पवित्र षरीर के दफन को सूचित करता है।
                        ‘पिता, पुत्र, पवित्रात्मा की.....’ यह दिव्य-रहस्य गीत का ही दूसरा भाग है। इस गीत में हम कुंवारी मरियम, पे्ररित गण, संत थोमस, विजयी भक्तों, षहीदों और मृत विष्वासियों का स्मरण करते हैं। यह गीत यह भी याद दिलाता है कि उनके समान हम भी निर्मल होकर पवित्र त्रित्व को प्रसन्न कर सकते हैं तथा उपवास, प्रार्थना और पष्चाताप इसमें हमारी मदद करते हैं।
     

    धर्मसार

                              पवित्र बलिदान कलीसिया के विष्वास का समारोह और अनुश्ठान है। पवित्र बलिदान का केन्द्र भाग है अनाफोरा; उस में प्रवेष करने के पहले समूह अपना विष्वासानुभव घोशित करता है। पवित्र त्रित्व, पवित्र कलीसिया एवं स्वर्गीय जीवन में अपना जो विष्वास है उसे हम दोहरा कर प्रकट करते हैं।

    यज्ञ-मण्डप में प्रवेश

                                 याजक भक्तिपूर्वक तीन बार झुककर प्रणाम करते हुए यज्ञ-मण्डप में प्रवेष करता है। इस दौरान याजक ईष्वर को धन्यवाद देते हुए प्रार्थना करता है क्योंकि ईष्वर ने कृपापूर्वक उसे, पापी और दुर्बल होते हुए भी, इस योग्य बनाया कि वह अति पवित्र स्थान में प्रवेष कर ईसा के पवित्र षरीर और रक्त की बलि अर्पित करे। यह प्रार्थना स्पश्ट करती है कि विष्वासियों के  पापों की क्षमा, ऋणमोचन एवं मुक्ति, विष्व भर में मेल-मिलाप, समस्त कलीसिया में षांति आदि के लिए याजक बलि चढ़ाता है। फिर याजक पवित्र त्रित्व की उपस्थिति का स्मरण करते हुए बलिवेदी पर, जो ईष्वर का सिंहासन है, तीन बार माथा टेकता है।
     

    अनाफोरा (यज्ञ प्रार्थना)

                                  अनाफोरा पवित्र बलिदान का केन्द्र भाग है। यूनानी षब्द ‘‘अनाफोरा’’ का अर्थ है उठाना या चढ़ाना। पूर्वी सिरियायी आराधना की परम्परा में तीन अनाफोरा हैं। पहला ‘प्रेरितों का अनाफोरा’ (पूर्व के धर्माचार्य मार अद्दायी और मार मारी का), दूसरा ‘अनाफोरा तेयोदोर का अनाफोरा’ और तीसरा अनाफोरा ‘नेस्तोरियस का अनाफोरा’ हैं। इनमें से प्रेरितों का अनाफोना हमने अपनाया है।
                                 अनाफोरा में चार प्रार्थना चक्र हैं। एक प्रार्थना चक्र में मुख्य रूप से चार भाग हैं। प्रार्थना याचना, रहस्य प्रार्थना (कूषाप्पा), प्रणाम प्रार्थना (गहान्ता प्रार्थना) और स्तुति गीत (कानोना) हैं ये चार भाग। इन सबका केन्द्र प्रणाम प्रार्थनाएँ हैं। सिरियायी षब्द ‘गहान्ता’ का अर्थ है झुकना (प्रणाम करना)। याजक जरा झुककर यह प्रार्थना करता है; इसलिए इसे गहान्ता (प्रणाम) प्रार्थना कहते हैं। इस प्रार्थना द्वारा हम धन्यवाद अर्पित करते हैं; इसलिए इसे कृतज्ञता प्रार्थना भी कहते हैं।

     

