•                    ईसा याकूब के कुएँ के किनारे एक समारी स्त्री से बात कर रहे थे। उस स्त्री केआन्तरिक जीवन की ओर प्रकाष डालते हुए ईसा ने उसे मुक्ति की राह पर आमंत्रित किया। तबउस समारी स्त्री ने मुक्ति का अनुभव देने वाली ईष्वरीय आराधना के बारे में ईसा से पूछा:‘‘गुरुवर, हमारे पुरखे इस पहाड़ पर आराधना करते थे और आप लोग कहते हैं कि येरूसालेममें आराधना करनी चाहिए।’’ ईसा ने उससे कहा: ‘‘नारी, मैं तुम्हें विष्वास दिलाता हूँ कि वहसमय आ रहा है, जब तुम लोग न तो इस पहाड़ पर पिता की आराधना करोगे और नयेरूसालेम में ही। तुम लोग जिसकी आराधना करते हो, उसे नहीं जानते। हम लोग जिसकीआराधना करते हैं, उसे जानते हैं। परन्तु वह समय आ रहा है, आ ही गया है, जब सच्चेआराधक आत्मा और सच्चाई से पिता की आराधना करेंगे’’ (योहन 4: 20-23)। ईसा यहाँउस ईष्वरीय आराधना का संकेत देते हैं जो उनमें पूरी होने को थी। अपने आपको समर्पित करते हुए ईसा ने कलवारी पर परम पिता को जो बलि चढ़ायी, वही है सच्ची आराधना। दुनिया में कहीं भी हो, इस बलि में सहभागिता है सच्ची आराधना में सहभागिता।

    मानव - एक उपासक

             ईष्वरीय आराधना है मानव-इतिहास के बराबरपुरानी। आरंभ में मानव अपनी बुद्धि एवं सामथ्र्य से परे सब कुछ की आराधना करता था। वह इस प्रकार सूरज,चन्द्रमा, सर्प एवं इस प्रपंच की सभी ाक्तियों की आराधना करने लगा। इन सबके प्रति भय एवं आष्चर्य के कारणमानव में आराधना का भाव जगा। मानव यही सोचता थाकि आराधना द्वारा इन सबको संप्रीत करके इनसे होने वालेसब प्रकार के उपद्रवों एवं मुसीबतों से मुक्त हो सकता तथा अपनी कामनाएँ पूरी कर सकता है।
           विचारषील मानव की आराधना सिर्फ प्रपंच कीाक्ति में सीमित नहीं रही। इन सभी ाक्तियों के पीछे, इन सबको ाक्ति प्रदान करने वाली एक अनन्त ाक्तितक उसका मन आ पहुँचा। इस अनन्त ाक्ति को मानवने ‘ईष्वर’ नाम से पुकारा। पहले प्रपंच- ाक्तियों की जोआराधना की जाती थी वही आराधना अब मानव इस अनन्त ाक्ति को अर्पित करने लगा। काल, देष औरसंस्कृति के अनुसार आराधना के विधि-विधानों में फर्क
    दिखाई देता है। लेकिन आराधना का सर्वश्रे ठ पहलु बलिसमर्पण था। सर्वषक्तिमान ईष्वर को स्वयं अर्पित करने के
    प्रतिरूप में मानव फल, फूल एवं पषु-पक्षी का अर्पणप्रारंभ से करता आया।
             चूँकि मानव ईष्वर के प्रतिरूप और छाया में बनाहुआ है, इसलिए मानव में निहित ईष्वरोन्मुखता ने ही उसे ईष्वर की आराधना करने की प्रेरणा दी; दूसरों की प्रेरणाके बिना मानव सहज भाव से ही ईष्वर तक पहुँच जाएगा।सन्त अगस्तिन ने इसलिए कहा: ‘‘हे ईष्वर, आपने अपनलिए मानव की सृ िट की। आप में पहुँचने तक मानव का हृदय अषान्त रहेगा।’’ ईष्वर को प्राप्त करने पर ही मानवजीवन सार्थक होगा।10

    आराधना अलग-अलग धर्मों में

               सभी धर्म ईष्वर की आराधना को महत्वपूर्ण स्थानदेते हैं। लेकिन आचार संहिता भिन्न-भिन्न होती हैं।प्रति िठत देवी-देवताओं की मूर्तियों या प्रतीकों के सामनेपूजा करते हुए हिन्दू भाई-बहिन आराधना करते हैं।इस्लाम धर्म में नमाज़ की आराधना को प्राथमिकता दीजाती है। अल्लाहु के स्तुतिगान जोर से पढ़कर नमाज़करके और विधान के अनुसार नियमित रूप से रोज़ारखकर ज़कात देकर वे ईष्वर की आराधना करते हैं। जैन और बौद्ध धर्मों के भी अपनी-अपनी आराधना एवं पूजन विधियाँ होती हैं।

