पाठ-4
पवित्र बलिदान सर्वश्रेश्ठ आराधना
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इब्राहिम को प्रतिज्ञानुसार प्राप्त पुत्र था इसहाक। एक दिन ईष्वर ने इब्राहिम से कहा; ‘‘अपने पुत्र को, अपने इकलौते को, परमप्रिय इसहाक को मेरे लिए दहन बलि चढ़ाओ।’’ ईष्वर पर पूर्ण विष्वास रखते हुए इब्राहिम ने अपने पुत्र को बलि चढ़ाने की तैयारी की; इसलिए ईष्वर उन पर अति प्रसन्न हुआ। (उत्पत्ति 22 1-17)।पिता ईष्वर ने अपने इकलौते पुत्र को संसार में भेजा। यह इसलिए था कि जो उसमें विष्वास करता है उसका सर्वनाष न हो, बल्कि वह अनंत जीवन प्राप्त करे। (योहन 3: 16)। ईसा पिता की इच्छा पूर्ण रूप से समझ गए। पाप की दासता से हमें मुक्त करने हेतु उन्होंने कलवारी पर अपने को बलि चढ़ाया। ईसा ने अपने जीवन के समर्पण द्वारा पिता को जो सर्वश्रेश्ठ आराधना अर्पित की उसका सांस्कारिक समारोह है पवित्र वेदी का पवित्र बलिदान। इसलिए पवित्र बलिदान सर्वश्रेश्ठ आराधना है।
पवित्र बलिदान: बलि एवं प्रीतिभोज
पवित्र बलिदान बलि है, साथ-साथ प्रीतिभोज भी है। कलवारी पर ईसा ने परमपिता को जो स्नेह बलि अर्पित की उसका सांस्कारिक पुनः प्रस्तुतीकरण है पवित्र वेदी की बलि। कलवारी की बलि में बलि चढ़ाने वाला तथा बलि वस्तु स्वयं ईसा ही हैं। ईसा ने कहा, ‘‘कोई मुझसे मेरा जीवन नहीं हर सकता; मैं स्वयं उसे अर्पित करता हूँ। मुझे अपना जीवन अर्पित करने और उसे फिर ग्रहण करने का अधिकार है’’ (योहन 10: 11-18)। प्रेरित संत पौलूस लिखते हैं, ‘‘मसीह ने सुगंधित भेंट तथा बलि के रूप में ईष्वर के प्रति अपने को हमारे लिए अर्पित कर दिया’’ (एफेसियों 5: 2)।अपने षिश्यों के साथ ईसा ने जो अंतिम भोजन किया, उस समय उन्होंने अपने जीवन की बलि को परम प्रसाद के संस्कार में बदल दिया। कलवारी पर जो संपन्न होने की थी उस बलि का संस्कारिक रूप था यह। ईसा ने रोटी ले ली और धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ने के बाद उसे तोड़ा और यह कहते हुए षिश्यों को दिया, ‘‘यह मेरा षरीर है’’। ईसा का यह मतलब था कि यह रोटी स्वयं ईसा ही हैं। वे यह सूचित कर रहे थे कि वे वह मेमना हैं जो कलवारी के सलीब पर अर्पित होने का था।पवित्र बलिदान वह स्वर्गीय भोज है जिसे ईसा ने हमारे लिए तैयार किया है। पुनरुत्थित मसीह के षरीर और रक्त को ही हम यहाँ स्वीकार करते हैं। जो बलि में भाग लेते हैं वे बलि वस्तुओं को ग्रहण करते ही बलि समर्पण पूरा करते हैं। विवाह भोज में निमंत्रित लोग प्रीतिभोज में भाग लेते हैं; यह उनकी सहभागिता की पूर्णता प्रकट करता है। इसी प्रकार जो पवित्र बलिदान में भाग लेते हैं वे परम प्रसाद ग्रहण करें; पवित्र बलिदान में उनकी सहभागिता की पूर्ति के लिए यह आवष्यक है।पवित्र बलिदान: मसीही विषय का समारोह
पास्का भोज में ईसा ने रोटी तथा दाखरस को अपने षरीर और रक्त में बदलकर देते हुए कहा; ‘यह मेरी स्मृति में किया करो।’ ईसा के आज्ञानुसार उनके दुःखभोग, मृत्यु तथा पुनरुत्थान की स्मृति में बलिवेदी पर जो बलि अर्पित की जाती है वही है पवित्र बलिदान। इस पास्का रहस्य में संपूर्ण मसीही रहस्य चिह्नों तथा प्रतीकों द्वारा अर्पित किए जाते हैं। पवित्र बलिदान में ईसा का मनुश्यावतार, जीवन, मृत्यु, पुनरुत्थान, स्वर्गारोहण, पवित्र आत्मा का आगमन, ईसा का महिमामय दूसरा आगमन आदि दिव्य रहस्यों को हम स्मरण करके मनाते हैं।पवित्र बलिदान: कलीसियायी समूह की प्रार्थना