    प्रथम प्रणाम प्रार्थना (गहान्ता प्रार्थना) चक्र

                                    प्रथम प्रणाम प्रार्थना चक्र में प्रार्थना याचना, रहस्य प्रार्थना, प्रथम प्रणाम प्रार्थना तथा स्तुति गीत तक का भाग है। ईष्वर द्वारा दिए गए अनगिनत वरदानों के लिए प्रथम प्रणाम प्रार्थना में हम आभार व्यक्त करते हैं। ‘‘हम तुझे वंदना, स्तुति कृतज्ञता और आराधना अर्पित करते हैं’’ - इस कानोना के साथ प्रथम प्रणाम प्रार्थना समाप्त होती है। इस वक्त याजक माथे के ऊपर हाथ उठाकर सलीब का चिह्न बनाता है। इस वक्त याजक माथे के ऊपर हाथ उठाकर सलीब का चिह्न बनाता है।
     

    प्रार्थना याचना

                                      ईष्वरीय सान्निध्य से परिपूर्ण बलिवेदी के पास पहुँचकर याजक अपनी अयोग्यता समझते हुए समूह से प्रार्थना की याचना करता है। ईष्वर की जनता के लिए ईष्वर की सन्निधि में मध्यस्थता कर रहे याजक को प्रार्थना द्वारा षक्ति दिलाने का दायित्व ईष्वर की जनता का है।
     

    शांति का अभिवादन

                                     याजक समूह की ओर मुड़कर षांति का अभिवादन करता है। उपयाजक याजक से षांति लेकर समूह को देता है। ‘‘मसीह है हमारी षांति’’ (एफेसियों 2: 14)। ईसा की षांति आपस में बाँटने से हम यह `घोशित करते हैं कि हममें वह प्रेम और एकता है जो बलि समर्पण के लिए आवष्यक योग्यता है तथा संसार भर के लोगों के साथ हमारा मेलमिलाप है। 
     

    स्मरण प्रार्थना (डिप्टिक्स)

                             स्मरण प्रार्थना में हम मृतकांे तथा जीवितों के नाम लेकर प्रार्थना करते हैं। हमारे व्यक्तिगत मतलबों को समर्पित करने का अवसर भी है यह। इसके बाद उपयाजक का ‘हम सब श्रद्धाभक्ति से...’ आह्वान यह स्पश्ट करता है कि समूह को किस प्रकार पवित्र बलिदान  में भाग लेना चाहिए। फिर रहस्य प्रार्थना में यह व्यक्त किया जाता है कि पवित्र बलिदान पूज्य त्रित्व की स्तुति एवं भक्त समाज के कल्याण के लिए चढ़ाया जाता है.

    धूपार्पण

                           धूपार्पण के आषीर्वाद की प्रार्थना यह व्यक्त करती है कि धूपार्पण परम महिमामय त्रित्व के सम्मान, ईष्वर की प्रीति एवं भक्तजनों के अपराधों की क्षमा के लिए है।
     

    संवादरूपी प्रार्थना

                                     आगे की संवादरूपी प्रार्थना भक्तिभाव से पवित्र बलिदान में भाग लेने के लिए समूह को प्रेरित करती है। ‘हमारे प्रभु ईसा मसीह की कृपा...‘ - प्रेरित संत पौलुस की यह आषंसा प्रार्थना हमारे लिए पवित्र त्रित्व के सान्निध्य और कृपा का अनुभव प्रदान करती है। इसके बाद याजक समूह से आह्वान करता है कि वे परमोन्नत की ओर अपने हृदय विचारों को लगाएँ। इसके जवाब में समूह यह प्रार्थना ‘इब्राहीम, इसहाक और याकूब के ईष्वर....’ द्वार यह घोशित करता है कि ईष्वर मृतकों का ईष्वर नहीं, बल्कि जीवितों का ईष्वर है। ‘सबके प्रभु ईष्वर को बलिदान चढ़ाया जा रहा है। यह उचित और ठीक है।’ इस घोशणा के साथ संवाद रूपी 
     