    गतिविधि-2

    चार दल बन कर उत्पत्ति  12: 1-9; 18: 1-15; 28: 10 -22; निर्गमन 3: 1 - 18 के आधार
    पर, उचित षीर्शक देते हुए,समाचार पत्र का एक एक लेख तैयारकीजिए जिनमें उस ईष्वर का चित्र स्पश्ट हो जो मानव को खोज मेंआता है।

    आराधना पुराने विधान में

                     अन्य धर्मों में अगर मानव ईष्वर को खोजता हुआदिखाई देता है, तो पुराने विधान में ईष्वर मानव को खोजता हुआ दिखाई देता है। इस्राएल जनता उस ईष्वरकी आराधना करती थी जिसने अपने आपको प्रकट किया।उन्होंने उस एकमात्र ईष्वर की आराधना की जिसनेइब्राहीम, इसहाक और याकूब को प्रकट होकर कहा: ‘‘मैं प्रभु, तुम्हारा ईवर हूँ।’’ येरूसालेम का मन्दिर था उनकीआराधना का स्थान।
                      ईष्वर ने इस्राएल को गुलामी से इसलिए छुड़ायाकि वे आराधना का एक समूह बनंे। इस्राएल को छुड़ाने कासंदेष लेकर मूसा ने फिराऊन के पास जाकर कहा:‘‘इब्रानियों के ईष्वर ने हमें दर्षन दिए हैं; इसलिए हमेंनिर्जन प्रदेष जाने दें, जहाँ की यात्रा तीन दिन की है,जिससे हम अपने ईष्वर प्रभु को वहाँ बलि चढ़ा सकें’’(निर्गमन 5: 3)। पहलौठों के संहार तक पहुँची कठोर विपत्तियों से इस्राएलियों के ईष्वर की ाक्ति जानकर फिराऊन इस्राएली जनता को छोड़ने की सहमति व्यक्तकरते हुए बोला, ‘‘इस्राएलियों को लेकर मेरी प्रजा के यहाँसे चले जाओ, तुमने जैसा कहा था,वैसे ही प्रभु को पूजा करो’’ (निर्गमन 12: 31)। सीनई पहाड़ पर ईष्वर ने उनके साथ एक
    विधान बनाया और उनको अपनी जनता बना ली। उन्होंने प्रभु की आराधना की।
                   इस्राएल उस ईष्वर की ाक्ति जान गए जिसने अपनी भुजा की ाक्ति से उन्हें मिस्र कीगुलामी से मुक्त किया। मरूभूमि की लम्बी यात्रा में ात्रुओं के हाथ से चमत्कारिक रूप सेबचाकर प्यास लगने पर चट्टान में से पानी देकर और भूख मिटाने के लिए मन्ना एवं बटेरे देकर ईष्वर ने उन्हें संभाला। उस ईष्वर का प्रेम इस्राएली सदा याद रखते थे। ईष्वर के दिए हुए अनेकवरदानों के प्रति धन्यवाद देना - यही इस्राएलियों के लिए आराधना थी।येरूसालेम के मन्दिर में सभागृहों में एवं अपनेही घरों में इस्राएली लोग आराधना करते थे।येरूसालेम के मन्दिर में कृतज्ञता बलि, प्रायष्चित बलि, होम बलि, धूम्र बलि, दहन बलि, अन्न बलि, ाान्तिबलि आदि अनेक बलियाँ विधिवत रूप से ईष्वर को वेअर्पित करते थे। सभागृहों में एकत्र होकर पवित्र गं्रथपढ़ते और स्तोत्र गीत गाते हुए उन्होंने ईष्वर की स्तुतिकी। परिवार के मुखिया की अगुवाई में घरों में एकत्र होकर वे स्तोत्र गीत गाते हुए और प्रार्थना करते हुएरोटी तोड़ते थे। इस्राएली ऐसी एक जनता थी जिसने ईष्वर की आराधना को अपने जीवन का केन्द्र बनाया।