पवित्र बलिदान कलीसियायी समूह की औपचारिक आराधना है - जिससे कलिसियायी आध्यात्मिक षरीर एकजुट होकर अपने षीर्श मसीह के साथ पिता को अर्पित करता है। पवित्र बलिदान में भूवासी तथा स्वर्गवासी एक साथ ईष्वर की आराधना करते हैं।कलीसिया मूलतः एक आराधना समूह है।कलीसिया के सभी कार्य-प्रणाली का सर्वोच्च लक्ष्य ईष्वर की आराधना है। कलीसिया के विष्वास तथा मुक्तिदायक अनुभवों की घोशणा एवं आचरण ही पवित्र बलिदान में प्रतिबिम्बित होते हैं। कलीसिया का निर्माण उस भवन के रूप में हुआ है जो प्रेरितों तथा नबियों की नींव पर खड़ा है जिसका कोने का पत्थर स्वयं ईसा हैं। ईसा में निर्मित इस भवन में ही हमें ईष्वर की आराधना करनी है।कलीसिया की आराधना में उपस्थित ईसा
कलीसिया अपने दूल्हे - मसीह के साथ ही आराधना अर्पित करती है। कलीसिया मसीह का षरीर है (एफेसियों 1: 23)। कलीसिया का षीर्श मसीह कलीसिया के लिए पिता को जो षाष्वत् और पवित्र आराधना अर्पित करते हैं वह है पवित्र बलिदान। जैसे ईष्वर की आराधना के विशय में वैटिकन महासभा सिखाती है, सलीब पर जिसने स्वयं को अर्पित किया, वही ईसा पवित्र बलिदान में याजक की षुश्रूशा द्वारा स्वयं को अर्पित करते हैं। रोटी और दाखरस में विषेश रूप से वे उपस्थित रहते हैं। निज षक्ति से वे संस्कारों में उपस्थित रहते हैं। संस्कारों के अनुश्ठान में, गिरजाघरों में पवित्र ग्रन्थ पढ़ते समय, प्रार्थना करते समय एवं कीर्तन गाते समय ईसा वहाँ उपस्थित हैं (आराधना क्रम - 7)। वे न केवल उपस्थित रहते हैं वरन् वे ही संस्कारों का अनुश्ठान करते हैं। पूजन विधि का हर एक पवित्र कर्म पुरोहित ईसा तथा उनकी षरीर रूपी कलीसिया का कार्य है; इसलिए वह कार्य पवित्र तथा अति श्रेश्ठ है (आराधना क्रम - 7)।पवित्र बलिदान ख्रीस्तीय जीवन का शक्ति केन्द्र
ईष्वर की आराधना से, विषेशकर पवित्र बलिदान में से, ईष्वर का कृपादान एक झरने में से जैसे हमारी ओर बहता है। कलीसिया की संपूर्ण षक्ति का स्रोत भी वही है (आराधना क्रम - 10)। ख्रीस्तीय जीवन का षक्ति केन्द्र है पवित्र बलिदान। क्योंकि अपने-आप को दान करने तक के प्रेम का संदेष ईसा ने अपनी कथनी तथा करनी से घोशित किया; पवित्र बलिदान में हम उनके जीवन, दुःखभोग, मृत्यु, दफन और पुनरुत्थान के महान, गंभीर, पवित्र, जीवनदायी और दिव्य रहस्यों का स्मरणोत्सव आनंदपूर्वक मनाते हैं (चैथी प्रणाम प्रार्थना)। इन दिव्य रहस्यों में सक्रिय रूप से भाग लेने से हम ईष्वरीय कृपा से परिपूरित होते हैं। हम ईष्वर के तथा पड़ोसी के प्रेम में बढ़ते हैं। जीवन की सभी दुःख -तकलीफों को ईसा के दुःखभोग के साथ मिलाकर मुक्तिदायक बनाने की षक्ति और प्रेरणा हमें प्राप्त होती हैं।बेसहारों की ‘माँ’ के नाम से मानी जाने वाली धन्य मदर टेरेसा को गरीबों, रोगियों, तिरस्कृत और बेसहारे वृद्धजनों, नन्हे बच्चों, कोढ़ियों आदि सबों में ईसा को देखकर उनकी सेवा परिचर्या करने की षक्ति पवित्र बलिदान से ही प्राप्त होती थी। ईसा की क्रूस पर बलि से ही फादर डेमियन, माक्सिमिलयन कोलबे आदि अनेक संतों को दूसरों के लिए अपना जीवन अर्पित करने की षक्ति प्राप्त हुई थी। ईष्वरोन्मुख एवं परोन्मुख जीवन को ऊर्जा प्रदान कराने का षक्ति स्रोत है पवित्र बलिदान।पवित्र बलिदान को जीवन में जारी रखना है