    द्वितीय प्रणाम प्रार्थना (गहान्ता प्रार्थना) चक्र

    ‘                          हे प्रभु, तू अपने सान्निध्य में...’- इस रहस्य प्रार्थना से द्वितीय गहान्ता प्रार्थना चक्र षुरू होता है। बलि समर्पण की पवित्रता के विरुद्ध सभी बुराइयों से मन को विमुक्त करके यह पवित्र बलिदान प्रत्याषा पूर्वक अर्पित करने के मनोबल के लिए यहाँ प्रार्थना करते हैं। जिसने अपनी कृपा से जगत और उसके निवासियों को रचा उस ईष्वर को द्वितीय प्रणाम प्रार्थना द्वारा हम धन्यवाद अर्पित करते हैं। सृश्टिकर्म एवं मानव की रक्षा ईष्वर की मुक्ति योजना का भाग प्रार्थना समाप्त होती है।
     

    पावन, पावन,.....गीत’

                                इस गीत में हम स्वर्गदूतों के साथ ईष्वर की स्तुति करते हैं। इसायाह नबी के दर्षन में सेराफीम का स्तुति गीत (इसायाह 6ः3), योहन के प्रकाषना के स्वर्गीय दर्षन (प्रकाषना ग्रंथ 4ः8) और ईसा के येरुसालेम प्रवेष के समय जनता द्वारा लगाया गया नारा (मत्ती 21ः9) - पवित्र गं्रथ के इन वचनों को मिलाकर रचा हुआ स्तुति गीत है यह। इसके साथ द्वितीय प्रणाम प्रार्थना चक्र समाप्त होता है।
     

    तृतीय प्रणाम प्रार्थना (गहान्ता प्रार्थना) चक्र

                            ‘पावन, पावन....’गीत के समय की, याजक की, रहस्य प्रार्थना ‘हे ईष्वर तू पवित्र है...’ से तृतीय प्रणाम प्रार्थना चक्र प्रारंभ होता है। स्वर्गीय दर्षन से इसायाह नबी को पाप के अवबोध का अनुभव हुआ; उसी अनुभव की ओर यह प्रार्थना हमें ले जाती है।
    याजक की प्रार्थना-याचना के बाद की तृतीय प्रणाम प्रार्थना में ईष्वर के मुक्ति-कार्य की याद करते हुए हम धन्यवाद अर्पित करते हैं। इस प्रार्थना को दो भागों में विभाजित करके मध्यभाग में परम प्रसाद की स्थापना का विवरण दिया गया है। प्रथम भाग में ईसा के मनुश्यावतार का स्मरण करते हुए धन्यवाद अर्पित करते हैं। स्थापना-विवरण के बाद, दूसरे भाग में, माता कलीसिया ईष्वर के अनंत उपकार को, जिसका उचित धन्यवाद देना हमारे लिए असंभव है, स्वीकार करते हुए ईष्वर की स्तुति करती है। ‘तेरे सारे कृपादानों....’ - इस स्तुति गीत से तृतीय प्रणाम प्रार्थना चक्र समाप्त होती है
     

    परम प्रसाद की स्थापना का विवरण

                       परम प्रसाद की स्थापना के विवरण में हम उस घटना की याद करते हैं जब अंतिम ब्यालु के समय ईसा ने रोटी और दाखरस लेकर धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी और ‘‘यह मेरा षरीर है, यह मेरा रक्त है’’ कहते हुए अपने षरीर और रक्त अपने षिश्यों को दिए। इस प्रकार हर एक पवित्र बलिदान में हम उन क्षणों का स्मरण करते हैं जब ईसा ने परम प्रसाद के महान रहस्य की स्थापना की। उनके आज्ञानुसार ही हम पवित्र बलिदान चढ़ाते हैं 
    (1 कुरिंथियों 11ः25)।

    चैथा प्रणाम प्रार्थना (गहान्ता प्रार्थना) चक्र

                           चैथा प्रणाम प्रार्थना चक्र याजक की मध्यस्थ-प्रार्थना से प्रारंभ होता है। याजक हाथ फैलाकर कलीसिया के तथा संसार के अधिकारियों, जीवितों और मृतकों आदि सबों के लिए प्रार्थना करता है। याजक की प्रार्थना याचना के बाद की चैथी प्रणाम प्रार्थना में कलीसिया द्वारा जारी ईष्वर के पवित्रीकरण के कर्म के लिए धन्यवाद अर्पित करता है। पवित्र कुंवारी मरियम और पवित्र पिताओं की याद करता और सुख-षांति के लिए प्रार्थना करता है। हमारे प्रभु और मुक्तिदाता ईसा मसीह के दुःख-भोग, मृत्यु, दफन और पुनरुत्थान का स्मरणोत्सव आनंदपूर्वक मनाता है।