    आराधना जिसकी आत्मा खो गई

                     समय बीतने पर इस्राएलियों की आराधना सिर्फ बाहरी अनु ठानों में सीमित रह गयी।इस्राएलियों में यह गलत धारणा आ गई कि बाहरी कर्मों के विधिवत अनु ठानों द्वारा जीवन कीपवित्रता प्राप्त कर सकते हैं। बाहरी अनु ठान आंतरिक पवित्रता का संकेत होना चाहिए - यहसत्य इस्राएल जनता भूल गयी। ईष्वर और मानव के सम्बन्ध का आधार है प्रेम, करुणा औरहभागिता का मनोभाव - इसे खो जाने पर उनकी बलि और आराधना ईष्वर के सामनेअस्वीकार्य रहीं। प्रभु ने कहा, ‘‘ये लोग केवल ाब्दों द्वारा मेरे पास आते हैं इनके होंठ मेरी ई ष्वर नेउनसे कहा, ‘‘अपने कुकर्म मेरी आँखों के सामने से दूर करो। पाप करना छोड़ दो,भलाई करना सीखो’’ (इसायाह 1: 16-17)। नबी होषेआ द्वारा प्रभु ने सिखाया, ‘‘मैं बलिदान की अपेक्षाप्रेम और होम की अपेक्षा, ईष्वर का ज्ञान चाहता हूँ’’ (होषेआ 6: 6)।

    आत्मा और सच्चाई से आराधना

               ईसा ने समारी स्त्री से कहा, ‘‘वह समय आ रहा है जब सच्चे आराधक आत्मा औरसच्चाई से पिता की आराधना करेंगे’’ (योहन 4: 19-25)। ईसा ने अपने जीवन और बलिदान द्वारा इस सत्य को सार्थक बनाया। मानव को खोजने वाले ईष्वरीय प्रेम के प्रति मानव का प्रेमहै सच्ची आराधना। जो व्यक्ति प्यार करता है उसकी इच्छा पूरी करने में ही यह आराधना निहितहै। अपनी इच्छाओं और अपने आपको भी बलिदान के रूप में समर्पित करने तक काआत्मत्याग यह आराधना माँगती है।
             पिता की इच्छा पूर्ण रूप से निभाने के लिए ईसा ने अपने आपको बलि चढ़ाया। अपनेइस बलि समर्पण द्वारा ईसा ने पिता ईष्वर के प्रति अपना प्रेम प्रकट किया । इस प्रकार अपनेपिता को सबसे प्रीतिकर आराधना प्रभु ईसा ने अर्पित की। ईसा ने जो मह नीय और सर्वश्रे ठआराधना अर्पित की उस आराधना में हम मसीही भाग लेते हैं। इस प्रकार आत्मा और सच्चाईसे पिता की आराधना करना उन्होंने हमें सिखाया। जैसे सन्त इरेनेयुस ने बताया है, ईष्वर कीइच्छा के अनुसार - उसकी आज्ञाओं के अनुसार - का जीवन है सच्ची आराधना। प्रेरित सन्तपौलुस भी सिखाते हैं, ‘‘आप मन तथा हृदय से ईष्वर की उपासना करें और एक जीवन्त,पवित्रतथा सुग्राह्य बलि के रूप में अपने आपको ईष्वर के प्रति अर्पित करें’’ (रोमियों 12: 1)।

    आत्मा और सच्चाई से आराधना

                    ईसा ने समारी स्त्री से कहा, ‘‘वह समय आ रहा है जब सच्चे आराधक आत्मा औरसच्चाई से पिता की आराधना करेंगे’’ (योहन 4: 19-25)। ईसा ने अपने जीवन और बलिदान द्वारा इस सत्य को सार्थक बनाया। मानव को खोजने वाले ईष्वरीय प्रेम के प्रति मानव का प्रेमहै सच्ची आराधना। जो व्यक्ति प्यार करता है उसकी इच्छा पूरी करने में ही यह आराधना निहितहै। अपनी इच्छाओं और अपने आपको भी बलिदान के रूप में समर्पित करने तक काआत्मत्याग यह आराधना माँगती है।
                पिता की इच्छा पूर्ण रूप से निभाने के लिए ईसा ने अपने आपको बलि चढ़ाया। अपनेइस बलि समर्पण द्वारा ईसा ने पिता ईष्वर के प्रति अपना प्रेम प्रकट किया । इस प्रकार अपनेपिता को सबसे प्रीतिकर आराधना प्रभु ईसा ने अर्पित की। ईसा ने जो मह नीय और सर्वश्रे ठआराधना अर्पित की उस आराधना में हम मसीही भाग लेते हैं। इस प्रकार आत्मा और सच्चाईसे पिता की आराधना करना उन्होंने हमें सिखाया। जैसे सन्त इरेनेयुस ने बताया है, ईष्वर कीइच्छा के अनुसार - उसकी आज्ञाओं के अनुसार - का जीवन है सच्ची आराधना। प्रेरित सन्तपौलुस भी सिखाते हैं, ‘‘आप मन तथा हृदय से ईष्वर की उपासना करें और एक जीवन्त,पवित्रतथा सुग्राह्य बलि के रूप में अपने आपको ईष्वर के प्रति अर्पित करें’’ (रोमियों 12: 1)।