बलिवेदी की बलि वहाँ समाप्त नहीं होती है। उसे दैनिक जीवन में जारी रखना है। ईसा बलिवेदी पर अपने आप को तोड़कर हमें देकर जीवन की रोटी बन गए। उसी प्रकार कर्म वेदी पर अपने आप को दूसरों के लिए देते हुए हमें भी उन्हें जीवन प्रदान करना चाहिए। ईसा ने अपने षरीर और रक्त, आषीर्वाद की प्रार्थना पढ़ने के बाद अपने षिश्यों को देते हुए कहा, ‘‘तुम मेरी स्मृति में यह किया करो’’ (लूकस 22: 19)। यह आज्ञा यह भी सूचित करती है कि हमें अपने जीवन में दूसरों के प्रति अपने आप को अर्पित करना चाहिए। दूसरों में ईसा को देखते हुए उपेक्षित वृद्धजनों, रोगियों एवं अन्य लोगों की सेवा के लिए निकली मदर टेरेसा, ईसा का बलिजीवन जारी रख रही थीं। दूसरों के उद्धार के लिए अपना धन, स्वास्थ्य एवं समय देने में उत्सुक अनेक मानव प्रेमियों को आज भी हम देख सकते हैं। वे सभी औरों के लिए रोटी बनकर बलि-जीवन जारी रखने वाले हैं।
जिनको दूसरों की सहायता जरूरी है, ऐसे रोगियों एवं वृद्धजनों की प्रेमपूर्वक सेवा परिचर्या करते समय, सहपाठियों को पाठ पढ़ने में मदद करते समय, दुःखियों को दिलासा देते समय, पापियों के मन परिवर्तन के लिए प्रार्थना करते समय, माता-पिताओं की आज्ञा मानते एवं उनकी सहायता करते समय तथा दैनिक जीवन की जिम्मेदारियाँ विष्वस्तता पूर्वक निभाते समय हम अपनी जीवन-बलि जारी रख रहे हैं; दूसरों के लिए रोटी बन रहे हैं।
पवित्र बलिदान हमारे दैनिक जीवन का षक्ति केन्द्र बनना चाहिए। ईसा ने कहा, ‘‘मैं हूँ जीवन की पवित्र बलिदान हमारे दैनिक जीवन का षक्ति केन्द्र बनना चाहिए। ईसा ने कहा, ‘‘मैं हूँ जीवन की रोटी’’; उन्हीं ईसा को परम प्रसाद में स्वीकार करते हुए आत्मिक ऊर्जा ग्रहण करें और इस प्रकार हम अपना बलि-जीवन जारी रखें। तब हम षाष्वत् स्वर्गीय भोज के योग्य बन जायेंगे।
पवित्र बलिदान के तीन रूप
सीरो मलबार कलीसिया में पवित्र बलिदान की विधि के तीन रूप हैं:1. साधारण विधि2. समारोही विधि3. महासमारोही विधि (रासा)पवित्र बलिदान के विभिन्न भाग
प्रारम्भिक विधि, वचन की विधि, तैयारी विधि, अनाफोरा, मेलमिलाप विधि, पवित्र रोटी तोड़ने की विधि, ईष्वर से ऐक्य की विधि और समापन विधि पवित्र बलिदान के मुख्य भाग हैं। प्रत्येक विधि की प्रार्थनाओं और अनुश्ठानों को समझकर पवित्र बलिदान में भाग लेने से ही बलिईष-वचन पढ़ें और मनन करें
(1 कुरिन्थियों 11: 23 - 29कंठस्थ करें
‘‘जो अयोग्य रीति से वह रोटी खाता या प्रभु का प्याला पीता है, वह प्रभु के षरीर और रक्त के विरुद्ध अपराध करता है’’ (1 कुरिन्थियों 11: 27)।हम प्रार्थना करें
हे प्रभु ईसा, हमें यह षक्ति प्रदान कीजिए कि हम पवित्र बलिदान में सक्रिय रूप से भाग लें एवं योग्य रीति से पवित्र षरीर तथा रक्त ग्रहण करें जो हमारे जीवन और पुनरुत्थान का कारण है।मेरा निर्णय
पवित्र बलिदान में भाग लेते वक़्त मैं योग्यतापूर्वक परम प्रसाद ग्रहण करूँगा/गी।कलीसिया के आचार्य कहते हैं
‘‘परम प्रसाद में हम ईसा को देखते हैं; रोगियों एवं तिरस्कृत लोगों में उन्हें नहीं देखना हमारे लिए असंभव है’’ (मदर टेरेसा)।