    स्मरण प्रार्थना (डिप्टिक्स)

                             स्मरण प्रार्थना में हम मृतकांे तथा जीवितों के नाम लेकर प्रार्थना करते हैं। हमारे व्यक्तिगत मतलबों को समर्पित करने का अवसर भी है यह। इसके बाद उपयाजक का ‘हम सब श्रद्धाभक्ति से...’ आह्वान यह स्पश्ट करता है कि समूह को किस प्रकार पवित्र बलिदान  में भाग लेना चाहिए। फिर रहस्य प्रार्थना में यह व्यक्त किया जाता है कि पवित्र बलिदान पूज्य त्रित्व की स्तुति एवं भक्त समाज के कल्याण के लिए चढ़ाया जाता है.

    धूपार्पण

                           धूपार्पण के आषीर्वाद की प्रार्थना यह व्यक्त करती है कि धूपार्पण परम महिमामय त्रित्व के सम्मान, ईष्वर की प्रीति एवं भक्तजनों के अपराधों की क्षमा के लिए है।
     

    पवित्र आत्मा की आमंत्रण प्रार्थना

                              यहाँ हम ईसा के पुनरुत्थान का रहस्य मनाते हैं। जिसने ईसा को पुनर्जीवित किया, उस पवित्रात्मा के आगमन से बलिवेदी की बलि भी पूर्ण हो जाती है। पवित्रात्मा के आगमन और आवास से पवित्र किए गए दिव्य रहस्यों को जो ग्रहण करते हैं उन्हें इन रहस्यों के द्वारा अपराधों की माफी, पापों की क्षमा, पुनरुत्थान की दृढ़ आषा और स्वर्ग राज्य में नया जीवन मिलने के लिए याजक प्रार्थना करता है। ‘तेरे षाष्वत, पवित्र और जीवनदायी नाम...’ - इस स्तुति गीत के साथ चैथा प्रणाम प्रार्थना चक्र एवं अनाफोरा समाप्त होते हैं।
                              पवित्र बलिदान के केन्द्र भाग, अनाफोरा, में ईसा की मृत्यु, पुनरुत्थान, पवित्रात्मा का आगमन आदि की हम याद करते हैं और उन्हें मनाते हैं। पवित्र बलिदान के सबसे महत्वपूर्ण भाग, अनाफोरा में सक्रिय रूप से भाग लेकर हम मुक्ति का अनुभव करते हैं।

    ईषवचन पढ़ें और मनन करें

    (इब्रानियों 10: 1-15)

    कंठस्थ करें

    ‘‘ईसा मसीह के षरीर के एक ही बार बलि चढ़ाये जाने के कारण हम ईष्वर की इच्छा के अनुसार पवित्र किए गए हैं।’’ (इब्रानियों 10: 10)

    हम प्रार्थना करें

    हे ईसा, ईष्वर के मेमने, आप पवित्र बलिवेदी पर अपना षरीर और रक्त हमारे लिए बाँट देते हैं; स्वर्गदूतों के संग ‘पावन, पावन, पावन’ गाकर हम आपकी स्तुति करते हैं।

    मेरा निर्णय

    ईसा की बलि के साथ मिलाकर मैं अपना जीवन भी बलि के रूप में अर्पित करूँगा/गी।

    कलीसिया के आचार्य कहते हैं

    ‘प्याले में दाखरस के साथ पानी मिलाते समय आराधना समूह भी मसीह के साथ एक हो जाता है। इस प्रकार विष्वासियों का सारा समूह उनके साथ एक हो जाता है जिन पर उन्होंने विष्वास रखा है।’     (सन्त सिप्रियान)