    कलीसिया सच्ची आराधना - समूह

                        पुराने इस्राएल के जैसे नया इस्राएल - कलीसिया - भी आराधकों का समूह है। जैसेपति अपनी पत्नी को या पिता एकलौते पुत्र को प्यार करता है, वैसे ही ईष्वर ने इस्राएल कोप्यार किया। इसी प्रकार प्रभु ईसा भी नए इस्राएल - कलीसिया - को प्यार करते हैं। उन्होंनेअपने जीवन का बलिदान करके यह प्यार प्रकट किया। ईसा के इस बलिदान में भाग लेकरअपने आपको बलि चढ़ाते हुए कलीसिया अपना प्रेम प्रकट करती है। अपने प्रभु एवं मुक्तिदाता मसीह से संयुक्त होकर पवित्र बलिदान चढ़ाते हुए कलीसिया नये विधान का सच्चा-आराधनासमूह बन जाती है।
                        पवित्र बलिदान, जो ईसा की आत्मबलि का अनुस्मरण एवं अनु ठान है, संस्कार,आराधना र्व ा, उपसंस्कार, याम प्रार्थना आदि में भाग लेकर कलीसिया आज यह निभाती है। कलीसिया के इस प्रकार के अनु ठानों द्वारा, पुनरुत्थित ईसा मानवों को कृपा वरदान प्रदान करते तथा मानवों की आराधना पिता ईष्वर को समर्पित करते हैं। आराधना-समूह में रहते हुएमसीह पिता ईष्वर को श्रे ठतर आराधना अर्पित करते हैं (आराधना क्रम - 7)। मसीह से संयुक्त होकर पवित्र बलिदान अर्पित करते हुए आराधना-समूह मुक्ति के अनुभव में आ जाता है।

    ईष्वर की आराधना (लिटर्जी)

                        कलीसिया की औपचारिक एवं सार्वजनिक आराधना को लिटर्जीकहते हैं। यूनानी ाब्द ‘लेइतूर्गिया’ से ‘लिटर्जी’ ाब्द उत्पन्न हुआ। लिटर्जी का ााब्दिक अर्थ है ‘सामूहिक कर्म’। ईष्वर को सार्वजनिक रूप से समूहद्वारा जो आराधना अर्पित की जाती है उसे सूचित करने के लिए पवित्रबाइबिल में लिटर्जी ाब्द का प्रयोग होता है। लिटर्जी ाब्द का प्रयोग पवित्रबलिदान के परामर्ष में भी किया जाता है। परन्तु विषाल अर्थ में पवित्रबलिदान, संस्कारों, आराधना र्व ा, उपसंस्कारों एवं याम प्रार्थनाओं को ईष्वर की आराधना या लिटर्जी का ाब्द सूचित करता है।
                     ईसा मसीह द्वारा परमपिता से जिसका मेल-मिलाप हुआ है उसकलीसियायी समूह की सार्वजनिक ‘विष्वास की घो ाणा’ है ईष्वर कीआराधना या लिटर्जी। स्वर्गीय पिता के प्रेम से प्रेरित होकर अपने जीवन एवं क्रूस मरण द्वारा ईसा ने जो बलि अर्पित की उसमें भाग लेकर कलीसिया त्रियेक ईष्वर, पिता, पुत्र, पवित्रात्मा को जो आराधना अर्पित करती है वहीहै लिटर्जी। प्रत्येक विष्वासी लिटर्जी के जरिये ईसा मसीह के मनु यावतार,जीवन, दुख-भोग, क्रूस मरण, पुनरुत्थान, स्वर्गारोहण और पवित्रात्मा काआगमन - मुक्तियोजना की इन घटनाओं में भागीदार बनता है। लिटर्जी केचिह्नों तथा प्रतीकों द्वारा कलीसिया इन रहस्यों में भाग लेती है। जिसप्रकार ईसा मसीह ने परम पिता को सबसे प्रीतिकर आराधना अर्पित कीउसी प्रकार प्रत्येक विष्वासी इस महान रहस्य में भाग लेकर ईष्वर को सहीआराधना अर्पित करता है। कलीसिया के साथ एकजूट होकर यह आराधना अर्पित करना प्रत्येक विष्वासी का कर्तव्य है।